पहलगाम हमले के बाद पाकिस्तान दे रहा शिमला समझौते को तोड़ने की धमकी, क्या इतनी अहम है ये ट्रीटी? जानिए सबकुछ

सौरव कुमार

Simla Agreement: शिमला समझौता 1972 में भारत और पाकिस्तान के बीच हुए एक ऐतिहासिक दस्तावेज के रूप में जाना जाता है, जिसका उद्देश्य दोनों देशों के बीच शांति और द्विपक्षीय समाधान को प्राथमिकता देना था. लेकिन हालिया पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत की सख्त कार्रवाई से बौखलाए पाकिस्तान ने इस समझौते को सस्पेंड करने की बात कह दी.

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भारत-पाकिस्तान के बीच शिमला समझौता
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Simla Agreement: जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में 22 अप्रैल को एक आतंकी हमला हुआ था जहां 26 लोगों को मौत के घाट उतार दिया. ये हमला पहलगाम के खूबसूरत बैसरन घाटी में हुआ जहां पर वहां आए पर्यटकों को मुख्य रुप से टारगेट किया गया था. हमले के बाद ही लश्कर-ए-तायबा के मुखौटा कहे जाने वाले टीआरएफ (द रेजिस्टेंस फ्रंट) ले ली है. इस हमले से पूरे देश में दुख का माहौल है. घटना के देर शाम गृह मंत्री अमित शाह भी श्रीनगर पहुंचे और पूरी रात वहीं रुक कर मामले का जायजा लिया. उसी बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी अपना जेद्दा दौरा रद्द कर अगले ही दिन यानी 23 अप्रैल को भारत लौट आए. 

भारत में इस हमले को लेकर अपना रुख साफ कर दिया है कि वो इस बार आरोपियों को उनके कल्पना से भी बड़ी सजा देंगे.23 अप्रैल की देर शाम CCS की बैठक में भारत ने पाकिस्तान के खिलाफ 5 कड़े फैसले लिए जिससे की पूरा पाकिस्तान बौखला उठा. बौखलाए पाकिस्तान ने भी कुछ फैसले लिए जैसे कि वाघा बॉर्डर को बंद करना, सार्क वीजा सुविधा स्थगित करना और भारतीय विमानों के लिए अपनी हवाई सीमा बंद में प्रवेश करना.

क्यों अचानक चर्चा में आया शिमला समझौता?

भारत के फैसलों के बाद पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने गुरुवार को बौखलाहट में नेशनल सिक्योरिटी कमेटी(NSC) की मीटिंग बुलाई. इसमें ही पाकिस्तान ने कई फैसले लिए. पाकिस्तान ने भारत पर अंतरराष्ट्रीय कानून और संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों का उल्लंघन करने का आरोप लगाया और साथ ही शिमला समझौते को सस्पेंड करने की बात उठी. पाकिस्तान ने अधिकारों की बात करते हुए कहा कि भारत के साथ किए गए हर एक समझौते जिसमें शिमला समझौता भी शामिल है उसे सस्पेंड और रोकने का अधिकार रखता है. पाकिस्तान की इसी गीदड़भभकी के बाद ही शिमला समझौता चर्च में आ गया है.

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अब बात ये आती है कि क्या है शिमला समझौता, इसके रद्द करने के क्या होगा, पाकिस्तान के पास क्या ताकत है इसे रद्द करने की और इसका महत्व क्या है? आइए इसे विस्तार से समझते है...

शिमला समझौते की कहानी

1971 में भारत और पाकिस्तान के बीच एक युद्ध हुआ था. यह युद्ध पूर्वी पाकिस्तान(जिसे आज का बांग्लादेश कहा जाता है) को लेकर था. लेकिन पाकिस्तान भी कहा मानने वाला था. युद्ध के दौरान पाकिस्तनी सेना ने पूर्वी पाकिस्तान में लाखों लोगों पर खूब अत्याचार किया जिससे की वो भारत में शरण लेने पहुंच गए. इसकी जवाबी कार्रवाई में भारत ने मामले में हस्तक्षेप किया. युद्ध में भारत ने पाकिस्तान के खिलाफ निर्णायक जीत प्राप्त की और पाकिस्तान को गंभीर सामरिक और राजनीतिक नुकसान हुआ.

