ज्योतिरादित्य का जन्मदिन: हावर्ड, स्टैनफोर्ड से पढ़े युवराज का आया राज! कहानी सिंधिया घराने की

देवराज गौर

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Jyotiraditya Scindia: केंद्रीय नागरिक उड्डयन मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया का आज जन्मदिन है. वह आज 53 साल के हो गए हैं. ज्योतिरादित्य सिंधिया का जन्म 1 जनवरी 1971 को माधवराव सिंधिया और माधवी राजे सिंधिया के घर मुंबई में हुआ था. राजे-रजवाड़ों का दौर भले बीत चुका हो, लेकिन ग्वालियर-चंबल में सिंधिया खानदान के लोगों को आज भी लोग महाराज, महारानी और युवराज कहकर बुलाते हैं. हालांकि, सिंधिया ने अपना 53वां जन्मदिन मनाने से इंकार कर दिया है. दरअसल, 27 दिसंबर को मध्य प्रदेश के गुना में हुए भीषण बस हादसे में 13 यात्री जिंदा जल गए थे. जिस कारण सिंधिया ने अपना जन्मदिन न मनाने का फैसला लिया है. बता दें गुना-शिवपुरी ज्योतिरादित्य सिंधिया की पारंपरिक लोकसभा सीट मानी जाती है. हालांकि, 2019 के लोकसभा चुनाव में वह अपना चुनाव अपने पूर्व सहयोगी केपी यादव से हार गए थे.

हावर्ड और स्टैनफोर्ड से पढ़े हैं सिंधिया

1993 में ज्योतिरादित्य सिंधिया ने हावर्ड यूनिवर्सिटी से इकॉनोमिक्स की डिग्री हासिल की थी. 2001 में उन्होंने स्टैनफोर्ड ग्रेजुएट स्कूल ऑफ बिजनेस से एमबीए किया. इसके बाद उन्होंने अमेरिका में ही साढ़े चार साल तक संयुक्त राष्ट्र, मार्गेन स्टेनली के अलावा कई संस्थाओं में काम का अनुभव किया. उसके बाद उन्होंने मुंबई आकर भी कई निजी फर्मों में काम किया. बाद में साल 2001 में उनके पिता माधवराव सिंधिया की एक प्लेन हादसे में आसमयिक मृत्यु के बाद उन्होंने राजनीति में एंट्री ली. साल 2002 में अपने पिता की मृत्यु से खाली हुई गुना की पारंपरिक सीट पर हुए उपचुनाव में ज्योतिरादित्य सिंधिया पहली बार लोकसभा पहुंचे.

क्या है सिंधिया खानदान की कहानी

सिंधिया राजघराने का इतिहास करीब 288 साल पहले जाता है. सिंधिया खानदान की जड़ें मध्यप्रदेश से नहीं बल्कि महाराष्ट्र से जुड़ी हैं. सिंधिया वंश के पहले शासक राणोजी सिंधिया का जन्म महाराष्ट्र के सतारा जिले में हुआ था. वह पेशवा वाजीराव प्रथम के सेनापति थे. मराठा साम्राज्य के तहत वाजीराव पेशवा ने अपने राज्य को कई हिस्सों में बांटा था, जिसमें उन्होंने ही ग्वालियर स्टेट को राणोजी सिंधिया को सौंपा था. राणोजी सिंधिया ने ही ग्वालियर स्टेट की स्थापना की, इसलिए आप कह सकते हैं कि राणोजी सिंधिया ही ग्वालियर राज्य के पहले शासक थे. इन्हीं राणोजी सिंधिया के बेटे महादजी सिंधिया के वंशज हैं ज्योतिरादित्य सिंधिया. ज्योतिरादित्य सिंधिया के दादाजी जीवाजीराव सिंधिया इस वंश के आखिरी शासक थे.

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सिंधिया खानदान ने आजादी के बाद ली सियासत में एंट्री

1947 में देश को आजादी मिलने के साथ ही सिंधिया परिवार के कई सदस्य भी राजनीति में शामिल होते चले गए. हालांकि वह राजनीति के अलग-अलग धड़ों में बंट गए. ज्योतिरादित्य सिंधिया की दादी विजयाराजे सिंधिया जिन्हें ग्वालियर की राजमाता भी कहा जाता है, ने कांग्रेस के टिकट पर 1957 और 1962 का लोकसभा चुनाव लड़ा और जीता भी. 1967 में मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री डीपी मिश्रा के साथ विवादों के चलते उन्होंने कांग्रेस का दामन छोड़ दिया था. वह अपने साथ 35 विधायकों को ले गईं जिसके चलते मध्यप्रदेश में कांग्रस को अपनी सरकार गंवानी पड़ी.

1967 में उन्होंने स्वतंत्र पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ा और जीत दर्ज की, जो उस समय कांग्रस की धुर विरोधी थी.
विजयाराजे सिंधिया ने बाद में जनसंघ का दामन थामा, जो आगे चलकर भारतीय जनता पार्टी के रूप में सामने आया. विजयाराजे भारतीय जनता पार्टी की संस्थापक सदस्य भी रहीं. विजयाराजे को पहली बार हार का सामना तब करना पड़ा जब बीजेपी ने उन्हें 1980 में रायबरेली से इंदिरा गांधी के खिलाफ उतारा था.

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ज्योतिरादित्य की बुआएं भी हैं पॉलिटिक्स में

इसी तरह विजयाराजे सिंधिया की तीनों संतानों माधवराव, वंसुधरा राजे और यशोधरा राजे ने भी राजनीति में एंट्री ली. 1984 में वसुंधरा ने अपने सियासी करियर की शुरुआत की. सीट चुनी मध्यप्रदेश की भिंड, जो कभी ग्वालियर रियासत का हिस्सा हुआ करती थी. यह कभी उनकी मां की रियासत थी, लेकिन इंदिरा गांधी की हत्या की वजह से उपजी लहर के कारण वंसुधरा राजे को अपने उस पहले चुनाव में हार का सामना करना पड़ा. बाद में 1985 में उन्होंने राजस्थान के धौलपुर से विधानसभा का चुनाव लड़ा. धौलपुर वसुंधरा की ससुराल भी है. 1989 में वह राजस्थान की झालावाड़ सीट से पहली बार संसद पहुंचीं और फिर 2003 में वह राजस्थान की पहली महिला मु्ख्यमंत्री बनीं.

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ज्योतिरादित्य की दूसरी बुआ यशोधरा राजे शादी के बाद अमेरिका चलीं गईं, लेकिन अपने देश लौटते ही वह राजनीति में सक्रिय हो गईं. वह मध्यप्रदेश के शिवपुरी से चार बार की विधायक रह चुकी हैं. 2023 के विधानसभा चुनाव में स्वास्थ्य कारणों का हवाला देते हुए यशोधरा राजे सिंधिया ने चुनाव नहीं लड़ा था.

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