उपराष्ट्रपति चुनाव: BJP ने सीपी राधाकृष्णन तो विपक्ष ने सुदर्शन रेड्डी पर खेला दांव, क्या हैं इसके सियासी मायने

अलका कुमारी

उपराष्ट्रपति चुनाव में NDA के पास स्पष्ट संख्यात्मक बढ़त है, लेकिन विपक्ष ने जस्टिस रेड्डी को उतारकर चुनाव को नैतिक बनाम वैचारिक टकराव में बदल दिया है. अब फैसला इस बात पर टिका है कि रणनीति भारी पड़ती है या संख्याबल.

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सुदर्शन रेड्डी (बाएं) vs सीपी राधाकृष्णन (दाएं) होगा उपराष्ट्रपति चुनाव. (Photo- ITG)
सुदर्शन रेड्डी (बाएं) vs सीपी राधाकृष्णन (दाएं) होगा उपराष्ट्रपति चुनाव. (Photo- ITG)
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देश में एक बार फिर सियासी बिसात बिछ चुकी है. इस बार दांव है, भारत के उपराष्ट्रपति पद का. भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाला एनडीए और कांग्रेस समेत तमाम विपक्षी दलों का गठबंधन 'इंडिया' आमने-सामने हैं. दोनों खेमों ने अपने-अपने उम्मीदवारों की घोषणा कर दी है. 

एक तरफ जहां एनडीए की तरफ से महाराष्ट्र के राज्यपाल और पुराने संघ स्वयंसेवक सीपी राधाकृष्णन इस पद के उम्मीदवार हैं को वहीं दूसरी तरफ 'इंडिया' गठबंधन ने सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस सुदर्शन रेड्डी को मैदान में उतार कर मुकाबले को दिलचस्प बना दिया है.

ऐसे में एक सवाल ये उठता है कि कि आखिर बीजेपी ने सीपी राधाकृष्णन पर दांव ही क्यों खेला, और विपक्ष ने जस्टिस रेड्डी को ही इस पद से लिए क्यों चुना? 

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इस रिपोर्ट में विस्तार से समझते हैं कि दोनों की रणनीति क्या है और इसके पीछे कौन-कौन से राजनीतिक, सामाजिक और क्षेत्रीय समीकरण काम कर रहे हैं? 

बीजेपी का गेम प्लान, सीपी राधाकृष्णन क्यों?

17 अगस्त को बीजेपी ने कई बैठकों के बाद उपराष्ट्रपति पद के लिए तमिलनाडु के वरिष्ठ नेता और वर्तमान महाराष्ट्र के राज्यपाल सीपी राधाकृष्णन के नाम का ऐलान किया. पार्टी के इस फैसले के पीछे कई रणनीतिक वजहें हैं:

1. दक्षिण भारत में सियासी पकड़ मजबूत करने की कोशिश

उत्तर भारत में पार्टी की पकड़ मजबूत है, लेकिन तमिलनाडु, केरल, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना जैसे राज्यों में अभी तक बड़ी सफलता नहीं मिल पाई है. ऐसे में फिलहाल भारतीय जनता पार्टी के लिए सबसे बड़ी चुनौती दक्षिण भारत में अपने पैर जमाना है.

सीपी राधाकृष्णन तमिलनाडु से आते हैं और राज्य में बीजेपी के पुराने और समर्पित नेता माने जाते हैं. ऐसे में पार्टी उन्हें आगे कर दक्षिण भारत को यह संदेश पहुंचाना चाहती है कि बीजेपी दक्षिण के नेताओं को भी शीर्ष पदों तक पहुंचा सकती है.

2. ओबीसी कार्ड का इस्तेमाल

सीपी राधाकृष्णन ओबीसी समुदाय यानी अन्य पिछड़ा वर्ग से आते हैं. भारत में ओबीसी आबादी लगभग 50 प्रतिशत है. ऐसे में इस वर्ग को साधना साल 2024 में हुए लोकसभा चुनाव के बाद से बीजेपी की बड़ी प्राथमिकता बन चुकी है.

