लोकसभा में केसी वेणुगोपाल और अमित शाह की तीखी बहस क्यों हुई? गरमा-गर्मी की वजह जानिए

ललित यादव

लोकसभा में बुधवार का दिन काफी हंगामेदार रहा. इस दौरान लोकसभा में केंद्रीय गृहमंत्री ने 3 विधेयकों को पेश किया. "130वां संविधान संशोधन विधेयक 2025'' पेश करने पर विपक्ष ने कड़ा विरोध किया.

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लोकसभा में बुधवार का दिन काफी हंगामेदार रहा. इस दौरान लोकसभा में केंद्रीय गृहमंत्री ने 3 विधेयकों को पेश किया. "130वां संविधान संशोधन विधेयक 2025'' पेश करने पर विपक्ष ने कड़ा विरोध किया. इस बीच अमित शाह और कांग्रेस नेता केसी वेणुगोपाल के बीच तीखी नोकझोंक देखने को मिली. 

130वां संविधान संशोधन विधेयक में प्रावधान है कि गंभीर आपराधिक मामलों में गिरफ्तारी और 30 दिन से अधिक हिरासत में रहने पर प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री या मंत्री को अपने पद से हटना होगा. विपक्ष इस बिल का कड़ा विरोध कर रहा है. लोकसभा में इस बिल को फाड़ा गया.

तीन विधेयक और विपक्ष का विरोध

अमित शाह ने लोकसभा में 3 बिल पेश किए. उन्होंने इन बिलों को विस्तृत चर्चा के लिए संसद की संयुक्त समिति (JPC) को भेजने का प्रस्ताव रखा, जिसे ध्वनिमत से मंजूरी मिल गई. इस समिति में लोकसभा के 21 और राज्यसभा के 10 सदस्य शामिल होंगे. यह समिति अगले संसद सत्र के पहले दिन अपनी रिपोर्ट सौंपेगी.

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1. संविधान (130वां संशोधन) विधेयक 2025,

2. संघ राज्य क्षेत्र शासन (संशोधन) विधेयक 2025

3. जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन (संशोधन) विधेयक, 2025

हालांकि, बिल पेश होते ही विपक्षी सांसदों ने जोरदार विरोध शुरू कर दिया. कुछ सांसद वेल में पहुंचकर नारेबाजी करने लगे और बिल की प्रतियां फाड़कर अमित शाह की ओर फेंक दीं. हंगामे की स्थिति को कंट्रोल करने के लिए मार्शलों को सुरक्षा घेरा बनाना पड़ा.

वेणुगोपाल-शाह की तीखी बहस क्यों हुई?

कांग्रेस सांसद केसी वेणुगोपाल ने बिलों को संघीय ढांचे के लिए खतरा बताते हुए कड़ा विरोध किया. इस दौरान उन्होंने अमित शाह पर निजी तंज कसते हुए 2010 के सोहराबुद्दीन शेख फर्जी एनकाउंटर मामले का जिक्र किया. उस समय अमित शाह गुजरात के गृहमंत्री थे और उनकी गिरफ्तारी हुई थी. वेणुगोपाल ने पूछा, "भाजपा नैतिकता की बात करती है, लेकिन क्या उस समय गृहमंत्री ने नैतिकता का पालन किया था?"

इसके जवाब में अमित शाह ने कहा, "मुझ पर फर्जी आरोप लगाए गए थे फिर भी, मैंने गिरफ्तारी से पहले ही नैतिकता के आधार पर इस्तीफा दे दिया था. जब तक कोर्ट ने मुझे निर्दोष साबित नहीं किया, तब तक मैंने कोई संवैधानिक पद स्वीकार नहीं किया." 

विपक्ष कर रहा विरोध

विपक्षी नेताओं ने इन विधेयकों को लोकतंत्र और संविधान के खिलाफ बताया. AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि ये बिल देश को "पुलिस स्टेट" की ओर ले जाएंगे.

कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी ने इन विधयकों का संविधान की मूल भावना पर हमला बताया. समाजवादी पार्टी के धर्मेंद्र यादव और आरएसपी के एनके प्रेमचंद्रन ने भी बिलों का विरोध किया. 

130वां संविधान संशोधन विधेयक क्या है?

अगर किसी प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, केंद्रीय या राज्य मंत्री पर कोई ऐसा गंभीर आरोप लगता है, जिसमें 5 साल या उससे अधिक की सजा हो सकती है, और वह 30 दिन तक जेल या हिरासत में रहता है तो उसे उस पद से 31वें दिन पद पर रहने के लिए अयोग्य मान लिया जाएगा.

अगर प्रधानमंत्री या मंत्री खुद इस्तीफा नहीं देता, तो 31वें दिन के बाद स्वत: ही उसका पद समाप्त मान लिया जाएगा. यह नियम प्रधानमंत्री, सभी केंद्रीय मंत्री, मुख्यमंत्री और राज्य मंत्री, दिल्ली के मुख्यमंत्री व मंत्री सभी पर लागू होता है.

यह संशोधन संविधान के अनुच्छेद 75 (केंद्रीय मंत्री), अनुच्छेद 164 (राज्य मंत्रिपरिषद), और अनुच्छेद 239AA (दिल्ली सरकार) में किया जा रहा है. अभी तक संविधान में ऐसा कोई स्पष्ट प्रावधान नहीं था, जिसकी वजह से पिछले वर्षों में कुछ नेता जेल में रहते हुए भी अपने पदों पर बने रहे.

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