Explainer: उत्तरकाशी बार-बार आपदाओं की चपेट में क्यों आता है? जानिए इसके पीछे की भौगोलिक वजहें
बादल फटना एक खतरनाक मौसमीय घटना है जिसमें बहुत कम समय में भारी मात्रा में पानी गिरता है. उत्तरकाशी जैसे पहाड़ी इलाकों में यह पानी बाढ़ और भूस्खलन का कारण बनता है, जिससे भारी तबाही होती है.
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Uttarkashi Cloudburst: 5 अगस्त को उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले के धराली गांव में बादल फटने से खीर गंगा गदेरे (गहरी खाई या नाला) में अचानक बाढ़ आ गई. पहाड़ से पानी का सैलाब इतना तेज आया कि 34 सेकेंड के भीतर ही एक पूरा गांव बह गया.
इस भयंकर तबाही में आधिकारिक तौर पर अब तक 4 लोगों की मौत की पुष्टि हुई है और लगभग 50 से ज्यादा लोग लापता है. फिलहाल प्रभावित इलाकों में राहत और बचाव कार्य जारी हैं, लेकिन खराब मौसम और दुर्गम पहाड़ी रास्ता इन कार्यों को और भी मुश्किल बना रहे हैं.
इस विनाशकारी घटना को देखते हुए एक सवाल ये उठता है कि आखिर उत्तरकाशी ही क्यों? इस इलाके में ऐसा क्या खास है कि यहां के लोगों को बार-बार बाढ़, भूस्खलन और बादल फटने जैसी आपदाओं का सामना करना पड़ रहा है.
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इस एक्सप्लेनर में हम विस्तार से उत्तरकाशी की भौगोलिक स्थिति और प्राकृतिक बनावट के बारे में चर्चा करेंगे.
उत्तरकाशी ही क्यों, 5 कारण
1. पहाड़ी और अस्थिर भू-भाग: उत्तरकाशी उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र में है. यह पूरा इलाका हिमालय की गोद में बसा है जो ज्यादातर ऊंचे-नीचे पहाड़ों, गहरी घाटियों और ढलानों से बना हुआ है.
इस इलाके की चट्टानें सदियों पुरानी और कमजोर है, जिससे यहां लैंडस्लाइड की घटनाएं बेहद ही आम हो गई हैं. इतना ही नहीं मॉनसून के समय जब बारिश का पानी जमीन के अंदर चला जाता है तो कमजोर चट्टानें और मिट्टी खिसक जाती हैं. यही वजह है कि इन इलाकों में थोड़ी सी भी बारिश भूस्खलन और मिट्टी धंसने जैसी आपदाओं को जन्म दे देती है.
2. ग्लेशियरों से निकलती नदियां और उनका रफ्तार से बहना: कई हिमालयी नदियां उत्तरकाशी से होकर गुजरती है. इन नदियों में भागीरथी नदी सबसे प्रमुख है. ये गंगोत्री ग्लेशियर के गौमुख से निकलते हुए उत्तरकाशी जिले से होते हुए नीचे की ओर बहती है. इस इलाके में और भी कई नदियां हैं. जैसे- अलकनंदा, मंदाकिनी, धौलीगंगा आदि. ये सभी नदियां ग्लेशियरों से निकलती हैं.
गर्मी और मानसून में इनका जलस्तर काफी तेजी होता है. जब यही नदियां मॉनसून के वक्त तेज बारिश से और गर्मी के वक्त ग्लेशियर के पिघलने से एक साथ उफान पर होती हैं तो बाढ़ और फ्लैश फ्लड (अचानक आई बाढ़) की स्थिति बन जाती है. धराली, हर्षिल और गंगोत्री जैसे इलाके इन्हीं नदियों के किनारे बसे हैं, यही कारण है कि ये सबसे पहले इसकी चपेट में आते हैं.
3. अचानक बादल का फटना: आमतौर पर समतल इलाकों की तुलना में हिमालयी इलाके में बादल फटने (Cloudburst) की घटना ज्यादा होती है. यह एक ऐसा मौसमीय घटनाक्रम है जिसमें सेकेंडो में भारी मात्रा में पानी गिरता है.
माना जा रहा है कि 5 अगस्त को धराली में जो विनाशकारी बाढ़ आई है वो भी बादल फटने की कारण आई है. इस घटना में इतनी तेज रफ्तार में पानी गिरा कि पानी गिरा कि लोगों को संभलने का मौका तक नहीं मिला. पहाड़ों में ऐसे पानी का बहाव सैलाब बनकर नीचे बहता है और जो कुछ भी रास्ते में आता है, उसे बहा ले जाता है.
4. घने जंगलों की कटाई और बढ़ता इंफ्रास्ट्रक्चर: पहले की तुलना में आज उत्तरकाशी में वनों की कटाई तेजी से हुई है. पेड़ ही है जो पहाड़ों को मजबूती देते हैं, लेकिन इनकी लगातार कटाई के कारण मिट्टी की पकड़ कमजोर हो जाती है और बारिश में जमीन खिसकने लगती है.
