अजब-गजब: राजस्थान के इस इलाके में दूल्हे की बजाय पिता को वरमाला पहनाती है दुल्हन, परंपरा के बारे में जानकर रह जाएंगे दंग!

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राजस्थान अपने खान-पान रहन-सहन के लिए तो दुनिया भर में जाना ही जाता है. यहां की कई परंपराएं भी अनोखी है. शादी में पति को वरमाला पहनाते तो हमने देखा हैं, लेकिन क्या आपने दुल्हन को पति की बजाए पिता को माला पहनाते देखा है? जी हां, यह सुनने में अजीब सा है, लेकिन यह हकीकत है और यह परंपरा भी राजस्थान के एक इलाके की है.

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राजस्थान अपने खान-पान रहन-सहन के लिए तो दुनिया भर में जाना ही जाता है. यहां की कई परंपराएं भी अनोखी है. शादी में पति को वरमाला पहनाते तो हमने देखा हैं, लेकिन क्या आपने दुल्हन को पति की बजाए पिता को माला पहनाते देखा है? जी हां, यह सुनने में अजीब सा है, लेकिन यह हकीकत है और यह परंपरा भी राजस्थान के एक इलाके की है. जिसे माउंट आबू में आदिवासी समाज के लाेग सैंकड़ों साल से निभाते आ रहे हैं.  

इस इलाके में आदिवासी (Tribal Community) समाज में सदियों से स्वयंवर प्रथा जारी है. माउंट आबू (Mount Abu) स्थित नक्की झील पर पीपल पूर्णिमा पर हर साल आदिवासी समाज द्वारा मेले का आयोजन होता है, यहां मेले में स्वयंवर की अनूठी परंपरा निभाई जाती है. जिसमें आदिवासी युवतियां अपनी पसंद का वर समाज के सामने चुनती हैं.

समाज के लोगों की होती है सहमति

स्वयंवर के दौरान आदिवासी समाज की लड़कियां खुद अपने पसंद का वर चुनती है. इस दौरान समाज के लोग भी वहां मौजूद रहते हैं और उनकी भी सहमती होती है. इस परंपरा की खास बात यह है कि लड़की अपने पसंद का पति चुनने से पहले अपने पिता से इसकी इजाजत लेती है. लड़की पिता को माला पहनाकर अपने पसंद का पति चुनने का इजाजत लेती है. फिर पिता उसे स्वयंवर के लिए इजाजत देता है. लड़की अपने पसंद के युवक को माला पहनाकर अपना साथी चुनती है.

इस प्रथा के पीछे यह है वजह 

आदिवासियों की यह परंपरा यहां सदियों पहले हुई. यह कुंवारी कन्या और रसिया बालम की प्रेमकथा से जुड़ी है. ऐसी मान्यता है कि माउंट में अघोरी रसिया बालम को राजकुमारी कुंवारी कन्या से प्रेम हो गया था. वह विवाह की अनुमति लेने के लिए राजा के यहां गया. जहां रानी ने शर्त रखी दी कि वह अपनी छोटी उंगली के नाखून से एक रात में झील खोदकर दिखाए. रसिया बालम ने अपनी तप शक्ति से ब्रह्मकाल तक लगभग झील को खोद ही दिया था. वही, झील अब नक्की लेक कहलाती है. 

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बालम की कोशिश को रोकने के लिए राजकुमारी की मां ने छुपकर ब्रह्मकाल में ही मुर्गे की आवाज निकाली. इस पर रसिया बालम हताश होकर जंगल में चला गया. जब वहां देर तक सूर्योदय नहीं हुआ तो वो अपनी शक्तियों से जाना गया कि मुर्गे की आवाज राजकुमारी की मां ने निकाली थी. इस पर राजकुमारी और मां से मिलीभगत के शक से कुंवारी कन्या को श्राप देकर पत्थर का बना दिया. बता दें कि यहां के गरासिया परिवारों के लिए आबू की नक्की झील गंगा-यमुना-सरस्वती की तरह है. यही इनका तीर्थ स्थल है. इसी पवित्र स्थान पर वो विवाह करते हैं.

(राजस्थान तक के लिए इंटर्न कर रहे नेहा मिश्रा की स्टोरी.)
 

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