पाकिस्तानी सेना के लगभग 93,000 जवानों ने भारतीय सेना के सामने आत्मसमर्पण कर दिया और एक नया देश जिसे बांग्लादेश के नाम से जाना जाता है उसका निर्माण हो गया. भारत चाहता तो पाकिस्तान पर उस समय शर्तें रख उसे और दबा सकता था लेकिन भारत ने अमन और शांति का रास्ता चुना. इसी के कारण एक शांति बहाल करने के लिए शिमला समझौता हुआ था.

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शिमला समझौते की शुरुआत

शिमला समझौता 2 जुलाई 1972 को भारत के शिमला शहर में हुआ था. इस समझौते को भारतीय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो ने हस्ताक्षरित किया. इस समझौत पर हस्ताक्षर करने वाले जुल्फिकार अली भुट्टो अपनी बेटी और पड़ोसी मु्ल्क की पीएम बेनजीर भुट्टो(तत्कालीन) के साथ पहुंचे थे. ये वहीं भुट्टो थे, जिन्होंने कसमें खाई थी घास की रोटी खाकर भी भारत से युद्ध लड़ेंगे. यह समझौता भविष्य में भारत और पाकिस्तान के रिश्ते को शांति बनाए रखने के लिए किया गया था.

शिमला समझौते की मुख्य बातें और प्रावधान

शिमला समझौता एक व्यापक दस्तावेज था, जिसमें दोनों देशों के बीच शांति स्थापित करने और भविष्य के संबंधों को सामान्य करने के लिए कई महत्वपूर्ण प्रावधान शामिल थे. इसके मुख्य बिंदु निम्नलिखित हैं:

द्विपक्षीय समाधान पर जोर: समझौते का सबसे महत्वपूर्ण प्रावधान यह था कि भारत और पाकिस्तान अपने सभी विवादों, विशेष रूप से कश्मीर मुद्दे को, शांतिपूर्ण तरीके से और द्विपक्षीय बातचीत के माध्यम से हल करेंगे. यह भारत के लिए एक बड़ी कूटनीतिक जीत थी, क्योंकि इससे कश्मीर मुद्दे पर तीसरे पक्ष, जैसे संयुक्त राष्ट्र, की मध्यस्थता की संभावना समाप्त हो गई.

नियंत्रण रेखा (LoC) की स्थापना: समझौते के तहत 17 दिसंबर 1971 की युद्धविराम रेखा को औपचारिक रूप से नियंत्रण रेखा (Line of Control - LoC) के रूप में मान्यता दी गई. यह रेखा जम्मू-कश्मीर में भारत और पाकिस्तान के बीच सीमा को परिभाषित करती है. दोनों पक्षों ने सहमति जताई कि वे इस रेखा का सम्मान करेंगे और इसे एकतरफा रूप से बदलने की कोशिश नहीं करेंगे, चाहे उनके आपसी मतभेद या कानूनी व्याख्याएं कुछ भी हों.

सैनिकों की वापसी: दोनों देशों ने अपनी सेनाओं को अंतरराष्ट्रीय सीमा के अपनी-अपनी ओर वापस लेने पर सहमति जताई. समझौते के लागू होने के 30 दिनों के भीतर यह प्रक्रिया पूरी कर ली गई। हालांकि, जम्मू-कश्मीर में नियंत्रण रेखा पर दोनों देशों की सेनाएं अपनी स्थिति पर बनी रहीं.

शांति और सहयोग की प्रतिबद्धता: दोनों देशों ने आपसी संबंधों में टकराव और संघर्ष को समाप्त करने और एक स्थायी शांति, मित्रता और सहयोग की स्थापना के लिए काम करने का संकल्प लिया. इसके लिए लोगों से लोगों के संपर्क को बढ़ावा देने और सहयोगात्मक संबंधों की नींव रखने पर जोर दिया गया.

