वन नेशन वन इलेक्शन पर कांग्रेस ने लिया तगड़ा स्टैंड, खरगे ने चिट्ठी में पूर्व राष्ट्रपति कोविंद पर ये लिखा

रूपक प्रियदर्शी

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One Nation One Election: ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ इस आइडिया का जिक्र पिछले कुछ समय में आपने खूब सुना होगा. बीजेपी और पीएम नरेंद्र मोदी इसे लागू करने के मूड में है. इसी के तहत वन नेशन, वन इलेक्शन लागू करने के विकल्पों पर विचार करने के लिए पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में कमेटी बनी है. गृह मंत्री अमित शाह भी इसके सदस्य हैं. यह कमेटी लोकसभा, विधानसभाओं, नगर निकायों और पंचायतों के चुनाव एक साथ कराने की संभावनाओं पर विचार कर रही है.

कोविंद की कमेटी ने देश के लोगों से भी वन नेशन, वन इलेक्शन पर आइडिया देने के लिए मांगा था. ऐसा ही आइडिया कांग्रेस जैसी राजनीतिक पार्टियों से भी मांगा था. कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कोविंद कमेटी के सचिव नीतेन चंद्र को चिट्ठी लिखकर वन नेशन, वन इलेक्शन पर खूब सुनाया है. 17 मुद्दों पर सुझाव देते हुए खरगे ने मांग की है कि इस हाई पावर कमेटी को ही भंग कर देना चाहिए. उन्होंने लिखा है कि, मैं विनम्रतापूर्वक अनुरोध करता हूं कि कमेटी के अध्यक्ष संविधान और संसदीय लोकतंत्र को नष्ट करने के लिए केंद्र सरकार द्वारा उनके व्यक्तित्व और भारत के पूर्व राष्ट्रपति के पद का दुरुपयोग न करने दें.

पीएम मोदी के कारण बाधित होता है विकास: खड़गे

कांग्रेस की राय है कि वन नेशन, वन इलेक्शन नहीं होना चाहिए. इस आइडिया के लिए भारत जैसे देश में कोई जगह नहीं है. वन नेशन, वन इलेक्शन के लिए खड़गे ने पीएम मोदी को भी जमकर सुनाया हैं कि, उनकी वजह से विकास बाधित होते हैं. असल में राष्ट्रपति रहते हुए रामनाथ कोविंद ने कभी कहा था कि, बार-बार चुनाव होने से विकास बाधित होते हैं. इसी पर खरगे ने कहा कि मोदी के कारण विकास बाधित होता है. मोदी गवर्नेंस से ज्यादा इलेक्शयरिंग में लगे रहते हैं. कांग्रेस से पहले तृणमूल कांग्रेस अध्यक्ष ममता बनर्जी ने भी कमेटी को जवाब भेजकर वन नेशन वन इलेक्शन का विरोध किया था.

सत्ताधारी पार्टी को मिलेगा इसका फायदा: कोविन्द

सरकार वन नेशन वन इलेक्शन पर बढ़ना चाहती है. कोविंद कमेटी इसको लेकर बेहद एक्टिव है. कमेटी ने पूर्व चुनाव आयुक्तों से भी राय-मशविरा शुरू किया है. विधि आयोग ने भी वन नेशन वन इलेक्शन के लिए ड्राफ्ट तैयार किया है. कमेटी बनने पर कोविंद ने भी इसका जिक्र किया था कि रास्ता निकालने की कोशिश कर रहे हैं. तब भी उन्होंने कहा था कि वन नेशन, वन इलेक्शन लागू करने से इसका फायदा उसी को होगा जो सत्ता में होगा.

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वन नेशन वन इलेक्शन से फायदा बीजेपी को होगा, विरोध का ये भी कारण है. अभी तक ये कहा जा रहा है कि 2029 से वन नेशन वन इलेक्शन लागू करने का विचार है. इसके लिए दिसंबर 2026 तक 25 राज्यों में विधानसभा चुनाव कराने होंगे. जिन 5 राज्यों में अभी चुनाव हुए उनका कार्यकाल 6 महीने बढाकर जून 2029 तक किया जा सकता है. उसके बाद लोकसभा और सभी राज्यों में एक साथ चुनाव कराने की सोची गई है.

जानिए क्या है वन नेशन, वन इलेक्शन

वन नेशन, वन इलेक्शन का मतलब लोकसभा और संबंधी राज्य की विधानसभा चुनाव में एक दिन, एक ही साथ वोट डाला जाएगा. पंचायत से लोकसभा तक एक वोटर लिस्ट का भी आइडिया है. वैसे वन नेशन वन इलेक्शन कोई नया आइडिया नहीं है. आजादी के बाद 1952, 1957, 1962 और 1967 तक लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव एक साथ होते थे. 1968 और 1969 में कई विधानसभाएं समय से पहले ही भंग करने के बाद 1970 से ये सिस्टम टूट गया. अब साल में कई बार कहीं न कहीं चुनाव हो रहे होते हैं.

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वन नेशन वन इलेक्शन लागू कराने की क्या है मुख्य वजह

कई कारणों से वन नेशन, वन इलेक्शन की चर्चा हो रही है. एक साथ चुनाव होने से खर्च में कमी आएगी. अनुमान ये है कि केवल 2019 के चुनाव में 60 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा खर्च हुए थे. 2014 के चुनाव में करीब 4 हजार करोड़ खर्च हुए थे. वीवीपैट से चुनाव का खर्च और बढ़ गया. सभी चुनावों के लिये एक ही वोटर लिस्ट होने से भी समय और पैसे की बचत होगी. बार बार चुनाव होने से आचार आदर्श संहिता लागू होती है. इस दौरान नीतिगत फैसले लेने पर रोक रहती है. इससे विकास का काम रुकता है.

 

किस बात का हो रहा विरोध?

विरोध इसलिए भी हो रहा है कि कई सवालों के जवाब नहीं मिले हैं. एक बार तो एक साथ चुनाव करा लेंगे लेकिन बीच में किसी सरकार से केंद्र या राज्य सरकार गिर जाएगी तब क्या होगा? क्या फिर सारे चुनाव नए सिरे से होंगे या राष्ट्रपति शासन लगाकर सबका फिर साथ चुनाव का इंतजार किया जाएगा? जनप्रतिनिधित्व जैसे कानूनों में संशोधन और 50% विधानसभा से समर्थन कैसे आएगा?

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