Explainer: क्या पद से हटाए जा सकते हैं मुख्य चुनाव आयुक्त? विपक्ष किस कानून का करेगा इस्तेमाल, यहां जाने
राजनीतिक गलियारे में चर्चा है कि मुख्य चुनाव आयुक्त के खिलाफ विपक्ष महाभियोग प्रस्ताव लाने की तैयारी कर रहा है, लेकिन संविधानिक प्रक्रिया और संख्याबल की कमी के कारण यह कदम सफल होना बेहद मुश्किल होगा.
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बिहार में विधानसभा चुनाव से चार महीने पहले चलाए गए स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) प्रोग्राम और विपक्षी दलों द्वारा लगाए गए 'वोट चोरी' के आरोपों ने देश की राजनीति में एक नया भूचाल ला दिया है.
विपक्ष इन वोट चोरी और SIR प्रक्रिया को लेकर चुनाव आयोग पर लगातार हमलावर है, जबकि मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने इन आरोपों को पूरी तरह से गलत और निराधार बताया है. विपक्ष ने इस मामले में सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा भी खटखटाया, लेकिन अब तक कोई खास नतीजा सामने नहीं आया है.
यही कारण है कि INDIA गठबंधन ने अपना रुख कड़ा करते हुए मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) ज्ञानेश कुमार के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव की कार्यवाही शुरू करने की तैयारी कर ली है. अगर ऐसा होता है तो यह वाकई में देश के इतिहास की बड़ी घटना होगी क्योंकि अब तक देश में किसी भी मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) के खिलाफ महाभियोग की प्रक्रिया शुरू नहीं की गई है.
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ऐसे में एक सवाल ये उठता है कि आखिर ये महाभियोग प्रस्ताव है क्या, क्या विपक्ष चुनाव आयुक्त को हटा सकता है. इस रिपोर्ट में विस्तार से समझते हैं.
सबसे पहले समझिए ये महाभियोग प्रस्ताव होता क्या है
महाभियोग एक ऐसी कानूनी प्रक्रिया है जिससे किसी बड़े सरकारी अधिकारी, जैसे कि राष्ट्रपति या सुप्रीम कोर्ट के जज को उनकी पोस्ट से हटाया जा सकता है. यह तब लाया जाता है जब वे अपने काम में कोई बड़ी गलती, भ्रष्टाचार या अपने पद का गलत इस्तेमाल करते पाए जाते हैं.
महाभियोग की ये प्रक्रिया मुख्य रूप से राष्ट्रपति, सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के जजों के लिए लागू होती है, लेकिन मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) जैसे पदाधिकारियों को भी इसी प्रक्रिया के तहत हटाया जा सकता है.
संविधान का अनुच्छेद 124(4) और अनुच्छेद 324(5) कहता है कि CEC को हटाने के लिए सुप्रीम कोर्ट के जज की तरह ही महाभियोग की प्रक्रिया अपनाई जाएगी.
स्पीकर प्रस्ताव स्वीकर करने पर करते हैं विचार
प्रस्ताव पेश होने के बाद, संबंधित सदन के स्पीकर (लोकसभा) या चेयरमैन (राज्यसभा) इस पर विचार करते हैं कि वे इसे स्वीकार करेंगे या नहीं. स्पीकर चाहे तो इसे अस्वीकार भी कर सकते हैं.
अगर स्पीकर या चेयरमैन प्रस्ताव को स्वीकार करते हैं तो वे इन आरोपों की जांच के लिए तीन-सदस्यीय समिति का गठन करते हैं. लोकसभा के पूर्व महासचिव पीडीटी आचारी ने आजतक की एक रिपोर्ट में बताया कि इस कमीटी की अगुवाई SC के एक जज करते हैं, जबकि किसी भी हाईकोर्ट के एक चीफ जस्टिस और एक प्रतिष्ठित न्यायविद कमेटी में शामिल होते हैं. उनकी जांच रिपोर्ट पर सदन चर्चा करता है.
इस कमीटी का काम मुख्य चुनाव आयुक्त पर लगे आरोपों की गहन जांच करना है. इस दौरान मुख्य चुनाव आयुक्त को अपना पक्ष रखने का मौका भी दिया जाता है. अपनी जांच पूरी करने के बाद कमेटी स्पीकर या चेयरमैन को अपनी रिपोर्ट सौंपती है. अगर कमेटी की ये रिपोर्ट आरोपों को सही पाती है और मुख्य चुनाव आयुक्त को दुर्व्यवहार या अक्षमता का दोषी ठहराती है, तो हटाने की प्रक्रिया आगे बढ़ती है.
