SC ने जताई थी ‘गंभीर चिंता’ पर तमिलनाडु राज्यपाल ने सरकार के 10 बिल फिर लौटाए, क्या है विवाद?
तमिलनाडु विधानसभा अध्यक्ष एम अप्पावू ने 18 नवंबर शनिवार को विधानसभा का विशेष सत्र बुलाया है. ऐसा माना जा रहा है कि इसमें बिलों की मंजूरी के लिए फिर से राज्यपाल के पास भेजा जाएगा.
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सरकार-राज्यपाल टकरावः सुप्रीम कोर्ट की सख्ती के बाद भी तमिलनाडु में सरकार और राज्यपाल के बीच का विवाद थम नहीं रहा है. एमके स्टालिन सरकार ने आरोप लगाया था कि राज्यपाल आरएन रवि सदन से पारित बिलों पर मंजूरी करने में जानबूझकर देरी कर रहे हैं. राज्य सरकार ने आरोप लगाया था कि राज्यपाल निर्वाचित सरकार के कामों को बाधित कर राज्य की प्रगति में रोड़ा बन रहे हैं. सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ के नेतृत्व वाली तीन जजों की बेंच ने इसे संवैधानिक गतिरोध कहते हुए गंभीर चिंता का विषय कहा था. रिपोर्ट्स के मुताबिक राज्यपाल रवि इसके बाद भी करीब 10 बिलों को लौटा चुके हैं.
तमिलनाडु विधानसभा अध्यक्ष एम अप्पावू ने 18 नवंबर शनिवार को विधानसभा का विशेष सत्र बुलाया है. ऐसा माना जा रहा है कि इसमें बिलों की मंजूरी के लिए फिर से राज्यपाल के पास भेजा जाएगा. संविधान का अनुच्छेद 200 कहता है की अगर कोई विधेयक संशोधन या बगैर संशोधन सदन से दोबारा पास होता है तो राज्यपाल उसपर सहमति नहीं रोकेंगे.
तमिलनाडु में क्या है विवाद
तमिलनाडु में राज्यपाल और सरकार के बीच का विवाद तब सब के सामने खुल के सामने आया जब इसी साल जनवरी में राज्य के राज्यपाल आरएन रवि ने राज्य के नाम को बदलने की बात कही थी. विवाद का मामला सिर्फ इतना भर नहीं है. तमिलनाडु विधानसभा के शीतकालीन सत्र के दौरान राज्यपाल आरएन रवि को सरकार की तरफ से भाषण पढ़ने के लिए दिया गया. यही नियम भी है.
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“केंद्र सरकार भी राष्ट्रपति के अभिभाषण के लिए केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा तैयार की हुई स्पीच देती है. जिसमें सरकार के कामकाज और उसकी नीतियों और प्राथमिकताओं का जिक्र होता है. उसी तरह राज्यपाल का भाषण भी राज्य की कैबिनेट तैयार करती है. जिसमें राज्य की दिशा और दशा का ब्यौरा होता है. जिसे राष्ट्रपति और राज्यपाल अपने भाषण के रूप में पढ़ते हैं.”
वापस आते हैं राज्यपाल आरएन रवि पर. राज्यपाल ने सरकार द्वारा दिया हुआ पूरा भाषण नहीं पढ़ा. उन्होंने भाषण के कुछ अंशों को जानबूझकर छोड़ दिया. जैसे धर्म निरपेक्षता, सीएन अन्नादुरई, द्रविड़ मॉडल, करुणानिधि और पेरियार जैसे कई शब्द राज्यपाल ने नहीं पढ़े. जिससे विधानसभा में उनका विरोध शुरू हो गया. मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने राज्यपाल आरएन रवि के भाषण के बाद विधानसभा में एक प्रस्ताव रखा. प्रस्ताव में कहा गया कि स्पीकर सिर्फ उन्हीं अंशों को रिकॉर्ड में रखें जो राज्य सरकार ने राज्यपाल को पढ़ने के लिए दिया था. उनको नहीं जो राज्यपाल ने अपनी मर्जी से पढ़े. प्रस्ताव पास हो गया. प्रस्ताव और विरोध के बीच ही राज्यपाल आरएन रवि खड़े हुए और राष्ट्रगान शुरू होने से पहले ही उठकर बाहर चले गए.
इसके बाद राज्यपाल आरएन रवि ने गवर्नर हाऊस में मनाए जाने वाले पोंगल त्यौहार का एक निमंत्रण पत्र भेजा. जिसमें उन्होंने राज्य का नाम तमिलनाडु नहीं बल्कि तमिझगम कर दिया. इससे विवाद ने और जोर पकड़ लिया. एमके स्टालिन की पार्टी डीएमके के कार्यकर्ताओं ने राज्य में विरोध प्रदर्शन चालू कर दिये. गवर्नर गैट-आऊट के नारे भी लगे. राज्यपाल को मोदी का एजेंट तक कहा गया. राज्यपाल का इस्तीफा मांगा जाने लगा.
आईपीएस रहे आरएन रवि 2012 में सेवा से रिटायर हुए थे. 18 सितंबर 2021 को वह तमिलनाडु के राज्यपाल नियुक्त हुए. इससे पहले आरएन रवि नागालैंड के भी राज्यपाल रहे चुके हैं. वह पिछले तीन वर्ष में तमिलनाडु सरकार के करीब एक दर्जन बिल को लटका चुके हैं. इसके बाद तमिलनाडु सरकार सुप्रीम कोर्ट पहुंची थी. पर सुप्रीम कोर्ट की तीखी टिप्पणी के बाद भी इस संकट का हल होता नजर नहीं आ रहा.