पांचवे चरण में फ्री राशन के नाम पर क्यों हो रही है राजनीति, समझिए इसके पीछे की सियासत को

News Tak Desk

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Free Ration Scheme: मोदी सरकार देश के 80 करोड़ लोगों को हर महीने 5 किलो मुफ्त में अनाज देती है. 2020 में शुरू हुए इस स्कीम को बीते साल पीएम मोदी ने 2028 तक के लिए बढ़ा दिया. तब इसके पीछे की वजह देश में लोकसभा चुनावों को बताया गया. वर्तमान में लोकसभा का चुनाव चल रहा है. सभी राजनीतिक पार्टियों ने जनता को लुभाने के लिए वादों की झड़ी लगा दी है. हालांकि इन सब के बीच 'फ्री राशन' एक बड़ा मुद्दा बना हुआ है क्योंकि अभी भी देश में एक बड़ा वर्ग है जिसे अगर फ्री राशन नहीं दिया जाए तो वह भूखे पेट सोने को मजबूर होंगे. बीजेपी की तो पहले से ही 5 किलो फ्री राशन की स्कीम चल रही है. इसी की काट के लिए कांग्रेस ने भी ये ऐलान किया है कि, चुनाव जीतने पर 10 किलो फ्री राशन देंगे. यानी दुगुना राशन मुफ्त में मिलेगा. चुनावों के बीच 'फ्री राशन' डिबेट का मुद्दा बना गया है. आइए समझते हैं क्या है 'फ्री राशन' के पीछे की सियासत. 

पहले जानिए 'फ्री राशन' कैसे बना चुनावी मुद्दा? 

साल 2019 में आई कोरोना महामारी के समय पूरे देश में लॉकडाउन लगा हुआ था और लोगों की आवाजाही पर कई प्रकार की पाबंदियां लगाई गई थी. लंबे वक्त तक लॉकडाउन लगने की वजह से गरीबों के सामने खाने-पीने का संकट खड़ा हो गया था. ऐसे में केंद्र सरकार ने प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना (PMGKAY) की शुरुआत की थी. इस योजना के तहत बीपीएल कार्ड धारक को 5 किलो अनाज फ्री में देना शुरू किया गया था. इसमें चार किलो गेंहू और एक किलो चावल शामिल है. शुरूआत में PMGKAY को छह महीने के लिए ही लाया गया था. लेकिन समय के साथ केंद्र सरकार इस योजना की अवधि को लगातार बढ़ाती रही. सरकारी आंकड़े के मुताबिक देश में 80 करोड़ लोगों को फ्री में राशन दिया जा रहा है. फ्री राशन योजना के सबसे अधिक 15.21 करोड़ लाभार्थी उत्तर प्रदेश में है.

कांग्रेस ने 10 किलो अनाज का खेला दांव

बीजेपी अपनी हर चुनावी सभा में फ्री राशन योजना का जिक्र कर रही है. इसके जवाब में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने पिछले दिनों लखनऊ में ऐलान किया कि, INDIA गठबंधन की सरकार बनने के बाद गरीबों को पांच किलो की जगह 10 किलो राशन फ्री में दिया जाएगा. बता दें कि, कांग्रेस ने अपने मेनिफेस्टो में फ्री राशन देने का वादा नहीं किया था. लेकिन वोटर्स के बदलते मूड को भाप कर कांग्रेस ने भी फ्री राशन देने की घोषणा कर दी है.     

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बीमारू राज्य में अहम मुद्दा है फ्री राशन  

भारत में बीमारू राज्य के रूप में मशहुर उत्तर भारत के गरीब राज्यों में फ्री राशन एक बड़ा मुद्दा है. भारत में गरीबी की क्या स्थिति है? आखिरकार क्यों फ्री राशन चुनावी मुद्दा बना हुआ है? ये सब जानने के लिए सरकारी आकड़ों को समझना जरूरी है. नीति आयोग के एक डेटा के मुताबिक, देश में सर्वाधिक गरीबी झारखंड में है. झारखंड में 42.16 फीसदी लोग गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन कर रहे है. 39.93 फीसदी गरीबी के साथ छत्तीसगढ़ दूसरे नंबर पर है. वहीं उत्तर प्रदेश में 37.08 फीसदी लोग गरीब है. चौथे पायदान पर मध्य प्रदेश आता है. जहां 36.07 फीसदी लोग गरीबी रेखा से नीचे है.  

राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि, बीमारू राज्यों से होकर ही दिल्ली की सत्ता का रास्ता खुलता है. इन बीमारू राज्यों में लोकसभा की करीब 200 सीटें है. यही वजह है कि , सभी पार्टियां इन सीटों को जीतने के लिए जरूरत की सबसे बेसिक चीज 'फ्री राशन' पर जोर दे रही है. 

अब जानिए फ्री राशन पर सरकार कितना कर रही है खर्च? 

फ्री राशन पर सरकार हर साल करीब 2 लाख करोड़ रुपये खर्च कर रही है. केंद्रिय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बजट भाषण के दौरान बताया था कि, मुफ्त राशन योजना पर चालू वित्त वर्ष(2024-25) में 2 लाख करोड़ रुपये खर्च किया जाएगा. अगर हम इसके आधार पर एस्टीमेट लगाए तो सरकारी खजाने पर अगले पांच साल में 10 लाख करोड़ रुपए का बोझ पड़ेगा. बता दें कि, सरकार ने इस योजना पर साल 2020-2021 में सबसे अधिक 5.41 लाख करोड़ रुपए खर्च किया था.  

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फ्री राशन योजना को लेकर सत्ता पक्ष और विपक्ष में जमकर सियासत देखने मिलती रही है. हालांकि यह योजना देश के गरीब लोगों के लिए एक वरदान की तरह तो है लेकिन इससे सरकारी खजाने पर पड़ने वाला भार भी बहुत ज्यादा है. इसको हम इस प्रकार समझ सकते है कि, इसी वित्तीय वर्ष  में सरकार ने शिक्षा का कुल बजट आवंटन 1.20 लाख करोड़ रुपये आवंटित किया है जो फ्री राशन योजना का करीब आधे से थोड़ा ज्यादा है. 

इस स्टोरी को न्यूजतक के साथ इंटर्नशिप कर रहे IIMC के डिजिटल मीडिया के छात्र राहुल राज ने लिखा है.

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