'विभाजन के लिए कांग्रेस जिम्मेदार', NCERT के नए मॉड्यूल पर विवाद, पवन खेड़ा ने दी तीखी प्रतिक्रिया

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NCERT मॉड्यूल में 1940 के लाहौर प्रस्ताव का उल्लेख किया गया है. इसमें जिन्ना ने कहा था कि हिंदू और मुसलमान अलग-अलग समुदाय हैं, जिनकी जीवनशैली, परंपराएं और साहित्य अलग हैं. 

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राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (NCERT) ने स्कूलों के लिए एक विशेष मॉड्यूल जारी किया है, जिसका शीर्षक है ‘पार्टीशन हॉरर्स रिमेंबरेंस डे’ (विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस). इस मॉड्यूल का मकसद छात्रों को भारत-पाकिस्तान के विभाजन से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी बताया गया है.

हालांकि, इस मॉड्यूल के बाद राजनीतिक विवाद भी खड़ा हो गया है. कांग्रेस ने इस मॉड्यूल का कड़ा विरोध करते हुए इसे "झूठा" बताया है और इसे जला देने की मांग की है.

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मॉड्यूल में क्या है?

NCERT के इस नए मॉड्यूल में विभाजन को लेकर एक नया दृष्टिकोण पेश किया गया है. इसमें कहा गया है कि विभाजन किसी एक व्यक्ति ने नहीं बल्कि तीन शक्तियों का नतीजा है.

मॉड्यूल में इन तीन शक्तियों को इस तरह परिभाषित किया गया है:

1. मोहम्मद अली जिन्ना ने विभाजन के विचार का प्रचार किया.

2. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने विभाजन को स्वीकार किया.

3. लॉर्ड माउंटबेटन को विभाजन को लागू करने का काम सौंपा गया था.

मॉड्यूल में यह भी कहा गया है कि विभाजन ने कश्मीर को भारत की सुरक्षा समस्या में बदल दिया, जिसका फायदा पाकिस्तान लगातार उठाता रहा है. यह मॉड्यूल सामान्य पाठ्यपुस्तकों से अलग है. कक्षा 6 से 8 और कक्षा 9 से 12 तक के लिए इसके अलग-अलग संस्करण तैयार किए गए हैं.

जिन्ना और लाहौर प्रस्ताव का जिक्र

मॉड्यूल में 1940 के लाहौर प्रस्ताव का उल्लेख किया गया है. इसमें जिन्ना ने कहा था कि हिंदू और मुसलमान अलग-अलग समुदाय हैं, जिनकी जीवनशैली, परंपराएं और साहित्य अलग हैं. 

इसके साथ तर्क दिया गया है कि ब्रिटिश शासन ने भारत को ‘डोमिनियन स्टेटस’ देकर एकजुट रखने की कोशिश की थी, लेकिन कांग्रेस ने इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया.

गांधी, नेहरू और पटेल का रुख

मॉड्यूल में सरदार वल्लभभाई पटेल के हवाले से लिखा गया है कि देश की स्थिति गृहयुद्ध जैसी थी, ऐसे में विभाजन करना बेहतर माना गया.

महात्मा गांधी का विरोध भी मॉड्यूल में दर्ज है. जिसमें लिखा गया,  उन्होंने (गांधी) ने कहा कि वे विभाजन में भागीदार नहीं हो सकते लेकिन हिंसा के सहारे कांग्रेस को रोकने के पक्ष में भी नहीं थे.

अंततः नेहरू और पटेल ने विभाजन स्वीकार किया और 14 जून 1947 को गांधी ने कांग्रेस कार्यसमिति को भी इसके लिए राजी कर लिया.

मॉड्यूल में माउंटबेटन की आलोचना

मॉड्यूल में लॉर्ड माउंटबेटन की भी कड़ी आलोचना की गई है. इसमें कहा गया है कि उन्होंने सत्ता हस्तांतरण की तारीख जून 1948 से बदलकर अगस्त 1947 कर दी. इस जल्दबाजी के कारण सीमाओं का गलत और अधूरा सीमांकन हुआ, जिससे भारी अराजकता और हिंसा फैली.

मॉड्यूल में लॉर्ड माउंटबेटन की आलोचना करते हुए कहा गया है कि उन्होंने सत्ता हस्तांतरण की तारीख जून 1948 तय की थी, लेकिन बाद में इसे अगस्त 1947 कर दिया. जल्दीबाजी में किए गए सीमांकन से अराजकता फैल गई और कई इलाकों के लोगों को 15 अगस्त तक यह भी पता नहीं था कि वे भारत में हैं या पाकिस्तान में.

कांग्रेस ने जताया कड़ा विरोध

इस मॉड्यूल के जारी होने पर कांग्रेस ने तीखी प्रतिक्रिया दी है. कांग्रेस प्रवक्ता पवन खेड़ा ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, "इस मॉड्यूल को जला देना चाहिए क्योंकि यह सच्चाई नहीं बताता."

उन्होंने आरोप लगाया कि विभाजन हिंदू महासभा और मुस्लिम लीग के बीच सांठगांठ का परिणाम था. उन्होंने कहा कि विभाजन का विचार सबसे पहले 1938 में हिंदू महासभा ने दिया जिसके बाद 1940 में जिन्ना ने इसे दोहराया था.

 

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