वहीं कांग्रेस ने ता राहुल गांधी भी लगातार ओबीसी समुदाय के हितों को लेकर आवाज उठाते रहे हैं, ऐसे में बीजेपी ने अपने उम्मीदवार को ओबीसी से लाकर विपक्ष के इस एजेंडे को कमज़ोर करने की कोशिश की है.

3. संघ पृष्ठभूमि और विचारधारा की निष्ठा

सीपी राधाकृष्णन आरएसएस से निकले नेता हैं और जनसंघ के समय से ही संगठन के साथ जुड़े रहे हैं. वे लंबे वक्त तक बीजेपी संगठन में विभिन्न पदों पर कार्यरत भी रह चुके हैं. 

पिछली बार उपराष्ट्रपति बने जगदीप धनखड़ का संघ से कोई गहरा नाता नहीं था. यही कारण रहा कि कुछ मौकों पर उन्होंने सरकार से अलग राय भी रखी थी. ऐसे में इस बार बीजेपी ने एक ऐसा चेहरा चुना है जो विचारधारा से पूरी तरह जुड़ा और पार्टी के प्रति निष्ठावान हो.

4. पार्टी कार्यकर्ताओं को संदेश

बीजेपी ने राधाकृष्णन को उपराष्ट्रपति का चेहरा बनाकर पार्टी के उन कार्यकर्ताओं को बड़ा संदेश दिया है जो लंबे वक्त से संगठन से जुड़े हैं. इस तरह यह बताने की कोशिश की गई है कि पार्टी वफादारी और समर्पण का सम्मान करती है और संगठन से निकले लोगों को शीर्ष पदों तक पहुंचने का मौका देती है.

5. राजनीतिक संतुलन और रणनीति

हमारे देश के दो शीर्ष पदों पर उत्तर भारत के नेता है. पहला प्रधानमंत्री मोदी और दूसरा पार्टी अध्यक्ष नड्डा. ऐसे में उपराष्ट्रपति पद के लिए दक्षिण भारत से उम्मीदवार देकर बीजेपी ने क्षेत्रीय संतुलन साधने की कोशिश की है. इसके साथ ही, राधाकृष्णन के ज़रिए बीजेपी ने डीएमके और एआईएडीएमके जैसे तमिल दलों को भी सियासी असमंजस में डाल दिया है. 

विपक्ष का मास्टरस्ट्रोक, क्यों चुना गया जस्टिस सुदर्शन रेड्डी?

जब 17 अगस्त को एनडीए ने अपना उम्मीदवार घोषित किया, तो सबकी निगाहें विपक्ष पर थीं कि जवाब में वो किसके नाम का ऐलान करेंगे. विपक्ष गठबंधन INDIA ब्लॉक ने जस्टिस सुदर्शन रेड्डी के नाम की घोषणा से पहले कई दौर की बैठकें की, जिसके बाद आज यानी 19 अगस्त को जस्टिस सुदर्शन रेड्डी का नाम आगे बढ़ाया गया. 

विपक्ष की तरफ से सुदर्शन रेड्डी को उम्मीदवार घोषित करने का ये फैसला न केवल चौंकाने वाला था, बल्कि रणनीतिक भी. जानिए क्यों:

 1. गैर-राजनीतिक और बेदाग छवि

जस्टिस रेड्डी सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश हैं. उनका राजनीतिक पृष्ठभूमि से कोई लेना-देना नहीं है. रेड्डी की छवि भी साफ, निष्पक्ष और सशक्त न्यायपालिका का प्रतिनिधित्व करने वाली मानी जाती है. विपक्ष चाहता है कि उपराष्ट्रपति जैसे संवैधानिक पद पर राजनीतिक नहीं, नैतिक बल वाला चेहरा बैठे. 

2. दक्षिण भारत का प्रतिनिधित्व

जस्टिस रेड्डी भी दक्षिण भारत, यानी आंध्र प्रदेश से ताल्लुक रखते हैं. डीएमके और अन्य दक्षिणी दल चाहते थे कि विपक्ष का उम्मीदवार दक्षिण से हो. इस तरह विपक्ष ने भी क्षेत्रीय समीकरण को ध्यान में रखते हुए ऐसा चेहरा चुना जो सभी क्षेत्रीय दलों को स्वीकार्य हो.

