अजमेर: गौरी परिवार चढ़ाता है झंडा तभी होती है उर्स की शुरूआत, ऐसा क्यों? जानें
Ajmer: अजमेर में ख्वाजा गरीब नवाज के दर पर 811वें उर्स के झंडे की भीलवाड़ा के गौरी परिवार द्वारा परंपरागत तरीके से रस्म निभाने के बाद शुरूआत हो गई है. इस मौके पर 25 गोले दागकर सलामी भी दी गई. भीलवाड़ा के गौरी परिवार ने यह झंडा चढ़ाने की 79वीं रस्म अदा की है. 78 […]
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Ajmer: अजमेर में ख्वाजा गरीब नवाज के दर पर 811वें उर्स के झंडे की भीलवाड़ा के गौरी परिवार द्वारा परंपरागत तरीके से रस्म निभाने के बाद शुरूआत हो गई है. इस मौके पर 25 गोले दागकर सलामी भी दी गई. भीलवाड़ा के गौरी परिवार ने यह झंडा चढ़ाने की 79वीं रस्म अदा की है.
78 साल पहले भीलवाड़ा के लाल मोहम्मद गौरी को सत्तार बादशाह ने साल 1944 में इस झंडे की जिम्मेदारी सौंपी थी. लाल मोहम्मद गौरी के पोते फखरुद्दीन गौरी ने 85 फीट ऊंचे बुलंद दरवाजे पर शान औ-शौकत के साथ इस उर्स का झंडा चढ़ाया. इसी के साथ गरीब नवाज ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती के 811वें उर्स की शुरुआत हो गई. फखरुद्दीन गोरी ने झंडा चढ़ाने की यह रस्म सैयद मारूफ अहमद नबीरा मुत्तवली सैयद असरार अहमद की सदारत में अदा की.
इस्लामी कैलेंडर के मुताबिक जमादी उस्मानी महीने की 25 तारीख को असर की नमाज के बाद दरगाह गेस्ट हाउस से सैयद फारूक अहमद चिश्ती की सदारत और भीलवाड़ा के फखरुद्दीन गौरी की अगुवाई में निकले जुलूस में लंगर खाना गली नाला बाजार दरगाह होते हुए बुलंद दरवाजे पर पहुंचा. जहां झंडे को चूमने के लिए हजारों की संख्या में अकीदत मंद मौजूद थे.
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ऐसे मिली भीलवाड़ा के गौरी परिवार को यह जिम्मेदारी
सैयद रहूफ चिश्ती ने बताया कि आजादी से पहले झंडा चढ़ाने की परंपरा साल 1928 में पेशावर के हजरत सैयद अब्दुल बादशाह जान रहमतुल्ला अली ने शुरू की थी. वह अकबरी मस्जिद में रहते थे और उनके मुरीद हिंदुस्तान और पाकिस्तान दोनों मुल्कों में थे. भारत की आजादी के बाद बादशाह पाकिस्तान में ही रह गए. जहां उनकी मजार है. उन्होंने अपने मुरीद भीलवाड़ा के लाल मोहम्मद गौरी को उर्स के झंडे की व्यवस्था का जिम्मा सौंपा. साल 1944 से यह झंडा भीलवाड़ा के लाल मोहम्मद गौरी का परिवार चढ़ाता आ रहा है. साल 1944 से 1991 तक यह रस्म लाल मोहम्मद गौरी ने निभाई. उनके बाद उनके बेटे मोइनुद्दीन गौरी ने साल 2006 तक झंडा चढ़ाया और इसके बाद फखरुद्दीन गौरी यह रस्म निभा रहे हैं.
अजमेर का हिंदू परिवार सिलता है उर्स का झंडा
दरगाह शरीफ के 85 फीट ऊंचे बुलंद दरवाजे पर शान औ शौकत से चढ़ाये जाने वाले झंडे को हिंदू परिवार तीन पीढ़ियों से सिलता आ रहा है. सैयद रहुफ चिश्ती ने बताया कि सबसे पहले प्यारेलाल ने झंडा सिलने की शुरुआत की थी. उस समय उनकी दुकान अजमेर में दरगाह के पास ही थी. उसके बाद हर साल यह झंडा उनके परिवार द्वारा ही सिला जाता है. पहले गणपत लाल ने इस झंडे की सिलाई की थी. अब उनके बेटे ओमप्रकाश इस झंडे को सिलते हैं. टेलर ओमप्रकाश इस झंडे को सिलना अपने लिए फक्र की बात मानते हैं. उन्होंने मंगलवार शाम को मुतवल्ली परिवार के सदस्य सैयद मरूफ चिश्ती और सैयद रहुफ चिश्ती के साथ भीलवाड़ा के गौरी परिवार को यह सिला हुआ झंडा सौंप दिया था.