अमेरिका के टैरिफ वार का भारतीय 'फीमेल लेबर' पर बड़ा असर, क्या GDP ग्रोथ का पहिया होगा पंक्चर!

ललित यादव

टैरिफ के कारण लाखों नौकरियों पर खतरा मंडरा रहा है, जिनमें से एक बड़ा हिस्सा महिलाओं का है. यह ऐसे समय में हो रहा है जब भारत में महिला श्रमबल भागीदारी दर (FLFPR) में सुधार देखा जा रहा था.

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Female Labour Force Participation Report: भारत की अर्थव्यवस्था आज 4 ट्रिलियन डॉलर को पार कर चुकी है और दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की राह पर है. लेकिन इस बीच एक बड़ी चुनौती सामने खड़ी है. अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत से होने वाले आयात पर 50% का भारी टैरिफ लगाने का ऐलान किया है. इस कदम का सीधा असर भारत के निर्यात पर पड़ेगा, खासकर उन सेक्टर्स पर जहां महिलाओं की बड़ी संख्या काम करती है. यह टैरिफ भारत के आर्थिक विकास की गति को धीमा कर सकता है और महिला श्रम बल की भागीदारी (FLFPR) में हो रही वृद्धि को भी प्रभावित कर सकता है.

भारत हर साल अमेरिका को करीब 48 अरब डॉलर का सामान निर्यात करता है. इसमें मुख्य रूप से टेक्सटाइल, जेम्स, लेदर और फुटवियर जैसे लेबर-इंटेंसिव सेक्टर शामिल हैं, जिनमें महिलाओं की बड़ी हिस्सेदारी है. अमेरिका भारत के कुल निर्यात का 18% हिस्सा खरीदता है. अगर यह टैरिफ लागू होता है, तो भारत का निर्यात 30% तक घट सकता है, जिससे लाखों नौकरियों पर सीधा असर पड़ेगा.

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ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (GTRI) की रिपोर्ट के अनुसार, 2025-26 में भारत से अमेरिका को होने वाले निर्यात में 40 से 45% की भारी गिरावट आ सकती है. यह अनुमानित आंकड़ा 49.6 बिलियन डॉलर (लगभग ₹4.35 लाख करोड़) से घटकर ₹2.40 लाख करोड़ रह जाएगा.

GDP ग्रोथ में महिलाओं की अहम भागेदारी!

टैरिफ के कारण लाखों नौकरियों पर खतरा मंडरा रहा है, चैंबर ऑफ ट्रेड एंड इंडस्ट्री (CTI) के चेयरमैन बृजेश गोयल के मुताबिक, अमेरिकी टैरिफ से भारत के टेक्सटाइल, लेदर, सीफूड, ज्वेलरी, ऑटो, केमिकल, इलेक्ट्रॉनिक्स समेत तमाम सेक्टर्स पर बुरा असर पड़ेगा और इनसे जुड़े 10 लाख लोगों के रोजगार पर संकट मंडरा रहा है. जिनमें से एक बड़ा हिस्सा महिलाओं का है.

यह ऐसे समय में हो रहा है जब भारत में महिला श्रमबल भागीदारी दर (FLFPR) में सुधार देखा जा रहा था. प्रधानमंत्री आर्थिक सलाहकार परिषद (EAC-PM) के आंकड़ों के मुताबिक, ग्रामीण क्षेत्रों में महिला LFPR 2017-18 के 24.6% से बढ़कर 2023-24 में 47.6% हो गई है. शहरी क्षेत्रों में भी यह 20.4% से बढ़कर 25.4% हुई है.

McKinsey Global Institute (MGI) की एक रिपोर्ट बताती है कि अगर भारत महिलाओं की श्रम भागीदारी दर को एशिया के औसत स्तर तक ले आता है तो भारत की जीडीपी (GDP) में 2025 तक करीब 16% की अतिरिक्त वृद्धि हो सकती है. रिपोर्ट यह भी कहती है कि अगर महिलाओं को पुरुषों के बराबर कार्यबल में शामिल किया जाए तो भारत की जीडीपी लगभग 60% तक बढ़ सकती है.

टैरिफ का असर किन शहरों और किस सेक्टर पर पड़ेगा?

अमेरिकी टैरिफ का असर विशेष रूप से उन राज्यों पर पड़ेगा जो इन निर्यातक सेक्टर्स में आगे हैं. हरियाणा (वस्त्र), पंजाब (मशीनरी), झारखंड (तांबा) और राजस्थान (हैंडीक्राफ्ट) जैसे राज्यों में इन व्यवसायों में काम करने वाली महिलाओं की बड़ी संख्या है, जो इस टैरिफ से सबसे ज्यादा प्रभावित होंगी.

महिलाओं की भागीदारी क्यों है जरूरी?

वर्तमान में भारत की महिला श्रम भागीदारी दर 37% से 41% के बीच है, जो चीन (60%) और जापान (63-70%) जैसे देशों की तुलना में काफी कम है. इसका एक बड़ा कारण घरेलू जिम्मेदारियां, शिक्षा, स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी और बिना वेतन वाले काम हैं. जो महिलाओं को रोजगार में आने से रोकते हैं. 

भारत के पास अभी एक सुनहरा मौका है. जहां काम करने वाले युवा लोगों की संख्या बच्चों और बुजुर्गों से कहीं ज्यादा है. भारत के पास यह मौका 2045 तक ही रहेगा, जिसके बाद युवा आबादी कम होने लगेगी. चीन, जापान और अमेरिका जैसे देशों ने इस मौके का फायदा उठाकर GDP में खूब ग्रोथ की है.

विदेशों से सबक लेने की जरूरत

दुनिया के कई देशों ने महिलाओं की भागीदारी बढ़ाकर अपनी अर्थव्यवस्था को मजबूत किया है. अमेरिका ने द्वितीय विश्व युद्ध के बाद महिलाओं को नौकरियों में लाकर जीडीपी ग्रोथ बढ़ाई. चीन ने 1978 के सुधारों से महिला कार्यबल को बढ़ाया. जापान और नीदरलैंड ने भी नीतियों और सुविधाओं के माध्यम से महिलाओं को काम करने के लिए प्रेरित किया.

भारत में भी हो रहे हैं प्रयास 

भारत में भी इस दिशा में कई प्रयास हो रहे हैं. अर्बन कंपनी जैसी पहल 1.5 लाख से ज्यादा महिलाओं को रोजगार दे रही है. वहीं, राजस्थान की इंदिरा गांधी शहरी रोजगार गारंटी योजना में 65% से ज्यादा काम महिलाओं को मिल रहा है. अमेरिकी टैरिफ जैसे दबावों का मुकाबला करने और GDP ग्रोथ बनाए रखने के लिए यह जरूरी है कि महिलाओं को रोजगार में बराबर का हक मिले और उन्हें वह माहौल दिया जाए जिसमें वह सुरक्षित काम कर सके.

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