CJI बीआर गवई पर बयान से बवाल: आस्था, राजनीति और न्याय के बीच उठे सवाल
16 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई करते हुए सीजेआई भूषण रामकृष्ण गवई यानी बीआर गवई ने कुछ ऐसा बोला जो सोशल मीडिया पर भयंकर तरीके से वायरल है.
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16 सितंबर 2025 को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया बीआर गवई ने एक जनहित याचिका पर टिप्पणी की, जो कुछ ही घंटों में सोशल मीडिया पर जमकर वायरल होने लगा. याचिका मध्य प्रदेश के खजुराहो स्थित एक मंदिर में भगवान विष्णु की 7 फुट लंबी मूर्ति की एक बार फिर से स्थापना से जुड़ी थी.
इस पर सुनवाई करते हुए CJI गवई की बेंच ने याचिका खारिज कर दी और टिप्पणी की कि यह मामला भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण यानी ASI के अधिकार क्षेत्र में आता है. उन्होंने याचिकाकर्ता से कहा कि अगर वह भगवान विष्णु के इतने बड़े भक्त हैं, तो अब भगवान से ही कुछ करने की प्रार्थना करें.
इस बात को लेकर सोशल मीडिया पर जमकर हंगामा मचा. कई लोगों ने इसे हिंदू आस्था का अपमान करार दिया, वहीं कुछ यूजर्स ने इसे बौद्ध धर्म मानने वाले गवई की सोच से जोड़कर उन्हें निशाने पर लिया.
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गवई को देनी पड़ी सफाई
हालात बिगड़ते देख खुद जस्टिस गवई को सफाई देनी पड़ी. उन्होंने कहा कि वे सभी धर्मों का सम्मान करते हैं और उनकी टिप्पणी का उद्देश्य किसी की भावनाएं आहत करना नहीं था. सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने भी गवई का समर्थन किया और कहा कि आजकल हर मुद्दे को लेकर सोशल मीडिया पर जरूरत से ज्यादा रिएक्शन आता है. वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने भी सोशल मीडिया को ‘बेकाबू घोड़ा’ बताया जिसे नियंत्रित करना मुश्किल हो गया है.
इस विवाद के बीच सीजेआई गवई की बेटी करिश्मा गवई का नाम भी चर्चा में आ गया. साल 2021 में करिश्मा ने अपने पति और ससुराल पक्ष के खिलाफ दहेज उत्पीड़न का केस दर्ज कराया था. अब इस पुराने निजी मामले को भी लोग मौजूदा विवाद से जोड़कर उछाल रहे हैं, जबकि दोनों मामलों का आपस में कोई सीधा संबंध नहीं है.
कौन हैं जस्टिस बीआर गवई
जस्टिस बीआर गवई का पारिवारिक और सामाजिक बैकग्राउंड काफी खास रहा है. वे बौद्ध धर्म को मानने वाले पहले चीफ जस्टिस हैं और भारत के दूसरे दलित CJI हैं. उनका जन्म 24 नवंबर 1960 को महाराष्ट्र के अमरावती में हुआ था. उनके पिता आरएस गवई अंबेडकरवादी नेता थे जिन्होंने 1956 में डॉ. भीमराव अंबेडकर के साथ बौद्ध धर्म अपना लिया था. राजनीति में भी वे सक्रिय रहे और कांग्रेस पार्टी से जुड़े रहे. बाद में उन्हें राज्यपाल जैसे पदों पर भी नियुक्त किया गया.
जस्टिस गवई ने 1985 में वकालत की शुरुआत की थी. 2003 में उन्हें बॉम्बे हाईकोर्ट में एडिशनल जज नियुक्त किया गया और 2005 में वे परमानेंट जज बने. 2019 में सुप्रीम कोर्ट के जज बने और मई 2025 में भारत के 50वें मुख्य न्यायाधीश नियुक्त हुए. वे 23 नवंबर 2025 को रिटायर होंगे.
चर्चित फैसलों के लिए जाना जाता है
गवई को उनके कई चर्चित फैसलों के लिए जाना जाता है. उन्होंने चुनावी बांड योजना को असंवैधानिक घोषित करने वाले फैसले में भाग लिया, नोटबंदी को सही ठहराने वाली बेंच का हिस्सा रहे, आर्टिकल 370 को हटाने के फैसले को वैध बताया और बुलडोजर कार्रवाई पर सरकार को फटकार लगाई. वे उस बेंच का भी हिस्सा रहे जिसने मनीष सिसोदिया को मनी लॉन्ड्रिंग केस में जमानत दी.
राहुल गांधी की संसद सदस्यता बहाली के केस में भी गवई की बेंच ने अहम भूमिका निभाई. उन्होंने सुनवाई की शुरुआत में साफ कहा कि उनका परिवार कांग्रेस से जुड़ा रहा है, इसलिए यदि किसी पक्ष को ऐतराज हो तो वे केस से हट सकते हैं. दोनों पक्षों की सहमति के बाद ही उन्होंने सुनवाई की और राहुल को राहत दी, जिस फैसले की न्यायिक निष्पक्षता की सभी ने सराहना की.
हालिया विवाद ने यह दिखा दिया है कि देश में आज न्यायपालिका के शीर्ष पर बैठे जजों को भी अपने शब्दों को लेकर कितनी सावधानी बरतनी पड़ती है. सोशल मीडिया की दुनिया में कोई भी टिप्पणी चंद मिनटों में गलतफहमी का रूप ले सकती है. हालांकि, जस्टिस गवई का अब तक का करियर इस बात की गवाही देता है कि उन्होंने हमेशा संविधान, कानून और निष्पक्ष न्याय के मूल्यों को प्राथमिकता दी है.
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