इलेक्टोरल बॉन्ड पर सुप्रीम कोर्ट में क्या हुआ? पार्टियों को कौन-कैसे देता है चंदा, सब जानिए

देवराज गौर

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सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्टोरल बॉन्ड को लेकर फैसला सुरक्षित रख लिया है.
सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्टोरल बॉन्ड को लेकर फैसला सुरक्षित रख लिया है.
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इलेक्टोरल बॉन्ड को लेकर सुप्रीम कोर्ट का फैसला सुरक्षितः इलेक्टोरल बॉन्ड मामले में तीन दिन की सुनवाई पूरी होने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है. सुप्रीम कोर्ट ने पार्टियों को मिले चंदे का हिसाब किताब न रखने के लिए चुनाव आयोग को फटकार भी लगाई है. कोर्ट ने आयोग को 30 सितंबर 2023 तक के पार्टियों को मिले चुनावी चंदे से हुई आमदनी का हिसाब देने को कहा है. चुनाव आयोग ने बताया है कि उसके पास 2019 के लोकसभा चुनावों के पहले का तो रिकॉर्ड है, लेकिन उसके बाद का नहीं. दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने 2019 के लोकसभा चुनावों से पहले पार्टियों को मिले चंदे की सारी जानकारी अपने पास सीलबंद लिफाफे में रखने के लिए कहा था.

इलेक्टोरल बॉन्ड के सुनवाई पैनल में कौन-कौन शामिल

इलेक्टोरल बॉन्ड को लेकर दाखिल याचिकाओं पर सुनवाई की शुरुआत 31 अक्टूबर को हुई थी. यह गुरुवार यानी आज 2 नवंबर को पूरी हुई. मामले की सुनवाई चीफ जस्टिस की अध्यक्षता वाली 5 जजों की संवैधानिक बेंच कर रही थी. इसमें चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, बीआर गवई, संजीव खन्ना, जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा शामिल थे.

सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ ने सरकार से पूछा कि इलेक्टोरल बॉन्ड की क्या जरूरत है?

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इस पर सरकार की ओर से पैरवी कर रहे सोलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने जवाब दिया. तुषार मेहता ने कहा कि किसने कितना पैसा दिया यह सरकार नहीं जानना चाहती. उन्होंने कहा कि चंदा देने वाला ही अपनी पहचान छुपाकर रखना चाहता है. वो नहीं चाहता कि किसी दूसरी पार्टी को इसका पता चले. इससे दूसरी पार्टी द्वारा उसे नुकसान पहुंचाए जाने का भय रहता है. उन्होंने कहा कि अगर कोई कांग्रेस को चंदा देता है, तो वह नहीं चाहेगा कि बीजेपी को इसका पता चले.

इलेक्टोरल बॉन्ड पर 6 साल बाद फैसला सुरक्षित

असल में इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम को लेकर सुप्रीम कोर्ट में चार याचिकाएं दाखिल की गईं हैं. इलेक्टोरल बॉन्ड को चुनौती देने वाली पहली याचिका साल 2017 में एसोशिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म ने दाखिल की थी. यह सुनवाई पहली याचिका दाखिल करने के 6 साल बाद हो रही है. इलेक्टोरल बॉन्ड को 2017 में अरुण जेटली ने बजट सत्र के दौरान मनी बिल के तौर पर पेश किया था. 2019 में सुप्रीम कोर्ट इलेक्टोरल बॉन्ड पर रोक लगाने से इनकार कर चुका है. इसलिए इस बार फैसले का इंतजार सभी को है.

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पार्टी को चुनावी फंड कैसे मिलता है, कौन देता है?

आम तौर पर चुनावी पार्टियां स्वैच्छिक दान, क्राउड फंडिंग, सदस्यता अभियान और कॉरपोरेट चंदे के अलावा भी कई और माध्यमों से पैसा इकठ्ठा करती हैं. एसोशिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म (एडीआर) ने अपनी एक रिपोर्ट में बताया था कि कुछ पार्टियों के 53 फीसदी फंड के स्त्रोत का कोई पता ही नहीं है. उसी रिपोर्ट में बताया गया कि पार्टियों की 36 फीसदी आय अज्ञात स्त्रोतों से आई. सिर्फ 11 फीसदी आय ही सदस्यता शुल्क से हुई.

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चुनावी बॉन्ड के तहत कोई भी स्टेट बैंक से 1 हजार, 10 हजार, 1 लाख और 1 करोड़ तक के बॉन्ड ले सकता है और मनचाही पार्टी को दे सकता है. यह बॉन्ड साल में चार बार जनवरी, अप्रैल, जुलाई और अक्टूबर के महीनों में 10 दिन की वैध अवधि के लिए जारी किए जाते हैं.

FCRA में बदलाव से विदेशी चंदा लेना भी है मुमकिन

इलेक्टोरल बॉन्ड आने के बाद सरकार ने फॉरेन कांन्ट्रिब्यूशन रेगुलेशन एक्ट (एफसीआरए) में भी बदलाव किए. अब राजनैतिक पार्टियां विदेशी चंदा भी ले सकती हैं. कोई भी कंपनी कितना भी पैसा चंदे के रुप में दे सकती है. साथ ही, कोई भी व्यक्ति या कंपनी गुप्त रूप से किसी भी पार्टी को चंदा दे सकती है.

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