बिहार की सियासत में हलचल: बीमार नीतीश कुमार बने बीजेपी के लिए बड़ी चुनौती?

विजय विद्रोही

बिहार की राजनीति में इस समय उथल-पुथल मची हुई है. एक ओर तेजस्वी यादव, कन्हैया कुमार और प्रशांत किशोर जैसे नेता सियासी जमीन मजबूत करने में जुटे हैं, तो दूसरी ओर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सेहत को लेकर चर्चाएं गर्म हैं. राष्ट्रगान के दौरान उनकी हरकतों ने अटकलों को और तेज कर दिया है.

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बिहार की राजनीति में इन दिनों हलचल मची हुई है. जहां एक तरफ कन्हैया कुमार, तेजस्वी यादव और प्रशांत किशोर जैसे नेता अपनी पूरी ताकत झोंक रहे हैं, वहीं मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सेहत को लेकर सवाल उठ रहे हैं. हाल ही में राष्ट्रगान के दौरान नीतीश की हरकत ने फिर से चर्चाओं को हवा दी है. कभी प्रकृति यात्रा के दौरान जनता के बीच सक्रिय दिखने वाले नीतीश अचानक ऐसी स्थिति में नजर आए, जिसने उनकी सहयोगी पार्टी बीजेपी को परेशान कर दिया है. बीजेपी के शीर्ष नेता, जिनमें नरेंद्र मोदी और अमित शाह शामिल हैं, इस बात से चिंतित हैं कि नीतीश की कथित बीमारी कहीं बिहार में उनके सियासी समीकरण को बिगाड़ न दे.

विपक्ष को मिल सकता है हथियार

बीजेपी को डर है कि जैसे-जैसे विधानसभा चुनाव नजदीक आएंगे, विपक्ष नीतीश की सेहत को बड़ा मुद्दा बना सकता है. ओडिशा में नवीन पटनायक की बीमारी को चुनावी हथियार बनाकर जीत हासिल करने वाली बीजेपी अब खुद उसी स्थिति से गुजर रही है. विपक्षी नेता तेजस्वी यादव और कांग्रेस नीतीश की कथित कमजोरी को भुनाने की तैयारी में हैं. उनका कहना हो सकता है कि एक बीमार नेता बिहार जैसे बड़े राज्य की बागडोर कैसे संभाल सकता है. यह सवाल बीजेपी के लिए जवाब देना मुश्किल हो सकता है, खासकर तब जब नीतीश लगातार खुद को अगले पांच साल के लिए मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित करने का दबाव बना रहे हैं.

नीतीश: बीजेपी के लिए मजबूरी या जरूरत?

नीतीश कुमार बीजेपी के लिए एक दोधारी तलवार बन गए हैं. उनके पास 14-15% वोट बैंक है, जो बिहार में किसी भी गठबंधन के लिए निर्णायक साबित हो सकता है. बीजेपी भले ही अकेले 160-170 सीटों पर चुनाव लड़ने का सपना देखे, लेकिन नीतीश का साथ छोड़ना आसान नहीं. केंद्र में नीतीश की पार्टी के 12 सांसद मोदी सरकार के लिए बैसाखी का काम कर रहे हैं. ऐसे में बीजेपी न तो नीतीश को नाराज करना चाहती है और न ही उनकी बीमारी को नजरअंदाज कर सकती है. अगर नीतीश की सेहत को लेकर सियासी महामारी फैली, तो उनका वोट बैंक बिखर सकता है, जिसका फायदा कांग्रेस या लालू प्रसाद यादव की पार्टी उठा सकती है.

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बीजेपी की प्रवासी बिहारियों पर नजर

इस उलझन से निकलने के लिए बीजेपी ने नई रणनीति बनाई है. 22 मार्च को बिहार दिवस से शुरू होकर पार्टी देश भर में रह रहे प्रवासी बिहारियों तक पहुंचने की कोशिश कर रही है. हर 50 प्रवासी बिहारियों पर एक प्रभारी नियुक्त किया जाएगा, जो उन्हें डबल इंजन सरकार के फायदे बताएगा और चुनाव के वक्त वोट डालने के लिए प्रेरित करेगा. खास तौर पर छठ पूजा के समय को टारगेट किया जा रहा है, जब लाखों प्रवासी बिहारी अपने गांव लौटते हैं. बीजेपी का मानना है कि ये 2 करोड़ प्रवासी वोटर बिहार की सियासत में बड़ा बदलाव ला सकते हैं.

नीतीश कुमार की सेहत अब बीजेपी के लिए गले की फांस बन गई है. न उन्हें निगलते बन रहा है, न उगलते. ऐसे में बीजेपी को न केवल विपक्ष के हमलों का जवाब देना है, बल्कि नीतीश के साथ गठबंधन और अपनी चुनावी रणनीति को भी संतुलित करना है. आने वाले दिन बिहार की सियासत के लिए बेहद दिलचस्प होने वाले हैं.

यहां देखें वीडियो:

 

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