कांग्रेस का स्थापना दिवस: एकछत्र राज से हाल-बेहाल तक! नेहरू से राहुल तक ऐसी रही पार्टी की कहानी

अभिषेक

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Rahul Gandhi
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Foundation day of Congress: आज भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस(INC) का स्थापना दिवस है. आज ही के दिन साल 1885 में ब्रिटिश राज के अधीन भारत में सिविल सेवा के एक अधिकारी और राजनैतिक सुधारक ए. ओ. ह्यूम के नेतृत्व में पार्टी की स्थापना हुई थी. आजादी के आंदोलन की कोख से निकली कांग्रेस ने वैश्विक धरातल पर बेदम होते हिंदुस्तान में शक्ति और साहस का नया प्राण फूंका था और देश की आजादी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. पार्टी का आज 139 वां स्थापना दिवस है. पार्टी ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम से लेकर आधुनिक भारत तक का सफर तय किया है. पार्टी के अबतक देश में सात प्रधानमंत्री भी रह चुके हैं. आइए आज आपको कांग्रेस के इतिहास से रूबरू कराते हैं.

स्वतंत्रता आंदोलन वाली कांग्रेस

देश जब अंग्रेजों की गुलामी झेल रहा था तब कांग्रेस ने राष्ट्रीय पटल पर आजादी के लिए आंदोलन किया और अंग्रेजों को भारत छोड़ने पर मजबूर कर दिया.महात्मा गांधी, लोकमान्य तिलक, लाला लाजपत राय, सुभाष चंद्र बोस , सरदार पटेल और जवाहर लाल नेहरू जैसे तमाम नेता पार्टी के सदस्य थे.

स्वतंत्र भारत के बाद कांग्रेस

भारत जब अंग्रेजों से आजाद हुआ तब जवाहर लाल नेहरू देश के पहले प्रधानमंत्री बने. नेहरू के 1947 से 1964 तक के शासन काल में देश ने दो-दो युद्ध झेले. 1962 में चीन और 1965 में पाकिस्तान से युद्ध झेलने के बाद भी अन्तराष्ट्रीय पटल पर नेहरू एक बड़े नेता के तौर पर जाने गए और देश ने इस दौरान लगातार ख्याति भी हासिल की. नेहरू समाजवादी विचारधारा के थे. उन्होंने मिश्रित अर्थव्यवस्था के मॉडल को अपनाते हुए देश को तरक्की देने की कोशिश की. वैश्विक पटल पर उन्होंने गुटनिरपेक्ष आंदोलन में शामिल होकर देश को अलग पहचान दिलाई. गुटनिरपेक्ष आंदोलन में शामिल 120 देशों को नेतृत्व देने वाले नेताओं में से एक नेहरू भी थे.

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Jawahar Lal Nehru

गुटनिरपेक्ष आंदोलन उस वक्त चला था जब दुनिया की दो बड़ी महाशक्तियां अमेरिका और सोवियत संघ (बाद में टूट कर जो रूस और अन्य देशों में बंटा) आपस में लड़ रही थीं. इस दौर को शीत युद्ध का दौर कहा जाता है. दुनिया के तमाम मुल्कों के सामने चुनौती थी कि वह किस महाशक्ति का साथ दे. ऐसे में नेहरू के अलावा मिस्र के राष्ट्रपति गमाल अब्देल नासिर, घाना के नेता क्वामे एन्क्रूमाह, युगोस्लाविया के जोसिप ब्रोज़ टिटो और इंडोनेशिया के राष्ट्रपति सुकर्णो जैसे नेताओं ने दुनिया के सैकड़ों देशों को गुटनिरपेक्ष आंदोलन से जोड़ा. जैसा नाम से ही स्पष्ट है, ये देश किसी गुट के साथ नहीं थे बल्कि तटस्थ लेकिन सक्रिय वैश्विक नीति के समर्थक थे.

‘सिंगल पार्टी डॉमिनेस’: रजनी कोठारी

नेहरू के बाद लाल बहादुर शास्त्री देश के प्रधानमंत्री बने. पर उनकी असमय मृत्यु के बाद प्रधानमंत्री पद के लिए कांग्रेस पार्टी में जमकर रस्साकस्सी हुई. पार्टी का विभाजन भी हुआ, लेकिन उसके बाद भी इंदिरा गांधी अकेले दम पर टिकी रहीं और चुनाव में भारी बहुमत से जीत कर प्रधानमंत्री बनीं. उन्हें देश की आयरन लेडी भी कहा गया. इंदिरा के समय कांग्रेस इतनी मजबूत थी कि कोई भी दल उसके आस-पास तो छोड़िए दूर-दूर तक नहीं था. भारत के राजनीतिक विज्ञानी रजनी कोठारी ने जवाहर लाल नेहरू की बेटी और देश की पहली महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के काल को ‘सिंगल पार्टी डॉमिनेंस’ का नाम दिया था.

