MPPSC Topper 2024: कॉन्स्टेबल की नौकरी करते-करते गिरिराज बन गए डिप्टी कलेक्टर, कैसै हुआ ये सब उन्होंने खुद बता दिया

रवीशपाल सिंह

MPPSC Topper 2024: भोपाल के गिरिराज परिहार ने एमपी पीएससी 2024 में 8वां स्थान पाकर डिप्टी कलेक्टर बने. जानिए उनकी संघर्ष और सफलता की कहानी.

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जेल प्रहरी से डिप्टी कलेक्टर बने गिरिराज परिहार
गिरिराज परिहार से खास बातचीत
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कहते है ना मेहनत करने वालों कि कभी भी हार नहीं होती. कुछ ऐसा ही कर दिखाया है मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल के रहने वाले गिरिराज परिहार ने. मध्य प्रदेश पीएससी 2024 के फाइनल रिजल्ट की घोषणा 12 सितंबर को हुई. टॉप 10 में 8 वां स्थान प्राप्त करने वाले गिरिराज परिहार की कहानी कुछ अलग ही है. गिरिराज ने अपने करियर की शुरुआत जेल प्रहरी से की और अब वे डिप्टी कलेक्टर बन गए है. इसी पर हमारे संवाददाता रवीशपाल सिंह ने उनसे खास बातचीत की, जिस दौरान गिरिराज ने अपने सफलता का मंत्र बताया. आइए विस्तार से जानते है पूरी बातचीत.

पहले जानिए गिरिराज का सफर 

गिरिराज परिहार, मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल के रहने वाले है. गिरिराज ने जेल प्रहरी से नौकरी की शुरुआत की थी. फिर वे एजुकेशन डिपार्टमेंट में असिस्टेंट डायरेक्टर बने. और अब मध्य प्रदेश पीएससी 2024 की परीक्षा पास करके वे डिप्टी कलेक्टर बन गए है.

गिरिराज ने अपने सफर पर क्या कुछ कहा?

जब गिरिराज से पूछा गया कि क्या आपको उम्मीद थी कि आप यहां तक पहुंचेंगे? इस पर गिरिराज ने बड़ी गंभीरता से कहा कि, जब तैयारी करते हैं तो हम सबसे कहते हैं ना कि आप होप फॉर द बेस्ट, लेकिन रेडी फॉर द वर्स्ट. तो मुझे सबसे अच्छे के लिए उम्मीद थी ही और मैं इसके लिए भी तैयार था कि अगर मेरा नहीं होता है तो मैं अपने आप को मेंटली प्रिपेयर करके रखूं. लेकिन कहीं ना कहीं मुझे इस बार ऐसा पहले से फील हो रहा था कि मेरी तैयारी बेहतर है और इस बार मुझे निश्चित तौर पर एक बेहतर पद मिल जाएगा.

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जेल प्रहरी और डिप्टी कलेक्टर की पढ़ाई कितनी अलग?

जब गिरिराज से पूछा गया कि, आपने जो अलग-अलग पद हासिल किए है उसके लिए क्या अलग-अलग पढ़ाई करनी होती है? इस पर गिरिराज ने कहा कि, मैंने पुलिस कांस्टेबल की परीक्षा प्राप्त पास की थी वो उनका सिलेबस अलग होता है और जो एमपीपीएससी है उसका सिलेबस अलग होता है. एमपीपीएससी में प्रीलिम्स और मेंस के पेपर होते हैं, हर पेपर के लिए अलग-अलग सिलेबस डिफाइन किया हुआ है मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग द्वारा तो उसको फॉलो करना रहता है. वहीं जेल प्रहरी परीक्षा के लिए एक दिवसीय पेपर होता है, तो जिस परीक्षा को हम टारगेट करते हैं उसके लिए हमें स्पेसिफिक उस सिलेबस के अकॉर्डिंग पढ़ना रहता है. 

लिखित परीक्षा या इंटरव्यू कौन-सा ज्यादा कठिन?

इस सवाल के जवाब में गिरिराज परिहार का कहना है कि पहले मुझे लगता था कि लिखित परीक्षा बहुत कठिन होती है. लेकिन अब मुझे ऐसा लगने लगा कि लिखित परीक्षा इतनी कठिन नहीं होती है जितना कठिन इंटरव्यू होता है. क्योंकि वहां आपको लिखने के लिए हमें सोचने के लिए वक्त मिलता है. इंटरव्यू में हमें सोचने के लिए समय नहीं मिलता है और जब पांच लोग आपके सामने बैठ के आपको जज करने के लिए बैठे होते हैं तब हमारे अंदर से वो चीजें नहीं निकलती है जो वास्तव में हमें पता भी होती है. जो सोच के गए होंगे वो भी निकल पाता. इंटरव्यू में एक-एक सेकेंड बड़ा कीमती है. वहां आपका एक-एक मूवमेंट, आपका आई कांटेक्ट आपका हर चीज नोटिस होता है जिससे आपको जज किया जाता है. 

जेल प्रहरी की नौकरी जॉइन करने के पीछे की कहानी?

इस पर उन्होंने कहा कि, उस वक्त अपने परिवार को इकोनॉमिकली और फाइनेंसियली सपोर्ट करने के लिए तो एक नौकरी मुझे प्राप्त करनी थी. इसलिए उस समय जो परीक्षा, जो विज्ञप्ति निकली मैंने उसमें फॉर्म डाला, और क्योंकि मेरी स्कूलिंग के समय मेरी पढ़ाई अच्छी थी तो मेरा उसमें चयन हो गया था. उसके बाद फिर मैंने पुलिस का एग्जाम दिया वो भी मेरा हो गया था.

डिप्टी कलेक्टर बनने का कैसे आया विचार?

गिरिराज ने बताया कि जेल प्रहरी के नौकरी के दौरान  मैंने यह सिलेक्ट किया कि अब मुझे ऊंचे पद पर जाना है. तो मुझे फिर उसके बारे में जानकारी इकट्ठी की तो पता चला कि एमपीपीएससी से हम इस पद तक पहुंच सकते हैं. फिर मैंने सेलेक्ट किया कि मुझे एमपीपीएससी की तैयारी करना है. जब कोविड में लॉकडाउन लगा था उस समय मैंने फिर निश्चित किया और उसके लिए तैयारी प्रारंभ कर दी थी. 

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