Special: शिवराज के गृह जिले की इस सीट का क्या है रहस्य! यहां जाते ही चली जाती है CM की कुर्सी
MP Election 2023: मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल से करीब 60 किलोमीटर दूर एक ऐसा कस्बा है, जिसका नाम सुनकर मुख्यमंत्री भी सहम जाते हैं. आलम यह है कि खुद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी साढ़े 16 सालों के मुख्यमंत्री कार्यकाल में अपने ही गृह जिले के इस छोटे से शहर में के किसी कार्यक्रम में […]
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MP Election 2023: मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल से करीब 60 किलोमीटर दूर एक ऐसा कस्बा है, जिसका नाम सुनकर मुख्यमंत्री भी सहम जाते हैं. आलम यह है कि खुद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी साढ़े 16 सालों के मुख्यमंत्री कार्यकाल में अपने ही गृह जिले के इस छोटे से शहर में के किसी कार्यक्रम में शामिल नहीं हुए हैं. इसका नाम है इछावर. सीहोर ज़िले के इस छोटे से शहर इछावर से एक ऐसा मिथक जुड़ा है, जो टूटने का नाम ही नहीं ले रहा है. हम इस छाेटे से शहर की चर्चा क्यों कर रहे हैं, आपको इस पूरी खबर में आगे बताएंगे…
दरअसल, ऐसी मान्यता है कि जो भी मुख़्यमंत्री इछावर गया, उसे मुख्यमंत्री पद की कुर्सी से हाथ धोना पड़ा है. यहां जाने से अब कोई मुख्यमंत्री कितना कतराता है, इसका अंदाज़ा इसी बात से लगा लीजिये कि एमपी में सबसे लम्बे समय तक मुख्यमंत्री बने रहने का रिकॉर्ड अपने नाम करने वाले शिवराज सिंह चौहान भी आज तक इछावर किसी कार्यक्रम में शामिल होने नहीं गए हैं.
एक बार शहर से गुजरे जरूर, लेकिन गाड़ी में बैठे रहे
कई साल पहले इछावर तहसील के शाहपुरा गांव आकर सीआरपीएफ के शहीद कांस्टेबल ओमप्रकाश मर्दनिया को श्रद्धांजलि देने भी तत्कालीन सीएम शिवराज इछावर कस्बे में नहीं गए थे. इसी साल मई के महीने में जब खराब मौसम की वजह से मुख़्यमंत्री का हेलिकॉप्टर उड़ान नहीं भर सका तो उन्हें सड़क मार्ग से भोपाल रवाना होना पड़ा था. रास्ते में इछावर कस्बा था, लिहाज़ा स्थानीय नेता मुख्यमंत्री का स्वागत करने सड़क के दोनों ओर खड़े हो गए थे. शिवराज यहां से गुज़रे ज़रूर लेकिन वह गाड़ी से नहीं उतरे और कार में बैठे-बैठे ही अपना स्वागत करवा लिया था.
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MP के सीएम इछावर क्यों नहीं जाते, ये है वजह
वरिष्ठ इतिहासकार आरडी गोहिया बताते हैं, ‘इछावर विधानसभा में एक मिथक जुड़ा हुआ है, जो भी राजा आया है उसे अपनी सत्ता पद गंवाना पड़ा है. इछावर एक प्राचीन कस्बा हुआ करता था, आजादी के भी पहले यहां कहा जाता है की एक राजा का महल भी बनाने का प्रयास किया गया है. यहां तंत्र विद्या में बड़ा ही सिद्ध माना जाता है. यहां चारों दिशाओं में शमशान भी बने हैं उनके अवशेष भी हैं. इसलिए यहां पर तांत्रिक क्रियाएं होती थीं तो यह माना जाता है की किसी और की शक्तियों को यहां बर्दाश्त नही किया जाता है. जो भी राजा या सत्ता शीर्षक यहां आया है, उसे अपनी सत्ता पद गंवाना पड़ा है.
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हालांकि आज के वैज्ञानिक आधुनिक युग में इसका कोई महत्व नहीं है, लेकिन हमारे देश में कुछ मान्यताएं आज भी हैं. इसलिए हम कह सकते हैं, कुछ तो है जिसके चलते ऐसा होता है. स्थानीय नेताओं ने सीएम के लंबे कार्यकाल के दौरान कई बार आमंत्रित किया लेकिन वो यहां से गुजरने के बाद भी कभी गाड़ी से नही उतरे.’
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इछावर आकर किस-किसकी गई CM की कुर्सी
– कैलाश नाथ काटजू इस मिथक के तहत मुख्यमंत्री की कुर्सी गंवाने वाले पहले नेता थे. दरअसल जनवरी 1962 को तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ. कैलाश नाथ काटजू एक कार्यक्रम में भाग लेने इछावर आए थे. इसी साल हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की तो हार हुई ही लेकिन खुद सीएम रहते हुए कैलाश नाथ काटजू अपनी ही सीट से चुनाव हार गए.
– मार्च 1967 को तत्कालीन सीएम द्वारका प्रसाद मिश्र इछावर गए थे. कुछ ही समय बाद पार्टी में असंतोष के चलते उन्हें इस्तीफा देना पड़ा.
– साल 1977 की बात है जब बीजेपी के कैलाश जोशी इछावर आए लेकिन 4 महीने बाद ही उनकी मुख्यमंत्री की कुर्सी चली गई.
– फरवरी 1979 को तत्कालीन मुख्यमंत्री वीरेंद्र कुमार सकलेचा इछावर गए लेकिन ठीक एक साल बाद उन्हें मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा देना पड़ा था.
– नवंबर 2003 को तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने इछावर आकर इस मिथक को तोड़ने की कोशिश की थी लेकिन कुछ ही दिन बाद हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की बुरी तरह से हार हुई और दिग्विजय सिंह को सीएम की कुर्सी गंवानी पड़ी थी.