3. सर्वसम्मति से लिया गया फैसला

जस्टिस रेड्डी ऐसा नाम है जिनपर कांग्रेस, टीएमसी, आप, डीएमके जैसी सभी प्रमुख विपक्षी पार्टियों ने सहमति जताई है. ऐसे दौर में कांग्रेस ने  रेड्डी को उम्मीदवार बनाकर विपक्षी एकता एकजुटता का संदेश दिया है.

4. एनडीए के लिए मुश्किल खड़ी करने की रणनीति

विपक्ष ने एक ऐसा चेहरा खड़ा किया है जिनका कोई पॉलिटिकल बैकग्राउंड नहीं है. ऐसे में एक पूर्व जज के सामने किसी पार्टी के लिए यह कहना मुश्किल हो जाता है कि वो उनका समर्थन नहीं करेगी. एनडीए को उम्मीद थी कि इस चुनाव में टीडीपी, वाईएसआरसीपी और बीआरएस उनका साथ देंगे. लेकिन इन पार्टियों को भी एनडीए का साथ देने से पहले जवाब देना होगा कि वो न्यायपालिका के निष्पक्ष चेहरे को क्यों नकार रहे हैं.

5. विचारधारा की सीधी टक्कर

विपक्षी दलों ने सुदर्शन रेड्डी के उम्मीदवार बनाकर सीधा संदेश दिया है कि "उनके पास संघ से जुड़ा नेता है, हमारे पास सुप्रीम कोर्ट का पूर्व न्यायाधीश है." इस चुनाव में विचारधारा बनाम निष्पक्षता की बहस छेड़ने की कोशिश की जा रही है. यह मुकाबला सिर्फ दो नामों का नहीं, बल्कि संवैधानिक मूल्यों बनाम राजनीतिक निष्ठा का बताया जा रहा है.

नंबर गेम में एनडीए आगे

उपराष्ट्रपति चुनाव में फिलहाल NDA का पलड़ा भारी दिख रहा है. दोनों सदनों को मिलाकर कुल 781 सांसद हैं, यानी जीतने के लिए 391 वोट जरूरी हैं. फिलहाल NDA के पास 427 सांसदों का समर्थन है. जिसमें से 293 लोकसभा और 134 राज्यसभा से है.  

वहीं, इंडिया गठबंधन के पास लगभग 355 सांसद हैं. 249 लोकसभा और 106 राज्यसभा से. हालांकि इनमें से 130 से ज्यादा सांसद अभी निर्णायक स्थिति में हैं. फिर भी, आंकड़ों के हिसाब से NDA अपने उम्मीदवार सीपी राधाकृष्णन को आसानी से जिता सकता है, बशर्ते क्रॉस वोटिंग न हो.

किसका दांव कितना मजबूत?

जहां बीजेपी ने सीपी राधाकृष्णन को उतारकर ओबीसी, दक्षिण भारत, विचारधारा और संगठन निष्ठा जैसे मुद्दों को साधा है, वहीं विपक्ष यानी INDIA ब्लॉक ने नैतिकता, निष्पक्षता और सर्वसम्मति को अपना हथियार बनाया है.

- बीजेपी चाहती है कि उपराष्ट्रपति का ये चुनाव उसके सियासी और वैचारिक विस्तार का प्रतीक बने.
- जबकि विपक्ष चाहता है कि यह चुनाव संवैधानिक मूल्यों और न्यायपालिका की प्रतिष्ठा को बचाने का प्रतीक बने. 

अब देखना ये है कि दोनों में से किसकी रणनीति जनता और सांसदों पर ज्यादा असर डालती है. क्या एनडीए अपने बहुमत के दम पर राधाकृष्णन को जिता पाएगा? या विपक्ष का यह 'गैर-राजनीतिक मास्टरस्ट्रोक' कुछ नए समीकरण बना देगा?

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