येदियुरप्पा के बेटे विजयेंद्र बने कर्नाटक के अध्यक्ष, क्या इसे BJP का परिवारवाद कहेंगे?
बीजेपी ने पूर्व CM बीएस येदियुरप्पा के बेटे विजयेंद्र येदियुरप्पा को कर्नाटक का प्रदेश अध्यक्ष बनाया है. क्या इसे BJP का परिवारवाद कहेंगे?
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BS Yediyurappa’s son Vijayendra is new Karnataka BJP chief: भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा के बेटे विजयेंद्र येदियुरप्पा को कर्नाटक का प्रदेश अध्यक्ष बनाया है. विजयेंद्र कर्नाटक बीजेपी के उपाध्यक्ष थे. 47 साल के विजयेंद्र येदियुरप्पा के छोटे बेटे हैं और शिवमोगा जिले की शिकारपुरा सीट से पहली बार विधायक बने हैं. येदियुरप्पा के बड़े बेटे बीवाई राघवेंद्र भी शिवमोगा से सांसद हैं. येदियुरप्पा ने कहा है कि उन्होंने कभी पार्टी से नहीं कहा कि बेटे को अध्यक्ष बनाएं. पर कांग्रेस इसे वंशवादी राजनीति कह रही है. कांग्रेस ने तंज कसा है कि येदियुरप्पा का बेटा होना ही विजयेंद्र की योग्यता है. सवाल यह है कि क्या इस फैसले को बीजेपी का परिवारवाद कहा जाना चाहिए?
आइए बीजेपी के परिवारवाद पर एक नजर डालते हैं
बीजेपी में सिर्फ विजयेंद्र की नियुक्ति ही ऐसी नहीं है जब नेताओं की सेकेंड जेनरेशन टॉप लीडरशिप में शुमार हुई है. ऐसे ढेरों उदाहरण हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कैबिनेट के केंद्रीय वाणिज्य और उद्योग मंत्री पीयूष गोयल राजनीति में अपने परिवार की दूसरी पीढ़ी हैं. उनके पिता वेद प्रकाश गोयल पूर्व केंद्रीय मंत्री रह चुके हैं. सूचना प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर हिमाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल के बेटे हैं. शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान के पिता देवेंद्र प्रधान बीजेपी के सांसद थे. रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के बेटे पंकज सिंह यूपी के नोएडा से विधायक हैं. राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया के बेटे दुष्यंत सिंह राजस्थान से बीजेपी सांसद हैं. ये लिस्ट काफी लंबी है.
इसके अलावा परिवार की राजनीति को आगे बढ़ाने वाले दूसरे पार्टी के नेता भी बीजेपी का अंग हैं. इसमें पूर्व केंद्रीय मंत्री माधवराव सिंधिया के बेटे ज्योतिरादित्य सिंधिया हैं. सिंधिया जब कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में आए तो पार्टी ने उन्हें राज्यसभा सांसद बनाया और केंद्रीय उड्डयन मंत्रालय सौंप दिया. कांग्रेस के पूर्व नेता जितिन प्रसाद उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार में पथ निर्माण मंत्रालय संभाल रहे हैं. जितिन प्रसाद के पिता जितेंद्र प्रसाद कांग्रेस के बड़े नेता थे.
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बीजेपी के परिवारवाद और दूसरी पार्टियों के वंशवाद में कोई फर्क है?
अब सवाल यह उठता है कि बीजेपी में जब परिवारवादी राजनीति के ऐसे ढेरों उदाहरण हैं, तो दूसरे दलों से इसमें क्या कोई फर्क है? इस सवाल को लेकर न्यूज Tak ने वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक विजय त्रिवेदी से बात की. विजय त्रिवेदी ने कहा कि यह बात तो अब साफ है कि दूसरे दलों की तरह बीजेपी में भी परिवारवादी राजनीति के लक्षण बढ़े हैं. पर विजय त्रिवेदी इसमें एक बारीक फर्क भी करते हैं. वह कहते हैं, ‘अगर आप समाजवादी पार्टी को देखें, तो मुलायम सिंह यादव के स्वभाविक राजनीतिक उत्तराधिकारी अखिलेश यादव हैं. ऐसा सोचते हुए क्या आपके दिमाग में कभी आजम खान का नाम आ सकता है? शायद नहीं.’
विजय त्रिवेदी के मुताबिक, ‘यही हाल कांग्रेस में भी है. गांधी परिवार की विरासत स्पष्ट है कि किसके पास जाएगी. अगर आप कर्नाटक में विजयेंद्र की नियुक्ति को देखें तो इसे सिर्फ वंशवादी राजनीति की वजह से लिया गया फैसला नहीं कहा जा सकता. बीजेपी को लगता है कि येदियुरप्पा का परिवार लिंगायत वोटों को साधने में काम आएगा. हमें यह समझना चाहिए कि बीजेपी क्यों दूसरी पार्टियों खासकर कांग्रेस पर परिवारवाद का आरोप लगाने में सफल रही. कांग्रेस आजादी के बाद लंबे समय तक सत्ता में रही. जो नेता सत्ता में रहे, उन्होंने चाहा की उनकी अगली पीढ़ी राजनीति में आए. बीजेपी के साथ ऐसा नहीं था. उनके नेता सत्ता में नहीं रहे, तो उस हिसाब से उनकी दूसरी पीढ़ी सत्ता में नहीं आई. अब बीजेपी सत्ता में है, तो दूसरी पीढ़ी के आने का क्रम तेज हुआ है.’ येदियुरप्पा लिंगायत समुदाय से आते हैं. कर्नाटक की आबादी में करपीब 18 फीसदी लिंगायत हैं.
विजय त्रिवेदी यह जरूर मानते हैं कि अब कमोबेश सभी पार्टियों में वंशवादी राजनीति है. बीजेपी भी अपवाद नहीं है. जाहिर तौर पर वंशवाद का आरोप लगाने वाला बीजेपी का यह राजनीतिक हथियार कमजोर हुआ है. लोगों को भी अब यह आम बात लगने लगी है. लेकिन दूसरे दलों को देखें तो बीजेपी अभी भी इस आरोप से बच जाती है. बीजेपी में तय नहीं है कि किसी परिवार का सदस्य ही इसका अध्यक्ष बनेगा. ये भी तय नहीं है कि बीजेपी सत्ता में आई तो प्रधानमंत्री कौन बनेगा. विजय त्रिवेदी कहते हैं कि बीजेपी की टॉप लीडरशिप जैसे अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी जैसे नेताओं के परिवार पार्टी में हावी नहीं हुए. ये बात नरेंद्र मोदी के लिए भी कही जा सकती है.