पश्चिम बंगाल में भी अबतक हुई कम वोटिंग, ममता बनर्जी या बीजेपी, किसके लिए ये टेंशन की बात?

News Tak Desk

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Loksabha Election in West Bengal: लोकसभा चुनाव के दो फेज समाप्त हो चुके हैं. तीसरे चरण का चुनाव 7 मई को होने जा रहा है. दो फेजो में कुल 190 सीटों पर मतदान हो गए हैं. पश्चिम बंगाल की 42 में से 6 सीटों पर वोट डाले जा चुके हैं. पश्चिम बंगाल की छह सीटों पर हुए मतदान में लोगों ने बढ़ चढ़कर हिस्सा नहीं लिया जो कि राजनीतिक पार्टियों के लिए चिंता का विषय है. दूसरे चरण के वोटिंग प्रतिशत की संख्या ने इस बात की पुष्टि की. दोनों फेजों में हुई वोटिंग में 2019 की तुलना में इस बार तीन फीसदी कम वोटिंग हुई है.

बीजेपी को अपने 370 सीटों के टार्गेट तक पहुंचने के लिए पश्चिम बंगाल की 18 सीटों पर जीत बरकरार रखनी होगी जो उन्होंने 2019 में जीती थीं.  बंगाल की छह सीटें - कूच बिहार, अलीपुरद्वार, जलपाईगुड़ी, दार्जिलिंग, रायगंज और बालुरघाट - जिन पर अब तक चुनाव हो चुके हैं, जो की बीजेपी के मिशन के लिए काफी महत्वपूर्ण हैं.

दूसरी तरफ, पश्चिम बंगाल की सीएम और टीएमसी की संस्थापक ममता बनर्जी का भाजपा को हराना उनके लिए जरूरी होगा, जिससे की वे राज्य में खुद को और ज्यादा मजबूत कर सकें.

टीएमसी और बीजेपी के लिए कम वोट का क्या मतलब है?

जिन मतदाताओं ने पहले चरण में अलीपुरद्वार, कूच बिहार और जलपाईगुड़ी में वोट नहीं दिया, उन्होंने राजनीतिक दलों को एक सख्त मैसेज दिया है. इन सीटों पर वोटिंग प्रतिशत की बात करें तो 2019 में 84.08 प्रतिशत लोगों ने वोट किया था , जो कि इस बार के गिरकर 82.16 रह गया है. दूसरे चरण में 76.58 प्रतिशत के भारी मतदान के बावजूद मतदान में 4.5 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई.

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बहरहाल, ये भाजपा और ममता बनर्जी दोनों के लिए बुरी खबर है. ममता बनर्जी ने 2019 के चुनाव में 22 सीटों पर जीत हासिल की थी और 2014 में 34 सीट अपने नाम की थी. ममता 2014 वाले नतीजों को हासिल करने के लिए कड़ी मेहनत कर रही हैं. 

ऐसे में क्या कर सकती हैं पार्टियां?

चुनाव में दिलचस्पी ना लेने वाले मतदाताओं से निपटना मुश्किल हो सकता है. वोटर्स का मनोबल बढ़ाने के लिए राजनीतिक दलों को अपनी स्ट्रैटेजी में बदलाव की जरूरत है. पार्टियों को ऐसे लोगों और कार्यकर्ताओं की आवश्यकता होती है, जो अपने क्षेत्रों को अच्छे से जानते हो. जो बात सबसे अधिक मायने रखती है वह है दलों के कार्यकर्ता और मतदाताओं के बीच संबंध; यदि किसी राजनीतिक दल ने जमीनी स्तर पर काम किया है तो वही उसकी कार्यकारी पूंजी है. तृणमूल कांग्रेस ने लंबे समय से जमीनी स्तर पर काम किया है जिसका उन्हें फायदा मिल रहा है.

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इसमें महिला मतदाताओं और मुस्लिम मतदाताओं के एक बड़े वर्ग का समर्थन टीएमसी को मिल रहा है. लेकिन इसके अलावा टीएमसी को शिक्षक भर्ती घोटाले, राशन घोटाले जैसे मामलों में फंसने का भी गंभीर नुकसान हो रहा है. टीएमसी के कैडर और स्थानीय नेताओं पर सरकारी योजनाओं के गरीब और कमजोर लाभार्थियों से पैसा हड़पने और जबरन वसूली में शामिल होने के आरोप हैं. पश्चिम बंगाल में इस चुनाव में भाजपा के स्थानीय नेताओं को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है. संदेशखाली जैसी जगहों पर भाजपा के पास एक या दो नेता और कुछ कार्यकर्ता  हैं. 

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अन्य दलों पर भी पड़ेगा प्रभाव

कम वोटिंग का असर चुनाव में लड़ रहे दो अन्य दलों, कांग्रेस और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के नेतृत्व वाले वाम मोर्चे पर भी पड़ेगा. अपनी किस्मत को पुनर्जीवित करने की सीपीआई (एम) की उम्मीदों के लिए मतदाताओं का इकलौता आधार है. पार्टी के राज्य सचिव मोहम्मद सलीम मुर्शिदाबाद से उम्मीदवार हैं जहां तीसरे चरण में 7 मई को मतदान होना है. कांग्रेस के पश्चिम बंगाल में अभी दो सांसद, जिनको फिर से जीत दिलाने के लिए कांग्रेस कड़ी मेहनत कर रही है. कम वोटिंग दोनों पार्टियों के लिए घातक साबित हो सकती है.

रिपोर्ट- शिखा मुखर्जी

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