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बहुत प्राचीन है मां यक्षिणी भवानी भलुनी धाम, नवरात्र में लगती है भक्तों की भारी भीड़

News Tak Desk

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बिहार के रोहतास जिले के दिनारा प्रखंड मुख्यालय से सात किलोमीटर पूरब भलुनी स्थित यक्षिणी भवानी धाम अति प्राचीन प्रसिद्ध शक्तिपीठ हैं. मान्यता के अनुसार देवासुर संग्राम के बाद अहंकार से भरे इंद्र को यक्षिणी देवी ने यहीं सत्य का पाठ पढ़ाया था. इंद्र ने देवी दर्शन के पश्चात उनकी स्थापना की थी. यक्षिणी भवानी को श्रद्धालुजन गंवई जुबान में भलुनी भवानी कहकर संबोधित करते हैं.

यक्षिणी नाम से प्रसिद्ध हैं मां दुर्गा

 पुराणों अन्य धर्म ग्रंथों के अनुसार देवी यक्षिणी मां दुर्गा का ही एक नाम है. मंदिर में देवी की प्रतिमा के अलावे भगवान शंकर कुबेर की प्राचीन प्रतिमा भी स्थापित है, जो पूर्व मध्यकालीन है. धाम में सूर्य मंदिर, कृष्ण मंदिर, साईं बाबा का मंदिर, गणिनाथ मंदिर रविदास मंदिर भी है. मंदिर का पुनर्निर्माण आधुनिक काल में हुआ है. मंदिर के बाहर एक अति प्राचीन  विशाल तालाब है. आसपास में वन के अवशेष आज भी विद्यमान हैं, जिसमें काफी संख्या में बंदर रहते हैं.

मां के दरबार में साल में दो बार लगता है मेला

यहां नवरात्र में हजारों की तादाद में भारी संख्या में श्रद्धालु मां के दर्शन पूजन के लिए जुटते हैं. धाम में नवरात्र के दिनों में सुबह तीन बजे से ही मां के दर्शन पूजन के लिए भक्तों की लंबी कतार लग जाती है. चैत नवरात्र के एक दिन बाद भलुनी धाम में विशाल मेला लगता था, और करीब एक महीने तक चलता था. जो अब प्रायः समाप्ति के कगार पर है. क्षेत्र के लोगों का मानना है कि भलुनी मेला में जरुरत के सभी समानों की खरीदारी लोग करते थे, जिसमें देश के कोने-कोने से आकर व्यवसायी एक माह तक अपना दुकान लगाते थे. इससे पहले यहां पशुओं का भी मेला भी लगता था, जिसमे गांव के लोग खरीद-बिक्री करते थे.

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बता दें, भलुनी धाम में आज से नहीं सैकड़ों वर्ष से बंदरों का बहुत बड़ा जत्था रहता है. सबसे बड़ी बात यह है कि यह बंदर कभी भी बागीचे से बाहर नहीं जाते हैं. और ही ही ग्रामीणों और किसानों को कोई नुकसान पहुंचाते हैं. भलुनी धाम पहुंचने वाले श्रद्धालू प्रसाद के साथ-साथ भारी मात्रा में अनाज और फल-फूल भी लेकर जाते हैं.

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