मोदी सरकार के लिए बन गई चुनौती! पुरानी vs नई पेंशन स्कीम के विवाद को समझिए

देवराज गौर

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पुरानी पेंशन योजना लागू करने के लिए आंदोलन.
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नई दिल्लीः पेंशन दरअसल एक तरह की आर्थिक सुरक्षा है जो सरकारें या कंपनियां अपने कर्मचारियों को उनके रिटायरमेंट के बाद उनके आरामदायक जीवन जीने के लिए देती हैं. पेंशन सरकारी नौकरी में स्टेबिलिटी और सिक्योरिटी मुहैया कराती है.

भारत में पेंशन की शुरुआत होती कहां से है

अंग्रेजों ने 1857 की क्रांति के बाद ये सोचा कि अपने प्रशासन को ऐसा बनाया जाए कि जो लोग समाज में प्रभाव रखते हैं एवं जिनके कारण उनकी सत्ता को खतरा हो सकता है और बगावत कर सकते हैं उनको अंग्रेजों ने पेंशन देना शुरु कर दिया. चाहे वह राजे-महाराजे हों या फिर कोई रियासत. इसी व्यवस्था को आगे बढ़ाते हुए अंग्रेज इंण्डियन पेंशन एक्ट, 1871 लेकर आए.

साल 1881 में अंग्रेज सरकार के रॉयल कमीशन ऑन सिविल एस्टेब्लिशमेंट ने पहली बार रिटायर्ड कर्मचारियों को पेंशन देने की व्यवस्था शुरु कर दी. 1924 में अंग्रेजों के रॉयल कमीशन ने यह रकमेंड किया कि जो सैलरी है रिटायरमेंट के बाद उसका 50 फीसद कर्मचारियों को मिलता रहे.

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भारत में पेंशन मिलने के प्रमाण 3 ईसा पूर्व में जाते हैं. शुक्र नीति के अनुसार 40 साल की सेवा देने के बाद एक राजा को अपने कर्मचारियों को वेतन का आधा मुआवजा हर माह देना होता था.

क्या है पुरानी पेंशन स्कीम

पुरानी पेंशन स्कीम में रिटायरमेंट के वक्त मिलने वाली सैलरी की आधी धनराशि हर महीने पेंशन के रूप में दी जाती है. रिटायरमेंट के बाद जो एकमुश्त रकम मिलती है उसे रिटायरमेंट ग्रैच्युटी कहते हैं. ओल्ड पेंशन स्कीम में जो पेंशन मिलती थी उसका खर्चा सरकार वहन करती थी. यानि कि इसमें कर्मचारियों की सैलरी से कोई भी कटौती नहीं होती थी. इसमें पेंशन के अलावा सरकार डीए यानि महंगाई भत्ता भी देती थी जो सरकार साल में एक या दो बार बढ़ाती थी. वेतन आयोग के आने पर नौकरीपेशा लोगों की सैलरी बढ़ने पर पेंशन में भी बढ़ोतरी होती है.

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साल 2011 की जनगणना के हिसाब से कामकाजी लोगों में सिर्फ 12 फीसद लोग ही ऐसे थे जिन्हें रिटायरमेंट के बाद पेंशन का लाभ मिला. इनकी संख्या करीब 58 मिलियन यानि लगभग 6 करोड़ थी.

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भारत अपनी जीडीपी का 2.2 फीसदी हिस्सा पेंशन में देता है. वहीं अगर दुनिया के बाकी देशों से तुलना करें तो अमेरिका अपनी जीडीपी का 7.5 फीसद , इंग्लैंड 5 फीसद. इटली और फ्रांस तो अपनी जीडीपी का 15 फीसदी हिस्सा पेंशन में दे देते हैं.

फिर क्या हुआ

साल 2004 में अटल बिहारी वाजपेयी की एनडीए सरकार ने ओल्ड पेंशन स्कीम को बंद कर नई पेंशन स्कीम लागू की. कारण था सरकारों पर बढ़ता कर्ज का बोझ. हांलाकि उस दौर में कांग्रेस को भी वह स्कीम बहुत पसंद आई. कांग्रेस शासित राज्य सरकारों ने भी इसे अपने यहां लागू किया. सिर्फ कम्युनिस्ट सरकारें इसके खिलाफ थीं जिसने पश्चिम बंगाल और त्रिपुरा में इसे अपने यहां लागू नहीं किया था.

क्या है नई पेंशन स्कीम

नई पेंशन स्कीम में इसमें सरकारी कर्मचारी को अपनी बेसिक सैलरी और डीए का 10 फीसदी हिस्सा हर महीने पेंशन फंड को देना पड़ता है. इसके बाद सरकार उसमें 14 फीसद हिस्सा अपनी तरफ से जोड़ती है. जब तक कर्मचारी नौकरी करता रहता है तब तक उसका यह पैसा पेंशन फंड में जाता रहता है. यह पेंशन फंड उस पैसे को अलग-अलग जगहों पर निवेश करता रहता है जैसे बॉंड, शेयर इत्यादि. इस फंड को रेग्युलेट करने के लिए सरकार ने एक संस्था पेंशन फंड रेग्युलेटरी एण्ड डेवलपमेंट ऑथोरिटी भी बनाई. PFRDA से रेग्युलेटेड आपके फंड को प्रोफेशनल फंड मैनेजर्स देखते हैं और ज्यादा से ज्यादा मुनाफे के लिए काम करते हैं.

