गेम चेंजर फिल्म से क्यों चर्चा में आए टीएन शेषन, SC ने क्यों कहा था देश को इनकी जरूरत?

रूपक प्रियदर्शी

तेलुगू फिल्मों के सुपर स्टार राम चरण की नई फिल्म लाए गेम चेंजर जिसके हीरो माने जा रहे हैं टी एन शेषन. ये मौका देखकर चौका मारने से कम नहीं है.

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Game Changer Movie: ऐसे दौर में जब बॉलीवुड में इंदिरा गांधी, मनमोहन सिंह, सोनिया गांधी, राहुल गांधी की नेगेटिव इमेज पेश करने वाली फिल्मों की लाइन लगी है तब राम चरण ने ऐसे कैरेक्टर को लेकर फिल्म बना दी जो विपक्ष के लिए तो हीरो हैं लेकिन सरकार नाम नहीं जपती. सुप्रीम कोर्ट को जरूर कमी महसूस हुई. तेलुगू फिल्मों के सुपर स्टार राम चरण की नई फिल्म लाए गेम चेंजर जिसके हीरो माने जा रहे हैं टी एन शेषन. ये मौका देखकर चौका मारने से कम नहीं है. बीजेपी-कांग्रेस, मोदी-राहुल के बीच छिड़ी जंग के सेंटर में है चुनाव आयोग. मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार पर बीजेपी के एजेंट की तरह काम करने का आरोप लगा है. 

चुनावों को लेकर देश की राजनीति का माहौल अब ऐसा कुछ है कि रह-रहकर याद आते हैं पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त टी एन शेषन. शेषन जब मुख्य चुनाव आयुक्त बने थे तब चुनाव आयोग की इतनी चर्चा नहीं होती थी. इतना सारा पावर भी नहीं मिला था. तब तीन-तीन चुनाव आयुक्त भी नहीं होते थे. टीएन शेषन ने अकेले 1990 से 1996 तक चुनाव कराए और कभी किसी ने चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर सवाल नहीं उठाए. घपले-घोटाले से चुनाव जीतने वालों के लिए टेरर थे शेषन. 

क्या है गेम चेंजर की कहानी?

गेम चेंजर एक ऐसे अफसर की कहानी है जो आईपीएस छोड़कर आईएएस बना और फिर देश का पूरा सिस्टम बदलकर डाला चुनाव क्लीन कर डाला. आम तौर पर बिना पॉलिटिकल प्रोपेगंडा के पॉलिटिकल फिल्में नहीं चलती. गेम चेंजर का न तो पॉलिटिकल बज क्रिएट हुआ, न हिंदी बेल्ट में चर्चा हुई. फिर भी पहले तीन दिनों में गेम चेंजर 100 करोड़ के आसपास पहुंच गई। 

फिल्म की कमाई को लेकर अलग-अलग दावे किए जा रहे हैं. एक दावा ये भी कि राम चरण के स्टारडम में फिल्म चली वरना शेषन में कहां दम था. पर्दे पर शेषन के दम पर डिबेट, डिस्कशन हो सकता है लेकिन भारत के चुनावों को लेकर शेषन ने जो कर दिखाया उसी के दम पर आज तक याद किए जाते हैं शेषन. कहानी में है तो फिक्शन लेकिन माना जा रहा है फिक्शन भी टीएन शेषन के आसपास रचा गया. 

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देश को टीएन शेषन की जरूरत-SC

सुप्रीम कोर्ट में चुनाव आयोग के कामकाज को लेकर कई याचिकाएं दायर हैं. सरकार ने चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति का नया कानून बनाया जिसमें सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस को ही नियुक्ति से बाहर कर दिया गया. इसके खिलाफ आज तक केस चल रहा है. 4 फरवरी को अगली सुनवाई है. 2022 में ऐसी ही एक सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने कह दिया था कि देश को टी एन शेषन जैसे मुख्य चुनाव आयुक्त की जरूरत है. 

कौन हैं टीएन शेषन?