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India Gandhi in Public Rally

गठबंधन सरकारों के दौर में कांग्रेस

इंदिरा और राजीव गांधी के बाद कांग्रेस को नेतृत्व के संकट का सामना करना पड़ा. सियासत में भी एक वैक्यूम (खालीपन) सामने आया, जिससे जनसंघ से बनी भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) को स्पेस मिला और उसकी देश में पहली बार 1996 में सरकार बनी. 1996 से लेकर 2004 तक कांग्रेस सत्ता से बाहर रही. फिर 2004 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी. पार्टी को लोकसभा की 543 सीटों में से 145 सीटें मिली. वैसे उसके पास सरकार बनाने के लिए बहुमत यानी 273 सीटों का आंकड़ा नहीं था. पार्टी ने बीजेपी को छोड़ अन्य दलों से गठबंधन कर संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) की सरकार बनाई. फिर शुरू हुआ कांग्रेस की गठबंधन सरकारों का दौर जिसे ‘मल्टी पार्टी सरकार’ कहा गया.

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Sonia Gandhi, Manmohan Singh

2004 से 2014 तक मनमोहन सिंह देश के प्रधानमंत्री रहे. यूपीए का दूसरा कार्यकाल यानी 2009-2014 का समय 2जी, कोल ब्लॉल आवंटन जैसे बड़े घोटालों के आरोपों में घिरा. इस दौरान समाजसेवी अन्ना हजारे का आंदोलन भी दिल्ली में हुआ. इससे कांग्रेस के खिलाफ एक माहौल तैयार हुआ. इसी दौरान बीजेपी ने 2014 के चुनाव से पहले अपने वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी की जगह तब गुजरात के मुख्यमंत्री रहे नरेंद्र मोदी को पार्टी का चेहरा बनाया. नतीजा 2014 के चुनावों में दिखा. कांग्रेस की बड़ी हार हुई, सिर्फ 44 सीटें मिलीं, जो पार्टी के इतिहास में सबसे कम थीं. तब से लेकर आज तक पार्टी कभी इस दौर से उबर ही नहीं पाई है.

कमजोर कांग्रेस का दौर

कांग्रेस पार्टी भले ही 2004 से लेकर 2014 तक सत्ता में रही लेकिन इसके बाद वह लगातार कमजोर होती गई. 2014 के लोकसभा चुनाव में पार्टी को मात्र 44 सीटें मिलीं जो आजादी के बाद से अबतक के इतिहास में हुए चुनावों में पार्टी का सबसे खराब प्रदर्शन था. 2019 के चुनाव में पार्टी ने अपने प्रदर्शन में थोड़ा सुधार जरूर किया लेकिन वो बीजेपी के सामने न के बराबर ही था. 2014 के चुनाव में बीजेपी के हाथों मिली करारी शिकस्त के बाद कांग्रेस खुद को रिवाइव करने के तमाम प्रयास कर रही है. कभी देश की सत्ता में अकेले दम पर काबिज रहने वाली पार्टी आज बहुत ही खराब दौर से गुजर रही है. एक के बाद एक कई राज्यों में सरकारों से भी उसे हाथ धोना पड़ा है.

अब कांग्रेस के लिए उम्मीद की किरण हैं राहुल गांधी

वर्तमान में कांग्रेस पार्टी के पास एक मात्र उम्मीद की किरण राहुल गांधी ही हैं. पार्टी कार्यकर्ताओं को लगता है कि वही कुछ ऐसा करिश्मा कर सकते हैं जिससे पार्टी का उद्धार हो सके. वैसे पिछले कुछ समय में राहुल ने अपने आप को राष्ट्रीय पटल पर मजबूत किया है. कांग्रेस पार्टी के मुताबिक पिछले साल हुई राहुल की भारत जोड़ो यात्रा काफी हद तक सफल साबित हुई थी जिसमें उन्होंने देश के आम लोगों से संवाद स्थापित किया. यात्रा ने देश में राहुल के लिए एक पॉजिटिव माहौल भी बनाया. यात्रा से मिले रिस्पॉन्स के बाद राहुल लगातार समाज के विभिन्न तबकों – कभी बढ़ई, तो कभी मैकेनिक तो कभी कुली सभी रूपों में दिखे. वे आम-जन से संवाद भी करते दिखे हैं. अब राहुल 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले एकबार फिर से ‘भारत न्याय यात्रा’ पर निकलने वाले हैं. ये देखना दिलचस्प होगा कि क्या राहुल एक सार्वभौमिक नेता बनकर कांग्रेस के गिरते हुए ग्राफ को उठाने में कामयाब हो पाते है या पार्टी का नेतृत्व संकट बरकरार रहता है.

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