जब आप रिटायर होते हैं तो आपके पेंशन फंड में जो पैसा जमा होता है उसका 60 फीसद तो आप एकमुश्त निकाल सकते हैं. बाकी का पैसा आपको पेंशन के जरिये हर महीने मिलता रहता है. अब सरकार ने एनपीएस को सरकारी कर्मचारियों के अलावा बाकी लोगों के लिए भी खोल दिया है. 2009 के बाद कोई भी अपना पैसा एनपीएस में डाल सकता है. लेकिन जो सरकारी नौकरी में नहीं है उनके फंड में सरकार कुछ भी नहीं देती उसमें जो पैसा है वह आपको खुद ही जमा करना होता है.

प्राईवेट कर्मचारियों को इसमें पैसा डालना अनिवार्य नहीं है लेकिन सरकारी कर्मचारियों को इसमें पैसा डालने की बाध्यता है.

पुरानी पेंशन में क्या है खास जो हो रहा है विवाद

– जब तक जीवित हैं पेंशन मिलती रहेगी.
– तयशुदा फार्मूला है कि कितनी पेंशन मिलेगी.
– साथ में जब-जब महंगाई भत्ता बढ़ेगा, आपकी पेंशन भी बढ़ती रहेगी. – इसके लिए आपकी सैलरी में से कोई पैसा नहीं कटता है.
– पेंशन का पूरा खर्च सरकार उठाती है.
– अगर कर्मचारी की मौत हो जाती है तो उनके जीवनसाथी को लास्ट बेसिक पे का 30 फीसद पेंशन के तौर पर मिलता है.

नुकसान

– इसकी वजह से सरकार पर पेंशन देने का आर्थिक बोझ बढ़ता है.
– बढ़ती जीवन प्रत्याशा दर के साथ ही सरकारों पर लंबे समय तक पेंशन देने का बोझ बढ़ना.
– अगर सरकार अपने बजट का एक बड़ा हिस्सा पेंशन के तौर पर ही दे देगी तो विकास कार्यों के लिए धन जुटाने में दिक्कत.

नई पेंशन स्कीम का विरोध कर रहे लोगों का कहना है कि यह मार्केट ड्रिवन है अगर मार्केट सही रिटर्न दे रहा है तब तो सही है और अगर कहीं मार्केट मंदी के महौल में है तो आपको काफी नुकसान उठाना पड़ सकता है. इसके अलावा कंपाउंडिग इफेक्ट के कारण भी इसके लमसम अमाउंट में भारी अंतर आ जाता है.

उदाहरण के तौर पर इसे आप ऐसे समझिए कि आप 8 फीसद की दर पर 5000 रू की धनराशि हर महीने 30 साल के लिए जमा करते हैं उसमें आपको रिटायरमेंट के समय जो फंड मिलेगा वह होगी करीब 74 लाख. वहीं अगर आप यही अमाउंट इसी दर पर 25 साल के लिए जमा करते हैं तो आपको मिलेंगे मात्र 47 लाख रुपए.

लोगों का कहना है कि इतना अंतर तब है जब बाजार समान दर से रिटर्न दे. अगर इतने वर्षों में बाजार की चाल बदलती है और बाजार गिर जाता है तो इसकी भी कोई उम्मीद नहीं है. हमारी गर्दन पर सारी जिंदगी रिस्क की तलवार लटकती रहती है.

पॉलिटिक्स क्या है?

ओल्ड पेंशन स्कीम को लागू करने का सबसे पहला फैसला राजस्थान की गहलोत सरकार ने 2022 में लिया था और अब यह मुद्दा जोर पकड़ता जा रहा है. राजस्थान में करीब 5.5 लाख कर्मचारी ऐसे हैं जो इसके अंदर आए हैं. उसके बाद छत्तीसगढ़, झारखंड, पंजाब और हिमाचल भी इससे जुड़े.

गौरतलब है कि इसी साल मध्य प्रदेश में करीब 7.5 लाख सरकारी कर्मचारी ओल्ड पेंशन की मांग को लेकर एक साथ मास लीव पर चले गए. यह महत्वपूर्ण इसलिए भी है क्योंकि दिसम्बर में यहां चुनाव होने हैं और कांग्रेस ने सरकार बनने पर ओल्ड पेंशन को फिर से लागू करने का वादा किया है.

भाजपा शासित सरकारें भी इस मुद्दे को समझ रही हैं और एक बड़े वोट बैंक को छिटक जाने का जोखिम भी मोल नहीं लेना चाहती इसलिए किसी न किसी हल पर पहुंचना चाहती हैं. इसी को लेकर हरियाणा सरकार ने भी पुरानी पेंशन पर विचार करने के लिए एक नई कमिटी का गठन करने का फैसला लिया है. तो वहीं दूसरी ओर आरएसएस की मजदूर यूनियन भारतीय मजदूर संघ ने भी यह मांग की है कि केंद्र सरकार को पुरानी पेंशन स्कीम वापिस लानी चाहिए.

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