केरल में जन्मे टीएन शेषन 1955 में आईएएस बन गए थे. तब तमिलनाडु मद्रास प्रेसीडेंसी कहलाता था. 1953 में पहली नौकरी मद्रास पुलिस सर्विस में हुई लेकिन पुलिस का रौब शेषन को रास नहीं आया. 1955 में सिविल सर्विसेज क्वालिफाई करके आईएएस बने. नेहरू से लेकर नरसिम्हा राव तक प्रधानमंत्री देखे. डीएम, कलेक्टर हुए. Atomic Energy और Department of Space के सचिव भी बने. 1989 तक आते-आते करीब 9 महीने तक आईएएस की सबसे बडी पोस्ट कैबिनेट सचिव पर भी रहे लेकिन टीएन शेषन का दम देश ने तब जाना जब रिटायरमेंट के बाद 1990 में मुख्य चुनाव आयुक्त बनाए गए.

उस जमाने में बैलेट से चुनाव होते थे. चुनाव तो सब नियम-कानून से होता था लेकिन फ्री एंड फेयर चुनाव कराने वाला कोई अंकुश नहीं था.  बूथ लूट, बोगस वोटिंग, हिंसा के बिना चुनाव होता ही नहीं था. यही सब बदल दिया टीएन शेषन ने. एक के बाद ऐसे धमाकेदार फैसले लिए जिसे बदलने की हिम्मत न कोई सरकार जुटा पाई, न कोई मुख्य चुनाव आयुक्त. वोटर आईडी लाकर बोगस वोटिंग पर रोकथाम, पैरा मिलिट्री की पोस्टिंग से हिंसा पर लगाम लगाई. शराब बांटना, जाति-धर्म के नाम पर वोट मांगना जुर्म बन गया. खर्च की लिमिट क्रॉस होने पर चुनाव रद्द होने का टेरर लाए. अपने कार्यकाल में शेषन ने 40 हजार उम्मीदवारों के चुनावी खर्चे रिव्यू किए. गलत बयानी करने वाले 14 हजार उम्मीदवारों के नामांकन रद्द किया. 

टीएन शेषन की बायोग्राफी

टीएन शेषन ने अपने करियर के कई किस्सों-कहानियों को लेकर थ्रू द ब्रोकेन ग्लास नाम की बायोग्राफी लिखी थी. बीबीसी रिपोर्ट के मुताबिक जब मुख्य चुनाव आयुक्त बने तब नरसिम्हा राव की सरकार हुआ करती थी. विजय भास्कर रेड्डी कानून मंत्री होते थे. शेषन ये बात नागवार थी कि चुनाव आयोग की ओर से कानून मंत्री बोलें. विरोध का आधार ये कि शेषन चुनाव आयोग को सरकारी विभाग नहीं मानते थे. नरसिम्हा राव ने टोका तो बिंदास कह दिया कि मैं कोई कोऑपरेटिव सोसाइटी नहीं हूं कि सहयोग करूं. मैं घोड़ा और सरकार घुड़सवार-शेषन को ये नामंजूर था. 

1993 में टीएन शेषन ने आदेश निकाल दिया कि जब तक सरकार चुनाव आयोग की शक्तियों को मान्यता नहीं देती, तब तक देश में कोई चुनाव नहीं होगा. तब प्रणब मुखर्जी को इसलिए सरकार से इस्तीफा देना पड़ा क्योंकि शेषन ने पश्चिम बंगाल की राज्यसभा सीट पर चुनाव नहीं दिया था. तब के बड़े-बड़े नेता शेषन से तंग रहे लेकिन कोई कुछ नहीं कर पाया. नेता गुस्साकर अल्सेशियन पुकारते थे. 

1996 में ली थी रिटायरमेंट

1996 में चुनाव आयोग से रिटायर होने तक टीएन शेषन देश के हीरो बन चुके थे. शेषन भी शायद इसी गलतफहमी के शिकार हुए. चुनाव आयोग से निकलते ही राजनीति की राह पकड़ी. 1997 में राष्ट्रपति बनने के लिए केआर नारायणन के खिलाफ चुनाव में उतर गए लेकिन पार्टियों से इतना समर्थन नहीं मिला कि जीत पाएं. 1999 में कांग्रेस ने शेषन की लोकप्रियता भुनाने की कोशिश की. गांधीनगर में लालकृष्ण आडलाणी के खिलाफ टिकट दिया. चुनावी सिस्टम में क्रांतिकारी चेंज करने वाले शेषन अपने ही बनाए सिस्टम में अपना चुनाव जीत नहीं पाए. तीसरी बार उन्होंने कोशिश नहीं की. सावर्जनिक जीवन से दूर हो गए.बरसों तक हेडलाइन से दूर रहते हुए शेषन 2019 में आंखें मूंद ली.

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