चुनाव से पहले स्टालिन सरकार को झटका: योजनाओं में सीएम की फोटो और नाम पर मद्रास हाईकोर्ट की रोक

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चुनाव से पहले तमिलनाडु की स्टालिन सरकार को मद्रास हाईकोर्ट से बड़ा झटका लगा है, जिसने सरकारी योजनाओं में सीएम स्टालिन और अन्य नेताओं की तस्वीरें व नाम के इस्तेमाल पर रोक लगा दी. सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई स्वीकार कर ली है, जिससे अब पूरे देश के लिए एक अहम कानूनी मिसाल बन सकती है.

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ये देश की राजनीति का चलन है कि जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आते जाएंगे, नई योजनाएं शुरू होती जाएंगी. योजनाओं के प्रचार में सीएम का नाम और फोटो और ज्यादा चमकने लगेगा. तमिलनाडु में भी यही होने वाला है. अगले साल विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं लेकिन मद्रास हाईकोर्ट से स्टालिन सरकार और डीएमके को बैक टू बैक झटके लगे हैं. 

चुनाव में जनता को लुभाने के लिए सरकार ने सीएम स्टालिन के नाम पर नई-नई योजनाएं उंगलुदन स्टालिन और नालम काकुम स्टालिन थिट्टम लॉन्च कर दी. उंगलुदन स्टालिन का मतलब है आपके साथ स्टालिन. 

नालम कक्कुम स्टालिन योजना 2 अगस्त को शुरू हुई जो स्वास्थ्य योजना है. इससे बौखलाई AIADMK ने कोर्ट में स्टालिन सरकार को घेर लिया. कहा कि ऐसा करके सरकार ने सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन और चुनाव आयोग के नियम तोड़े हैं. मद्रास हाईकोर्ट ने ऐसा आदेश दिया जिससे स्टालिन सरकार की योजनाओं पर चुनाव से पहले पानी फिर गया.

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एआईएडीएमके सांसद सी.वी. षणमुगम ने मद्रास हाईकोर्ट में केस कर दिया. चीफ जस्टिस मनींद्र मोहन श्रीवास्तव की हाईकोर्ट बेंच ने आदेश दे दिया कि सरकारी कल्याणकारी योजनाओं से संबंधित प्रचार सामग्री में सीएम के नाम या उनकी तस्वीर का उपयोग न हो. योजना के नामों में जीवित नेताओं की पहचान का प्रयोग नहीं होना चाहिए. 

सरकार ने दलील रखी कि जब सरकारी योजनाओं का नाम नरेंद्र मोदी के नाम पर नमो और जयललिता के नाम पर अम्मा रखा जा सकता है तो उंगलुदन स्टालिन नाम रखने में क्या आपत्ति है. हाईकोर्ट ने कहा कि सरकारी पैसों से चल रही योजनाओं को राजनीतिक रूप से तटस्थ रखना चाहिए. हालांकि हाईकोर्ट ने किसी योजना पर रोक नहीं लगाई. 

फोटो लगाकर गुनगान नहीं करेगी तो कैसे मिलेगा वोट

चुनाव से पहले मद्रास हाईकोर्ट का आदेश तमिलनाडु की स्टालिन सरकार के हाथ-पैर बांधने जैसा था. सरकार अगर सीएम की फोटो लगाकर गुणगान नहीं करेगी तो वोट कैसे मांगेगी. सरकार भागी-भागी  सुप्रीम कोर्ट पहुंची. चीफ जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस विनोद चंद्रन की बेंच के सामने याचिका लगाई कि ऐसा कैसा चलेगा. 

तमिलनाडु सरकार को बड़ी राहत ये मिली कि सुप्रीम कोर्ट ने याचिका को सुनवाई के लिए मंजूर कर लिया है. 6 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट तय करेगा कि सरकारी योजनाओं में सीएम का नाम या फोटो इस्तेमाल किया जा सकता है या नहीं. सुप्रीम कोर्ट का आदेश तमिलनाडु ही नहीं, पूरे देश की सरकारों के लिए एक बार फिर लैंडमार्क जजमेंट बनेगा. 

2015 में सुप्रीम कोर्ट में रूलिंग दी थी कि सरकारी विज्ञापनों में सिर्फ राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और भारत के चीफ जस्टिस की फोटो छापने की अनुमति दी थी.  किसी और नेता और व्यक्ति की फोटो लगाने पर रोक लगी.  तब केंद्र सरकार समेत कई राज्यों की सरकारों ने इसका विरोध किया था.

तब जस्टिस रंजन गोगोई और जस्टिस पीसी घोष की बेंच ने पुनर्विचार याचिकाएं स्वीकार करते हुए आदेश में संशोधन किया और राज्यपालों, मुख्यमंत्रियों और संबंधित विभाग के मंत्रियों के फोटो सरकारी विज्ञापनों में छापने की इजाजत दी थी. तब मुकुल रोहतगी केंद्र सरकार के वकील थे. अब मुकुल रोहतगी स्टालिन सरकार की पैरवी कर रहे हैं. 

बड़े-बड़े नेताओं की लगी है फोटो

अभी जो विवाद हुआ उसमें स्टालिन के साथ-साथ तमिलनाडु के बड़े-बड़े नेताओं डीएमके संस्थापक और पूर्व करुणानिधि पेरियार, सी.एन. अन्नादुरई की भी फोटो लगी हैं. मद्रास हाईकोर्ट ने सरकार को इन नेताओं की तस्वीरों के इस्तेमाल पर अस्थायी रूप से रोक लगा दी. मद्रास हाईकोर्ट ने ऐसी योजनाओं के प्रचार के विज्ञापनों में पूर्व सीएम, वैचारिक नेताओं या डीएमके से जुड़े किसी चिन्ह के इस्तेमाल पर रोक लगाई है. 

मद्रास हाईकोर्ट से डीएमके को एक और झटका लगा. चुनाव से पहले डीएमके ने अपने संगठन विस्तार के लिए सदस्यता अभियान शुरू किया. सदस्य बनाने के लिए आधार नंबर की शर्त रखी. व्यवस्था बनाई कि आधार ओटीपी से सदस्यता कन्फर्म होगी.  डीएमके की इस मुहिम के खिलाफ पीआईएल लगी कि डीएमके प्राइवेसी का उल्लंघन करते हुए आधार डेटा स्टोर कर रही है.

मद्रास हाईकोर्ट ने आदेश दिया कि डीएमके आधार ओटीपी की शर्त नहीं रख सकती. डीएमके ने सुप्रीम कोर्ट में हाईकोर्ट के आदेश को चैलेंज किया लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने डीएमके की बात नहीं मानी. सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट का आदेश बरकरार रखा कि डीएमके पार्टी कैंपेन में आधार ओटीपी की शर्त नहीं रख सकती.

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