Prashant Kishor News: बिहार जीतने को तैयार प्रशांत किशोर, बंपर प्लान के साथ उतरेगा जनसुराज
बिहार विधानसभा चुनाव की हार के बाद प्रशांत किशोर ने जन सुराज संगठन को भंग कर नई रणनीति तैयार की है. अब पीके का फोकस जमीनी मुद्दों और 2026 के एमएलसी चुनावों पर है.

बिहार विधानसभा चुनाव में मनचाहा नतीजा न मिलने के बाद भी प्रशांत किशोर पीछे हटने के मूड में नहीं हैं. हार को उन्होंने अंत नहीं, बल्कि नई शुरुआत बना लिया है. इसी सोच के साथ जन सुराज में बड़े बदलाव का फैसला लिया गया है, जिसे पार्टी के भीतर “री-लॉन्च प्लान” कहा जा रहा है.
पूरा ढांचा तोड़ा, अब फिर से खड़ा होगा संगठन
सबसे चौंकाने वाला कदम यह है कि प्रशांत किशोर ने जन सुराज के मौजूदा संगठन को पूरी तरह भंग कर दिया है. मतलब साफ है कि अब पुरानी टीम और ढांचे पर भरोसा नहीं, बल्कि बिल्कुल नए सिरे से पार्टी को गढ़ा जाएगा. इस बार भीड़ जुटाने से ज्यादा जोर ऐसे कार्यकर्ताओं पर होगा जो लंबे समय तक मैदान में टिक सकें. इसके लिए प्रखंड स्तर से लेकर राज्य स्तर तक पर्यवेक्षक लगाए जा रहे हैं, ताकि एक मजबूत कैडर सिस्टम तैयार किया जा सके.
विधानसभा में नहीं, अब सड़क पर दिखेगा जन सुराज
फिलहाल बिहार विधानसभा में जन सुराज का कोई प्रतिनिधि नहीं है, इसलिए पार्टी ने तय किया है कि वह सदन की जगह सड़कों पर विपक्ष की भूमिका निभाएगी. प्रशांत किशोर की योजना है कि आम लोगों की रोजमर्रा की दिक्कतों को मुद्दा बनाया जाए – जैसे दाखिल-खारिज में गड़बड़ी, आय और आवासीय प्रमाण पत्र के लिए भटकना और प्रखंड कार्यालयों में फैला भ्रष्टाचार. इन्हीं समस्याओं को लेकर जन सुराज आने वाले दिनों में आंदोलन और धरना-प्रदर्शन करेगा.
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अगला बड़ा टारगेट: 2026 का एमएलसी चुनाव
जन सुराज की नजर अब सीधे 2026 में होने वाले बिहार विधान परिषद चुनाव पर है. खासकर स्नातक और शिक्षक कोटे की सीटों पर पार्टी अपने उम्मीदवार उतारने की तैयारी में है. पटना, दरभंगा, तिरहुत और कोसी जैसे बड़े इलाकों को इस रणनीति का केंद्र बनाया गया है. पार्टी का मानना है कि इन सीटों के जरिए वह बिहार की राजनीति में अपनी मजबूत मौजूदगी दर्ज करा सकती है.
हार से सबक, वापसी की तैयारी
प्रशांत किशोर साफ कर चुके हैं कि चुनावी झटका उन्हें रोक नहीं सकता. संगठन को तोड़कर दोबारा खड़ा करना, सड़क पर उतरकर जनता के मुद्दों पर लड़ना और 2026 के एमएलसी चुनाव को निशाना बनाना – ये सब जन सुराज की नई राजनीति का संकेत हैं. आने वाले महीनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि पीके का यह “मास्टर प्लान” बिहार की सियासत में कितनी हलचल पैदा करता है.
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