महाराष्ट्र में मराठा बनाम ओबीसी आरक्षण! क्या छगन भुजबल के विरोध के पीछे बीजेपी?

देवराज गौर

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छगन भुजबल क्या बीजेपी के इशारे पर मराठा आरक्षण का विरोध कर रहे हैं.
छगन भुजबल क्या बीजेपी के इशारे पर मराठा आरक्षण का विरोध कर रहे हैं.
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Maharashtra Politics: महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण को लेकर एक नई बहस ने जन्म ले लिया है. महाराष्ट्र की एकनाथ शिंदे सरकार मराठाओं को आरक्षण देने पर तैयार है पर वह आंदोलनकारियों से वक्त मांग रही है. अब ऐसा लग रहा है कि इसे लेकर महायुति गठबंधन यानी शिवसेना, भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी (एनसीपी- अजित पवार गुट) के गठबंधन वाली सरकार में दरार पड़ सकती है. NCP अजित गुट के नेता और महाराष्ट्र सरकार में मंत्री छगन भुजबल ने कहा है कि अगर सरकार कहेगी, तो इस्तीफा दे दूंगा लेकिन अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के लिए लड़ाई लड़ना जारी रखूंगा.

छगन भुजबल महाराष्ट्र की राजनीति में ओबीसी का एक बड़ा चेहरा बनने की कोशिश में हैं. इनका तर्क है कि मराठा आरक्षण की हिस्सेदारी ओबीसी आरक्षण के अंदर नहीं होनी चाहिए. इनका विरोध भी इसी बात का है. पर अंदर की कहानी सिर्फ इतनी नहीं है.

मराठा आंदोलन के खिलाफ सख्त रवैया अपनाने से भुजबल ओबीसी समाज में हाथोहाथ लिए जा रहे हैं. मराठा आंदोलन के खिलाफ अपने भाषणों और बयानों की वजह से भुजबल को ओबीसी नेताओं का समर्थन भी मिला है. ओबीसी नेताओं ने मराठों के लिए अलग कोटा की जरूरत पर बल दिया है. ओबीसी के बीच डर यह है कि मराठों को ओबीसी में शामिल करने से आरक्षण का उनका हिस्सा कम हो जाएगा. छगन भुजबल ने ओबीसी समुदाय से मराठा आंदोलन में हो रही हिंसा का जवाब भी हिंसा से ही देने की अपील की है. इसके विरोध में महाराष्ट्र असेंबली के कई नेताओं ने भुजबल की सदस्यता खत्म करने की मांग की है.

क्या छगन भुजबल के कंधे पर रखकर बंदूक चला रही बीजेपी?

पारंपरिक तौर पर राज्य में बीजेपी को ओबीसी मतदाताओं का समर्थन मिलता रहा है. पर अब माहौल बदला हुआ है. मराठा आरक्षण की मांग के बीच ओबीसी बीजेपी को चुनौती दे सकते हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि बीजेपी सरकार में शामिल है और एकनाथ शिंदे सरकार मराठा समुदाय को ओबीसी आरक्षण देने के लिए कुनबी और ओबीसी सर्टिफिकेट देने की बात कर रही है. एक तबका ऐसा भी है, जो यह मान रहा है कि छगन भुजबल बीजेपी के इशारे पर विरोध कर रहे हैं. इस सियासत को समझने के लिए हमने हमारे सहयोगी इंडिया टुडे के मुंबई ब्यूरो के मैनेजिंग एडिटर साहिल जोशी से बात की.

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साहिल जोशी ने बताया कि अगर छगन भुजबल इस्तीफा देते हैं, तो इससे शिंदे सरकार की छवि को बहुत बड़ा झटका लगेगा. शिंदे सरकार में मतभेद हैं. एकनाथ शिंदे जो खुद को मराठा समाज के मसीहा के तौर पर पेश करना चाहते हैं, उनके लिए इसे काउंटर के रूप में देखा जाएगा कि उनकी वजह से एक मंत्री ने इस्तीफा दे दिया.

साहिल जोशी कहते हैं कि बीजेपी जो अपने आप को ओबीसी की पार्टी कहती है वो भी इसे लेकर शिंदे पर हावी होने की कोशिश करेगी. खासकर लोकसभा चुनाव से पहले महायुति सरकार के बीच में यह एक अलग तरह के संघर्ष को जन्म दे सकता है.

मराठा आंदोलन का फायदा अकेले उठाना चाहते हैं शिंदे?

साहिल जोशी के मुताबिक महाराष्ट्र में मराठा आंदोलन का फायदा एकनाथ शिंदे ने अकेले उठाने की कोशिश की है. मराठा आंदोलन के दौरान सबसे ज्यादा विरोध उप मुख्यमंत्री देवेंद्र फडनवीस को झेलना पड़ा. बीजेपी नेता इस पर कुछ नहीं कह पा रहे थे.

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छगन भुजबल की भूमिका की वजह से बीजेपी के लिए यह अच्छा हो गया कि जो उनको कहना था वो कई हद तक छगन भुजबल ने कह दिया.

बीजेपी अपने ओबीसी वोट बैंक को बचाने की कोशिश कर रही है. जब यह आंदोलन चालू हुआ था तभी बीजेपी ने ओबीसी को लेकर एक महासभा का आयोजन किया था. उसमें देवेंद्र फड़नवीस ने कहा था कि जो ओबीसी की बात करेगा वह देश पर राज करेगा. भुजबल बीजेपी के नेताओं को ये बताने की कोशिश कर रहे हैं कि आपका वोट बैंक ओबीसी हैं, शिंदे के चक्कर में मराठा वोट बैंक के पीछे पडेंगे तो उसका नुकसान भी भुगतना पड़ सकता है.

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बीजेपी के लिए कौन जरूरी, मराठा या ओबीसी?

इस सवाल के जवाब में साहिल कहते हैं कि महाराष्ट्र की पॉलिटिक्स को बीजेपी ने अपने कंधे पर रखने की कोशिश की है. वैसे महाराष्ट्र के हिस्सों में ओबीसी अलग-अलग तरह से वोट करते हैं. जैसे नागपुर में ओबीसी वोटबैंक को लेकर बीजेपी और कांग्रेस के बीच में हमेशा संघर्ष होता है. बीजेपी के पास ओबीसी का गोपीनाथ मुंडे जैसा बड़ा नेता था. महाराष्ट्र में माली, धनगर और बंजारे जिसे माधव समीकरण कहते हैं, बीजेपी हमेशा से इनका इस्तेमाल करके अपना पांव जमाए थी. एक्सिस माय इंडिया के 2019 के एग्जिट पोल्स के मुताबिक 60 से 65 फीसदी ओबीसी समाज का वोट बीजेपी के पाले में गया है. विधानसभा में भी उन्हें ओबीसी का अच्छा खासा सपोर्ट मिला है. इसीलिए, बीजेपी के लिए मराठा की बजाए ओबीसी वोटबैंक ज्यादा जरूरी है. इनका बेस जो है वो ओबीसी है.

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