अपराधी नेताओं के आजीवन चुनाव लड़ने पर रोक की मांग वाली याचिका पर SC में क्या फैसला आया?

देवराज गौर

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सुप्रीम कोर्ट ने आपराधिक पृष्ठभूमि वाले नेताओं पर आजीवन बैन लगाने का मांग करने वाली अश्विनी उपाध्याय की याचिका पर फैसला सुनाया है.
सुप्रीम कोर्ट ने आपराधिक पृष्ठभूमि वाले नेताओं पर आजीवन बैन लगाने का मांग करने वाली अश्विनी उपाध्याय की याचिका पर फैसला सुनाया है.
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Lifelong Political Ban on Criminal Leaders: राजनीति का आपराधीकरण रोकने के लिए वकील और भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) नेता अश्विनी उपाध्याय की जनहित याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया है. सुप्रीम कोर्ट ने सभी हाई कोर्ट से कहा है कि जनप्रतिनिधियों के खिलाफ पेंडिंग आपराधिक मामलों की सुनवाई के लिए विशेष पीठ का गठन करें.

अश्विनी उपाध्याय ने 2016 में एक PIL (पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन) दाखिल की थी. उस समय उन्होंने तीन मांग की थी. पहला विधायकों/सांसदों (MLA/MP) का मुकदमा एक साल के अंदर डिसाइड हो. दूसरा जिन लोगों को सजा मिल चुकी है उन लोगों के चुनाव लड़ने पर आजीवन प्रतिबंध हो. तीसरा, सजायाफ्ता नेता के अपनी पार्टी बनाने और पार्टी पदाधिकारी बनने पर भी रोक लगे.

सांसदों और विधायकों के आपराधिक मामलों को एक साल के भीतर निपटाएं कोर्ट: SC

इस याचिका की पहली मांग पर सुप्रीम कोर्ट ने अपना निर्णय सुना दिया है. उपाध्याय के मुताबिक बकाया अगली दो शिकायतों के लिए सुनवाई अगले महीने होगी.

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सुप्रीम कोर्ट ने देश के सभी हाई कोर्ट को आदेश दिया है कि वह अपने यहां स्पेशल बेंच बनाएं और उनके राज्य में जितने भी आपराधिक केस चल रहे हैं चाहे वह सिटिंग MLA/MP हैं या भूतपूर्व, उनका फैसला हर हालत में एक साल के अंदर करें.

उच्चतम न्यायालय ने देश के सभी जिला न्यायालयों को भी निर्देश दिया है कि MLA/MP के केस में कोई तारीख पर तारीख नहीं देंगे. डे-टू-डे हियरिंग करें और एक साल के अंदर फैसला करें.

इस मामले में निर्णय सुनाते हुए मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ ने कहा कि उच्चतम अदालत के लिए ऐसे मामलों को निपटाने के लिए ट्रायल कोर्ट के लिए एक समान दिशानिर्देश बनाना मुश्किल है. उन्होंने कहा कि इसे लेकर कई कारक मौजूद हैं, विभिन्न राज्यों की अलग-अलग परिस्थितियां हैं. उच्च न्यायालय इन मामलों से निपट रहे हैं, इसलिए हम इसे उच्च न्यायालयों पर छोड़ते हैं.

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जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 8(1) की वैधता को भी चुनौती

याचिकाकर्ता अश्विनी उपाध्याय ने सुप्रीम कोर्ट में जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 8(1) की वैधता को भी चुनौती दी है. इसके मुताबिक कोई सांसद या विधायक एक आपराधिक मामले में छह साल की सजा काटने के बाद विधायिका में वापस आ सकता है. याचिका में कहा गया है कि

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अगर किसी सामान्य नागरिक को आपराधिक मामले में सजा होती है, तो उसे आजीवन सरकारी सेवाओं के लिए अयोग्य ठहरा दिया जाता है. वहीं जनप्रतिनिधित्व अधिनियम के तहत 6 साल की सजा पूरी करने के बाद नेता चुनाव लड़ सकता है,

जो कि पूरी तरह से भेदभाव और असमानता को दर्शाता है.

PIL दाखिल करने वाले अश्विनी उपाध्याय ने क्या बताया

अश्विनी उपाध्याय के मुताबिक 2016 में PIL दाखिल करने के बाद से 250 से ज्यादा विधायकों और सांसदों को सजा हो चुकी है. उन्होंने कहा

“कानून में चूंकि खामियां हैं इसलिए जो लोग खुद चुनाव नहीं लड़ पा रहे हैं वो पार्टी अध्यक्ष बन कर दूसरों को चुनाव लड़ा रहे हैं. रैली कर रहे हैं, मीटिंग कर रहे हैं, टिकट डिसाइड कर रहे हैं, मैनिफेस्टो बना रहे हैं.’ भारत में जो सरकारें चलती हैं वह एक तरीके से पोलिटिकल पार्टियां चलाती हैं. उन्होंने कहा कि देश में राजनैतिक पार्टियां ही तय करती हैं कि कौन प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, राष्ट्रपति और राज्यपाल बनेगा. लेकिन, पोलिटिकल पार्टी का अध्यक्ष एक अपराधी हो सकता है.

इसलिए हमने यह मांग की है कि जो लोग सजायाफ्ता हैं वो लोग न तो जिंदगी भर चुनाव लड़ पाएं और न ही किसी पार्टी के पदाधिकारी बन पाएं. सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट और डिस्ट्रिक्ट कोर्ट दोनों को एक साल के भीतर सभी केसों को क्लियर करने को कहा है. अभी वर्तमान में देश भर में MLA और MP के खिलाफ करीब 5000 केस चल रहें हैं. उम्मीद है कि एक साल के भीतर ये क्लियर हो जाएंगे

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