भविष्य की वार्ता: दोनों देशों के नेताओं ने सहमति जताई कि वे भविष्य में एक-दूसरे से मुलाकात करेंगे और उनके प्रतिनिधि समय-समय पर मिलकर शांति और सामान्यीकरण की प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के लिए चर्चा करेंगे. इसमें युद्धबंदियों और नागरिक बंदियों की रिहाई, जम्मू-कश्मीर के अंतिम समाधान और राजनयिक संबंधों की बहाली जैसे मुद्दे शामिल थे.

अन्य प्रावधान: समझौते में संचार, डाक, टेलीग्राफ, और हवाई संपर्क को बहाल करने की बात कही गई. साथ ही, दोनों देशों ने विज्ञान और संस्कृति के क्षेत्र में आदान-प्रदान को बढ़ावा देने का वादा किया.

शिमला समझौते की सीमाएं और व्यावहारिक असफलताएं

शिमला समझौता भले ही भारत और पाकिस्तान के बीच शांति बहाल करने की एक ऐतिहासिक पहल थी, लेकिन इसकी प्रभावशीलता पर समय के साथ सवाल उठते गए. कश्मीर विवाद को द्विपक्षीय संवाद से सुलझाने की बात इस समझौते का मूल आधार थी, लेकिन दशकों बीतने के बाद भी यह मुद्दा आज भी अनसुलझा है. दूसरी ओर, पाकिस्तान ने आतंकवाद को बढ़ावा देकर और सीमा पर बार-बार संघर्ष की स्थिति पैदा कर इस पर अमल को और कठिन बना दिया. इन कारणों से शिमला समझौता एक सैद्धांतिक दस्तावेज बनकर रह गया, जिसकी व्यावहारिक उपयोगिता सीमित होती चली गई.

पाकिस्तान ने तोड़ा शिमला समझौता

शिमला समझौते के तहत भारत और पाकिस्तान ने यह वादा किया था कि वे अपने सभी द्विपक्षीय विवादों को शांतिपूर्ण तरीके से और आपसी बातचीत के माध्यम से सुलझाएंगे. लेकिन पाकिस्तान ने इस समझौते की मूल भावना और शर्तों का कई बार उल्लंघन किया. विशेष रूप से 1999 में कारगिल युद्ध के दौरान पाकिस्तान की सेना ने LOC पार कर घुसपैठ की, जो सीधे तौर पर शिमला समझौते का उल्लंघन था. इसके अलावा, पाकिस्तान की ओर से लगातार आतंकवादी संगठनों को समर्थन देना और जम्मू-कश्मीर में हिंसा फैलाना इस समझौते की भावना के विरुद्ध रहा है. इन कदमों से यह स्पष्ट होता है कि पाकिस्तान ने शिमला समझौते को केवल कागज़ी दस्तावेज मानकर उसका पालन करने में गंभीरता नहीं दिखाई.

क्या शिमला समझौता रद्द कर सकता है पाकिस्तान?

पहलगाम हमले के बाद बौखलाए पाकिस्तान ने शिमला समझौता रद्द करने की बात कर माहौल बना दिया है. ये गीदड़भभकी भारत को पाकिस्तान से मिली है. पाकिस्तान ने इस बात का हवाला देते हुए कहा कि भारत संयुक्त राष्ट्र प्रस्तावों और अंतरराष्ट्रीय कानून का पालन नहीं करता है. पाकिस्तान चाहे तो समझौते को रद्द कर सकता है लेकिन मौजूदा स्थिति में ऐसा करने से पाकिस्तान को नुकसान होगा. फिलहाल पहलगाम हमले के बाद अंतरराष्ट्रीय देश भारत का समर्थन कर रहे है ऐसे परिस्थिति में पाकिस्तान को भारी परेशानी हो सकती है. अगर शिमला समझौता रद्द होता है तो कश्मीर जैसे मुद्दे इन दोनों देशों के बीच बातचीत से तो नहीं सुलझेगी. और अगर इस कारण युद्ध हुआ तो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पाकिस्तान ही इसका दोषी माना जा सकता है.

इनपट- इंटर्न रोहन रावत

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