साथ ही, बिना योजना के सड़कें, होटल, और घरों का बनना भी इस समस्या को बढ़ा रहा है. अब गंगोत्री रोड (NH-108) की बात करें तो यहां जिस तरह तेजी से निर्माण हुआ है, उसने पहाड़ों की प्राकृतिक संरचना को कमजोर कर दिया है.
5. क्लाइमेंट जेंच का असर: उत्तराखंड जैसे पर्वतीय राज्यों में जलवायु परिवर्तन का असर और भी ज्यादा दिख रहा है. यहां पहले की तुलना में ग्लेशियर के पिघलने की रफ्तार काफी तेज हो गई है, बारिश के पैटर्न में बदलाव आया है और अचानक मौसम बिगड़ने की घटनाएं बढ़ गई हैं.
इतना ही नहीं जैसे जैसे ग्लेशियर पिघल रहा है वैसे वैसे नदियों का बहाव अनियमिक हो गया है. नदियों में एक वक्त में बहुत ज्यादा पानी आने से वे उफन जाती हैं और बाढ़ जैसी स्थिति बन जाती है.
धार्मिक पर्यटन और भीड़भाड़ भी बड़ा कारण
उत्तरकाशी, खासकर गंगोत्री चारधाम यात्रा का हिस्सा है और यहां साल दर साल लाखों श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं. इस यात्रा के लिए हर साल नए सड़कें, पार्किंग लॉट, होटल और रुकने की जगहें बनाई जाती हैं.
इस भारी निर्माण से न केवल प्राकृतिक संतुलन बिगड़ता है, बल्कि पर्यावरण पर भी दबाव बढ़ता है. भारी ट्रैफिक और पर्यटन से कूड़ा-कचरा, पानी की कमी और स्थानीय संसाधनों पर बोझ जैसी समस्याएं भी पैदा होती हैं.
ये इलाका झेलता है प्राकृतिक आपदाओं की सीधी मार
- धराली: 5 अगस्त को बाढ़ का शिकार होने वाला इलाका धराली भागीरथी नदी के किनारे बसा एक छोटा सा गांव है. यह गंगोत्री से मात्र 14 किमी दूर है और चारों तरफ से जंगलों और पहाड़ों से घिरा हुआ है.
- हर्षिल: हर्षिल, धराली से केवल 6 किमी दूर, एक प्रसिद्ध पर्यटन स्थल है और सेना की छावनी भी है.
- गंगोत्री: वहीं गंगोत्री मां गंगा का मुख्य मंदिर स्थल है और हर साल हजारों तीर्थयात्रियों को आकर्षित करता है.
- मुखबा: इस इलाके के गंगोत्री मंदिर का ‘मायका’ कहा जाता है.
उपर जितने इलाकों के बारे में बताया गया है वो सभी इलाकें काफी ऊंचाई पर और नदियों के बिल्कुल पास है, जिससे ये इलाका प्राकृतिक आपदाओं की सीधी मार झेलता है.
अब समझिए की बादल फटने पर किसी इलाके में कितना पानी बरस जाता है?
इसे आसान तरीके से समझने के लिए पहले 1mm बारिश का मतलब समझते हैं. अगर किसी इलाके में 1mm बारिश हुआ इसका मतलब है वहां 1 मीटर लंबे और 1 मीटर चौड़े यानी 1 वर्ग मीटर इलाके में 1 लीटर पानी बरसा है.
अब इसी गणित को बादल फटने के बाद जो पानी आता है उसमें फिट करें तो जब भी 1 मीटर लंबे और 1 मीटर चौड़े इलाके में 100 लीटर से ज्यादा पानी बरस जाए और इसका टाइम ड्यूरेशन एक घंटे या उससे भी कम हो तो समझ जाइए इस इलाके पर बादल फट गया.
अब आप सोचिए कि 10 लाख वर्ग मीटर क्षेत्र में यही पानी गिरती है, तो कुल पानी हो जाता है करीब 10 करोड़ लीटर और अगर बादल फटने की घटना 20 से 30 वर्ग किलोमीटर के इलाके में होती है, जैसा कि उत्तरकाशी जैसे पहाड़ी इलाकों में अक्सर होता है, उस दौरान 200 से 300 करोड़ लीटर पानी सिर्फ एक घंटे से भी कम समय में गिर सकता है.
अब इसे ऐसे समझिये कि जब इतना सारा पानी पहाड़ों पर अचानक और बहुत तेज़ी से गिरता है, तो उसका क्या असर होगा? वो पानी अपने साथ न केवल मलबा बल्कि चट्टानें, मिट्टी और पेड़ बहा ले जाता है.
यही कारण है कि उत्तरकाशी जैसे इलाकों में जब बादल फटता है, तो नदियाँ उफन जाती हैं, भूस्खलन होता है और गांव-के-गांव तबाह हो जाते हैं.
इसलिए बादल फटना कोई आम बारिश नहीं है, बल्कि यह एक भीषण, तीव्र और विनाशकारी मौसमीय घटना है, जिसका असर पहाड़ी क्षेत्रों में कहीं ज़्यादा गंभीर होता है.
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