‘समाजवादी’ और ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्द हटाने को लेकर मोदी सरकार ने संसद में क्या जवाब दिया? RSS कर रहा था हटाने की मांग!
संसद के मानसून सत्र के दौरान केंद्र सरकार ने साफ कर दिया है कि फिलहाल संविधान की प्रस्तावना से ‘समाजवादी’ और ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्द हटाने का कोई इरादा नहीं है.
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संसद के मानसून सत्र के दौरान केंद्र सरकार ने साफ कर दिया है कि फिलहाल संविधान की प्रस्तावना से ‘समाजवादी’ और ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्द हटाने का कोई इरादा नहीं है. गुरुवार को राज्यसभा में कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने इस बात की जानकारी दी.
सदन को यह भी बताया गया कि सरकार ने संविधान की प्रस्तावना से इन दो शब्दों को हटाने के लिए कोई भी कानूनी या संवैधानिक प्रक्रिया औपचारिक रूप से शुरू नहीं की है. एक लिखित उत्तर में, कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने कहा कि हालांकि कुछ सार्वजनिक या राजनीतिक हलकों में चर्चाएं या बहस हो सकती हैं, लेकिन इन शब्दों में संशोधन के संबंध में "सरकार द्वारा कोई औपचारिक निर्णय या प्रस्ताव की घोषणा नहीं की गई है".
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उन्होंने बताया कि इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने नवंबर 2024 में याचिकाएं खारिज कर दी थीं, जिसमें इन शब्दों को हटाने की मांग की गई थी. जिसमें अदालत ने स्पष्ट किया कि भारत के संदर्भ में "समाजवाद" एक कल्याणकारी राज्य का प्रतीक है और निजी क्षेत्र के विकास में बाधा नहीं डालता, जबकि "धर्मनिरपेक्षता" संविधान के मूल ढांचे का अभिन्न अंग है.
इमरजेंसी के दौरान हुआ था 42वां संशोधन
आपको बता दें, साल 1976 में आपातकाल के दौरान 42वें संविधान संशोधन के जरिए 'समाजवादी', 'धर्मनिरपेक्ष' और 'अखंडता' जैसे शब्द प्रस्तावना में जोड़े गए थे. उस समय देश में इंदिरा गांधी की सरकार थी और जून 1975 से मार्च 1977 तक आपातकाल लागू रहा. सरकार के मुताबिक, इन शब्दों का अर्थ भारत को कल्याणकारी और सभी धर्मों का सम्मान करने वाला राष्ट्र बनाना है.
आरएसएस ने की इनको हटाने की मांग
आपातकाल के 50 वर्ष पूरे होने के मौके पर RSS महासचिव दत्तात्रेय होसबाले ने इन शब्दों को प्रस्तावना से हटाने की मांग की थी. उनका कहना था कि ‘सेक्युलर’ और ‘सोशलिस्ट’ शब्द संविधान में शुरू से नहीं थे, इन्हें आपातकाल के दौरान जोड़ा गया.
वहीं, पिछले महीने उपराष्ट्रपति निवास पर आयोजित एक समारोह में पूर्व उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहा था कि प्रस्तावना किसी भी संविधान की आत्मा है और इसमें बदलाव नहीं किया जाना चाहिए था. उन्होंने इसे संविधान की मूल भावना के साथ विश्वासघात बताया. उनका मानना है कि भारत ही पहला देश है, जिसने संविधान की प्रस्तावना में बदलाव किया, जबकि विश्व के बाकी देशों में ऐसा नहीं हुआ. उन्होंने इन शब्दों को लेकर कहा था कि ये जोड़े गए शब्द नासूर हैं.
संविधान में इन शब्दों का मतलब क्या है?
- समाजवादी (Socialist): यह शब्द उस व्यवस्था को दर्शाता है जिसमें समाज में आर्थिक व सामाजिक समानता हो, संसाधनों का बेहतर और बराबर वितरण हो और कमजोर वर्गों के अधिकारों की रक्षा की जाती है.
- धर्मनिरपेक्ष (Secular): इसका आशय है कि राज्य किसी धर्म का पक्ष नहीं लेगा, सभी धर्मों का समान सम्मान करेगा और सरकार धर्म से ऊपर रहकर फैसले लेगी.