महाभियोग की प्रक्रिया
1. प्रस्ताव लाना: महाभियोग प्रस्ताव लोकसभा या राज्यसभा दोनों में से किसी भी सदन में लाया जा सकता है. इसे पास करने के लिए, उस सदन के दो-तिहाई से ज्यादा सदस्यों का समर्थन मिलना जरूरी है. इसका मतलब है कि कम से कम दो-तिहाई सदस्य प्रस्ताव के पक्ष में वोट करें.
2. दूसरे सदन में पारित होना: पहले सदन में पास होने के बाद इसे दूसरे सदन (लोकसभा या राज्यसभा) में भेजा जाता है. वहां भी कम से कम दो-तिहाई सदस्य प्रस्ताव के पक्ष में वोट करेंगे तभी इसे मान्य माना जाएगा.
3. राष्ट्रपति का आदेश: अगर राज्यसभा और लोकसभा दोनों सदन महाभियोग प्रस्ताव को पारित कर देते हैं, तो अंतिम फैसला राष्ट्रपति का होता है. हालांकि दोनों सदनों से पास होने के बाद, राष्ट्रपति को CEC को हटाने के लिए अंतिम मंजूरी देनी होती है.
तो क्या विपक्ष के लिए आसान है ECE को हटाना
दरअसल ये प्रक्रिया जितनी सरल दिख रही है उतनी है नहीं, क्योंकि विपक्ष के पास संसद में इतना संख्याबल नहीं है कि वह दोनों सदनों में दो-तिहाई बहुमत हासिल कर सके.
अब समझिए क्या है ये वोट चोरी का पूरा मामला
7 अगस्त 2025 को नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने वोटर लिस्ट में गड़बड़ी पर 1 घंटे 11 मिनट तक 22 पेज का प्रेजेंटेशन दिया. इस दौरान राहुल गांधी ने स्क्रीन पर कर्नाटक की वोटर लिस्ट दिखाते हुए बताया कि इस लिस्ट में संदिग्ध वोटर मौजूद हैं.
उन्होंने इसी प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि महाराष्ट्र के नतीजे देखने के बाद हमारा शक पुख्ता हो गया था कि चुनाव में चोरी हुई है.
राहुल गांधी ने इलेक्शन कमीशन पर आरोप लगाते हुए कहा कि मशीन रीडेबल वोटर लिस्ट नहीं देने से हमें भरोसा हुआ कि EC ने भाजपा के साथ मिलकर महाराष्ट्र चुनाव चोरी किया है.
राहुल गांधी के आरोप पर चुनाव आयोग ने क्या कहा
राहुल गांधी के वोट चोरी के आरोप पर चुनाव आयोग (EC) ने रविवार यानी 17 अगस्त को नई दिल्ली के नेशनल मीडिया सेंटर में प्रेस कॉन्फ्रेंस की. इस दौरान चीफ इलेक्शन कमिश्नर ज्ञानेश कुमार ने राहुल गांधी का नाम लिए बिना कहा- PPT प्रेजेंटेशन में दिखाया डेटा हमारा नहीं है. उन्होंने कहा कि वोट चोरी के आरोपों पर हलफनामा दें या देश से माफी मांगे. मुख्य चुनाव आयुक्त ने ये भी कहा कि 7 दिन में हलफनामा नहीं मिला तो आरोपों को निराधार समझा जाएगा.
बीजेपी ने भी की थी कोशिश
बता दें कि ये पहली बार नहीं है जब मुख्य चुनाव आयुक्त को हटाने के लिए महाभियोग प्रस्ताव चर्चा में है. इससे पहले यूपीए-2 के कार्यकाल के दौरान साल 2006 में उस वक्त के मुख्य चुनाव आयुक्त एन गोपालस्वामी ने चुनाव आयुक्त नवीन चावला पर पक्षपाती रवैया अपनाने का आरोप लगाया था और राष्ट्रपति से उन्हें पद से हटाने की सिफ़ारिश की थी.
इसके बाद भारतीय जनता पार्टी चुनाव आयुक्त चावला को पद से हटाने के लिए प्रस्ताव लेकर आई थी, जिसपर एनडीए के 200 से ज्यादा सांसदों के हस्ताक्षर थे. हालांकि उस वक्त के लोकसभा स्पीकर सोमनाथ चटर्जी ने प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया था. जिसके बाद बीजेपी इस मामले को सुप्रीम कोर्ट में भी लेकर गई थी, हालांकि वहां से भी कोई फायदा नहीं हुआ.
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