बिहार वोटर लिस्ट मामला: सुनवाई के लिए सुप्रीम कोर्ट ने दी तारीख, इधर मनोज झा ने भी लगाई याचिका

News Tak Desk

बिहार में वोटर लिस्ट की समीक्षा को लेकर उठे विवाद पर सुप्रीम कोर्ट 10 जुलाई को सुनवाई करेगा. विपक्ष और सामाजिक संगठन इसे संविधान और मताधिकार के खिलाफ बताते हुए चुनाव आयोग के फैसले को चुनौती दे रहे हैं.

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बिहार की वोटर लिस्ट में चल रहे स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) को लेकर मचा बवाल अब सुप्रीम कोर्ट की चौखट तक पहुंच चुका है. इस मामले की अगली अहम सुनवाई 10 जुलाई को होनी है, जिसमें देश की सर्वोच्च अदालत यानी सुप्रीम कोर्ट ये तय करेगी कि इलेक्शन कमीशन की इस प्रक्रिया पर रोक लगाई जाए या नहीं.

हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने फिलहाल इस रिवीजन प्रक्रिया पर कोई अंतरिम रोक लगाने से इनकार कर दिया है, लेकिन कोर्ट ने सभी पक्षों की दलीलें सुनने के लिए सहमति जताई है.

क्या है पूरा मामला?

दरअसल इस राज्य में इसी साल विधानसभा चुनाव होने हैं. इससे पहले चुनाव आयोग ने 24 जून को मतदाता सूची का विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) शुरू करने का ऐलान किया था. यह प्रक्रिया 25 जून से 26 जुलाई तक चलेगी. इसमें 77 हजार से ज्यादा बूथ लेवल ऑफिसर्स (BLOs) और अन्य सरकारी कर्मचारियों की मदद से करीब 7.8 करोड़ मतदाताओं की जांच की जा रही है.

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चुनाव आयोग ने इस बार मतदाताओं से नागरिकता से जुड़ा दस्तावेज भी मांग लिया, जिससे कई लोग चिंतित हैं कि कहीं उनका नाम वोटर लिस्ट से न हटा दिया जाए.

मनोज झा ने भी दाखिल की याचिका

SIR प्रक्रिया पर राजद सांसद मनोज झा ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर दी है. उनका मानना है कि इस तरह की प्रक्रिया संविधान के अनुच्छेद 14, 19, 21, 325 और 326 का उल्लंघन है. उन्होंने कहा कि इससे लाखों लोगों का वोटिंग का अधिकार खतरे में पड़ सकता है.

वहीं गैर सरकारी संगठन ADR (एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स) ने भी सुप्रीम कोर्ट में दलील दी कि यह आदेश 24 मई को दिया गया और यह पूरी तरह मनमाना और असंवैधानिक है. टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा और कई अन्य विपक्षी नेताओं ने भी इस फैसले को लोकतंत्र के खिलाफ बताते हुए इसका विरोध किया है. याचिकाओं में यह भी कहा गया है कि यह प्रक्रिया जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1950 और रजिस्ट्रेशन ऑफ इलेक्टर्स रूल 1960 के नियम 21ए के खिलाफ है.

चुनाव आयोग का पक्ष

चुनाव आयोग का कहना है कि यह प्रक्रिया हर बार चुनाव से पहले की जाने वाली एक नियमित कार्रवाई है ताकि मतदाता सूची को अपडेट किया जा सके. आयोग ने बाद में दस्तावेज जमा करने के नियमों में कुछ ढील भी दी है.

इस मुद्दे पर अब तक कई याचिकाएं दाखिल हो चुकी हैं और कांग्रेस सहित कई अन्य दल भी सुप्रीम कोर्ट का रुख करने की तैयारी में हैं. माना जा रहा है कि आने वाले दिनों में इस मामले में और भी याचिकाएं दाखिल हो सकती है. अब सबकी नजर 10 जुलाई की सुनवाई पर टिकी है. क्या सुप्रीम कोर्ट इस प्रक्रिया को लेकर कोई बड़ा आदेश देगा या चुनाव आयोग को ही अपनी प्रक्रिया पूरी करने देगा.

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