कभी दोस्त रहे सिंधिया पर बरसीं प्रियंका, गांधी परिवार से ‘महाराज’ के रिश्ते बिगड़ने की कहानी

रूपक प्रियदर्शी

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Priyanka lashed out at Scindia
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Assembly Election 2023: 1957 से कोई न कोई सिंधिया संसद सदस्य रहा है. विजया राजे सिंधिया, माधव राव सिंधिया, वसुंधरा राजे, ज्योतिरादित्य सिंधिया-किसी न किसी पार्टी में रहते हुए संसद में रहे. बीजेपी में सिंधिया आज भी है लेकिन कांग्रेस में अब कोई सिंधिया नहीं है. गांधी परिवार और सिंधिया परिवार का करीब 40 साल पुराना संबंध आज सबसे खराब दौर में है. मध्य प्रदेश का चुनाव संबंधों को और खराब बनाने का जरिया बना है. चुनाव प्रचार में कांग्रेस के निशाने पर सीएम शिवराज सिंह चौहान थोड़े कम, ज्योतिरादित्य सिंधिया बहुत ज्यादा रहे. राहुल गांधी ने परहेज किया लेकिन प्रियंका गांधी ने लीड ले ली और ज्योतिरादित्य सिंधिया को गद्दार कहकर पुकारा.

पार्ट टाइम नेत्री हैं प्रियंका: सिंधिया

ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस से बीजेपी में आए. इससे ज्यादा बड़ी बात ये कि सोनिया, राहुल, प्रियंका के बहुत करीबी होने के बाद भी ज्योतिरादित्य ने कांग्रेस और गांधी परिवार को बीजेपी के लिए छोड़ दिया. प्रियंका गांधी पॉलिटिक्स में ज्योतिरादित्य के मुकाबले थोड़ी नई हैं. सिंधिया को गद्दार कहलाना अखरा तो उन्होंने प्रियंका को पार्ट टाइम नेत्री बोल दिया. वैसे अब तक बीजेपी वाले राहुल गांधी को पार्ट टाइम पॉलिटिशियन बोलते रहे हैं.

कॉलेज से ही दोस्त थे राहुल-ज्योतिरादित्य

सिंधिया परिवार और गांधी परिवार की दोस्ती करीब 40 साल चली. राहुल-ज्योतिरादित्य की दोस्ती कॉलेज टाइम वाली है. राहुल कहते रहे कि ज्योतिरादित्य बीजेपी गए जरूर लेकिन उनकी विचारधारा बीजेपी-आरएसएस वाली नहीं है. एक जमाने में राहुल की टीम का मतलब ज्योतिरादित्य सिंधिया, सचिन पायलट जितिन प्रसाद, आरपीएन सिंह होता था. सचिन पायलट को छोड़कर बाकी सब बीजेपी में चले गए. किसी को कांग्रेस का फ्यूचर डार्क दिखा, किसी को बीजेपी में अपना फ्यूचर ब्राइट दिखा. सिंधिया को छोडकर बाकी सब मुंह बंद करके अपनी-अपनी राजनीति कर रहे हैं लेकिन न सिंधिया से रहा नहीं जाता है, न कांग्रेस नेताओं से.

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कांग्रेस में हमेशा फ्रंट रो में रहे सिंधिया

एयरक्रैश में माधव राव सिंधिया के निधन के बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया 2001 में कांग्रेस में शामिल हुए और गुना से उपचुनाव जीतकर सांसद बने. राहुल की पॉलिटिकल एंट्री तो 2004 में हुई थी. यूपीए सरकार में राहुल कभी मंत्री नहीं बने लेकिन राहुल के कोटे से सिंधिया 10 साल तक मंत्री रहे. प्रियंका गांधी जब यूपी की इन्चार्ज महासचिव बनी तब ज्योतिरादित्य सिंधिया दूसरे इन्चार्ज महासचिव होते थे. 2017 में जब राहुल गांधी कांग्रेस अध्यक्ष बने तो मध्य प्रदेश में सिंधिया को चुनाव की बागडोर सौंपी. कुल मिलाकर कांग्रेस में हमेशा फ्रंट रो में रहे सिंधिया.

मुख्यमंत्री न बनाए जाने को झेल नहीं पाए सिंधिया

2018 में मध्य प्रदेश में कांग्रेस की जीत राहुल गांधी की पहली चुनावी जीत मानी गई. रैलियों से लेकर मंदिर तक राहुल के साथ ज्योतिरादित्य सिंधिया लेफ्टिनेंट की तरह रहे. खेल तब हुआ जब दिग्विजय सिंह ने जोर लगाकर अपने दोस्त कमलनाथ को सीएम बनवा दिया. ज्योतिरादित्य मुंह ताकते रह गए.

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कहते हैं राहुल ने तब सिंधिया को मना लिया था. लेकिन सिंधिया से खाली हाथ रहा नहीं गया. उन्होंने 2 साल के भीतर राहुल से, कांग्रेस से और कमलनाथ से बदला ले लिया. ज्योतिरादित्य कमलनाथ की सरकार गिराकर समर्थक विधायकों को लेकर बीजेपी में चले गए. तब से मध्य प्रदेश में कांग्रेस, राहुल, प्रियंका, कमलनाथ, दिग्विजय सिंह का स्ट्रगल चल रहा है. कांग्रेस की इस हालत के लिए जिम्मेदार माने जाते हैं ज्योतिरादित्य. इसीलिए सिंधिया को बार-बार सुनना पड़ता है गद्दार वाला ताना.

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