MP में बीजेपी ने उतारे VIP उम्मीदवार! कांग्रेस कर पाएगी इनका सामना? क्या है रणनीति
भाजपा ने मध्य प्रदेश चुनाव में जबसे केन्द्रीय नेताओं को उतारा है, तभी से प्रदेश में सियासी सरगर्मी तेज हो गयी है. हाल के सर्वे…
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भाजपा ने मध्य प्रदेश चुनाव में जबसे केन्द्रीय नेताओं को उतारा है, तभी से प्रदेश में सियासी सरगर्मी तेज हो गयी है. हाल के सर्वे में आए आंकड़ों के आधार पर कांग्रेस और बीजेपी दोनों दलों ने चुनावों के लिए प्रचार तेज कर दिया है. बीजेपी चुनाव में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती. हालांकि वह मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को लेकर मुखर नहीं है, वहीं CM शिवराज बुधनी में हुई जनसभा में ‘फेयरवेल स्पीच’ जैसा देते नजर आए. उन्होंने कहां कि ‘मैं चला जाऊंगा तो याद आऊंगा शायद ऐसा भैया आपको नहीं मिलेगा’. बता दें कि बीजेपी केन्द्रीय मंत्रियों और सांसदों को विधानसभा चुनाव लड़ा रही है, आखिर क्या है इसके पीछे की वजह? आइए समझते हैं.
जून में हुए ABP-C voter सर्वे में दोनों पार्टियों को लगभग समान सीटें मिलती नजर आयीं. वहीं अगस्त में हुए IBC-24 के सर्वे में बीजेपी को बहुमत मिलता दिख रहा है. कांग्रेस के आंतरिक रणनीतिकार सुनील कानुगोलू जो कर्नाटक चुनावों में कांग्रेस की जीत के प्रमुख सूत्रधार रहे, उनका दावा है कि पार्टी 135+ सीटें जीत रही है. हालांकि राहुल गांधी ने तो 150 सीटों पर जीत का दावा कर दिया है.
क्या कहते हैं राजनैतिक एक्सपर्ट
न्यूज तक के एक कार्यक्रम में वारिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक रशीद किदवई कहते हैं कि, भाजपा MP में मजबूत स्थिति में नहीं है. CM शिवराज के सामने एंटी इन्कम्बेंसी की चुनौती है, वहीं पार्टी में नेतृत्व का संकट भी है. प्रदेश में बीजेपी नेतृत्व एकमत नहीं है.
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MP में कई ‘बीजेपी’
Tak चैनल्स के मैनेजिंग एडिटर मिलिंद खांडेकर कहते हैं कि, प्रदेश में कई प्रकार कि भाजपा है. शिवराज भाजपा , महाराज भाजपा और नाराज भाजपा. यही वजह है कि, बीजेपी केन्द्रीय नेतृत्व नरेंद्र सिंह तोमर, कैलाश विजयवर्गीय जैसे नेताओं को चुनावी मैदान में ला रही है. जिससे वो क्षेत्रीय के साथ-साथ जातीय समीकरणों को भी साधने में कामयाब हो सके.
कांग्रेस जीत को लेकर कॉन्फिडेंट
मिलिंद खांडेकर कहते हैं कि कांग्रेस पार्टी चुनावों में जीत को लेकर कॉन्फिडेंट नजर आ रही है. पार्टी ने वर्तमान सरकार के खिलाफ जन आक्रोश यात्रा निकली है, जिसे भारी जन समर्थन मिल रहा है. कांग्रेस धर्म के नाम पर चुनाव नहीं लड़ सकती, फिर उसके सामने दो ही मुद्दें बचते है. एक जाति और दूसरा कल्याणकारी योजनाएं. MP में जातियों की संरचना बहुत डायवर्स है, इसीलिए पार्टी जन कल्याण के लिए ‘गारंटी स्कीम’ लेकर आयी है, जिसके साथ वह चुनावों में जा रही है.
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गौरतलब है कि 2018 के चुनावों में कांग्रेस सबसे बड़ी दल बनकर उभरी थी. पार्टी ने लगभग डेढ़ साल तक सरकार भी चलायी, लेकिन ज्योतिरादित्य सिंधिया के 22 विधायकों के साथ पार्टी छोड़ने से सरकार गिर गयी.
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सिंधिया परिवार के लिए अस्तित्व की चुनौती
न्यूज तक के कार्यक्रम में मिलिंद खांडेकर ने कहा कि, ज्योतिरादित्य सिंधिया ने जिस महत्वाकांक्षा के लिए कांग्रेस छोड़ा था, वो आज भी पूरा होता नहीं दिखा रहा है. वहीं 2019 लोकसभा चुनाव में गुना से मिली हार ने उनके सियासी जमीन पर सवाल खड़ा कर दिया है. यह चुनाव सिंधिया परिवार के लिए अस्तित्व की लड़ाई जैसे है. राजस्थान में वसुंधरा राजे को बीजेपी ने साइडलाइन किया हुआ है. अब ज्योतिरादित्य सिंधिया पर ही खानदान का पूरा दारोमदार टिका हुआ है.
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