सिर्फ INDIA को ही नहीं लग रहे झटके! पंजाब में NDA-BJP और अकालियों की बात भी अटक गई

रूपक प्रियदर्शी

ADVERTISEMENT

NewsTak
social share
google news

Lok Sabha Election 2024: मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की हार से विपक्षी गठबंधन INDIA में दरार की बुनियाद पड़ी जिसका बीजेपी ने फायदा उठाया. बिहार और यूपी में INDIA वाले टूटकर साथ आए, तो बीजेपी का राष्ट्रीय जनतान्त्रिक गठबंधन(NDA) पहले की तरह मजबूत दिखने लगा. NDA को और मजबूती तब मिलती जब पंजाब में शिरोमणि अकाली दल भी बीजेपी के साथ आ जाता लेकिन अकाली दल बीजेपी के साथ नहीं आया.

अमित शाह से अकाली दल से अलायंस के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा- अभी पंजाब में कुछ तय नहीं है. बीजेपी ने आज तक अपने किसी भी साथी को जाने के लिए नहीं कहा है. अकाली दल अगर बीजेपी से जुड़ना चाहता है, तो उस पर विचार किया जाएगा. देश में एक प्रकार से आइडियोलॉजी के अनुसार सभी पार्टियां अपना पॉलिटिकल निर्णय करें, लेकिन ऐसा हो नहीं पाता. बीजेपी एजेंडा, प्रोग्राम और आइडियोलॉजी के अनुसार अपनी जगह स्थिर है. कई साथी आते हैं, चले जाते हैं.’

ऐसा कहकर अमित शाह ने बीजेपी के सबसे पुराने सहयोगी के लिए दरवाजे खोले लेकिन ऐन वक्त पर किसान आंदोलन गरमाने से अकाली दल-बीजेपी का संभावित अलायंस फंस गया. सुखबीर बादल ने कह दिया कि, हमारा अलायंस सिर्फ बसपा से है.

किसानों के लिए बीजेपी का साथ छोड़ मझधार में फंस गई अकाली दल

मोदी सरकार ने किसानों को लेकर तीन कानून बनाए थे. पंजाब समेत कई राज्यों के किसान संगठनों ने उन कानूनों के खिलाफ आसमान सिर पर उठाया. तब अकाली दल के लिए ये मजबूरी हो गई कि, किसान कानून बनाने वाली बीजेपी का साथ छोड़े. कृषि कानूनों का विरोध करते हुए 2020 में अकाली दल, बीजेपी से अलग हो गई. अकाली दल के ये दोनों कदम किसानों का साथ देना और बीजेपी से किनारा करना, अकाली दल की दो भयंकर गलतियां साबित हुईं. पार्टी किसानों के साथ खड़े होने का मौका भुना नहीं पाई और बीजेपी को छोड़कर प्रदेश में अपनी भी ताकत गंवा ली. अकाली दल की इन दोनों गलतियों का फायदा अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी को मिला. आप को पंजाब विधानसभा चुनाव में बंपर बहुमत हासिल हुआ.

ADVERTISEMENT

हालांकि वर्तमान में ये भी कहा जा रहा है कि, पंजाब में बीजेपी-अकाली दल की बात इसलिए भी नहीं बनी क्योंकि बीजेपी अकाली दल से ज्यादा सीटें मांग रही थी. करीब तीन दशक से चले आ रहे अलायंस में पंजाब की 13 में से अकाली दल 10 सीटों पर तो वहीं बीजेपी तीन सीटों पर लड़ती रही है. जानकारों का मानना हैं कि, अबकी बार बीजेपी ने 6 सीटें मांगी, तो अकाली दल ने मना कर दिया. वैसे पंजाब के बीजेपी नेता भी अकाली दल के साथ गठबंधन का समर्थन नहीं कर रहे थे.

पिछले चुनाव के ये थे नतीजे

2019 के चुनाव में प्रदेश में कांग्रेस पार्टी का दबदबा रहा. लगभग पूरे देश में कांग्रेस के हारने के बाद भी कांग्रेस ने पिछले चुनाव की अपेक्षा जबर्दस्त वापसी करते हुए 13 में से 8 सीटें जीत ली. वहीं अकाली दल और बीजेपी को दो-दो सीटें मिली. आम आदमी पार्टी को एक सीट मिली. इस चुनाव में अकाली दल और बीजेपी पंजाब की जनता के पसंद नहीं बन सके.

कांग्रेस

अकाली दल

बीजेपी

आप

8

2

2

1

पंजाब में बीजेपी के लिए समस्या, समाधान दोनों है अकाली दल

पंजाब में अकाली दल बीजेपी की समस्या भी है, समाधान भी. अकाली दल के साए में बीजेपी का कोई जनाधार बन नहीं पाया. पिछले दो चुनावों में पार्टी गुरदासपुर और होशियारपुर से आगे बीजेपी बढ़ नहीं पाई. मोदी लहर के कॉन्फिडेंस में 2014 में अमृतसर से चुनाव लड़ने वाले अरुण जेटली जैसे दिग्गज भी चुनाव नहीं जीत पाए. गुरदासपुर की सीट भी बॉलीवुड स्टार विनोद खन्ना, सनी देओल के भरोसे निकलती रही है. अब न तो विनोद खन्ना रहे, न ही सनी देओल दोबारा चुनाव लड़ने के मूड में हैं.

ADVERTISEMENT

पंजाब की राजनीति का मिजाज कुछ ऐसा है कि, अगर अकाली दल बीजेपी के साथ नहीं गई, तो इसका मतलब ये नहीं है कि वो कांग्रेस या आप से अलायंस कर लेगी. पंजाब में अकाली दल बीएसपी के साथ अलायंस दोहराएगी. केजरीवाल और भगवंत मान का कॉन्फिडेंस इतना हाई है कि, उन्होंने सभी 13 सीटें जीतने के लिए कांग्रेस से अलायंस तोड़ दिया है. 370 सीटें जीतने के लिए पंजाब में अकेले 13 सीटों पर लड़ना बीजेपी की मजबूरी है.

    follow on google news
    follow on whatsapp

    ADVERTISEMENT