राजस्थान के ट्रैक्टर-ट्रॉली का यूपी में कटा 10 लाख का चालान, RTO ने जांच को तो रह गए हैरान
उत्तर प्रदेश के औरैया जिले से एक बेहद चौंकाने वाला मामला सामने आया है, जहां एक ट्रैक्टर-ट्रॉली को रेलगाड़ी के पहिये लगाकर सड़कों पर दौड़ाया जा रहा था. जब क्षेत्रीय परिवहन अधिकारी (ARTO) सुदेश तिवारी ने इस ट्रैक्टर-ट्रॉली को देखा, तो उन्होंने इसे रुकवाकर जांच शुरू की.
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उत्तर प्रदेश के औरैया जिले से एक बेहद चौंकाने वाला मामला सामने आया है, जहां एक ट्रैक्टर-ट्रॉली को रेलगाड़ी के पहिये लगाकर सड़कों पर दौड़ाया जा रहा था. जब क्षेत्रीय परिवहन अधिकारी (ARTO) सुदेश तिवारी ने इस ट्रैक्टर-ट्रॉली को देखा, तो उन्होंने इसे रुकवाकर जांच शुरू की. जांच में कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आए, जिसके बाद इस वाहन पर 10 लाख 6 हजार रुपये का भारी चालान लगाया गया.
पूरी घटना नेशनल हाईवे-19 बुंदेलखंड एक्सप्रेसवे पर हुई. एआरटीओ सुदेश तिवारी किसी ऑफिशियल काम से जा रहे थे, तभी रास्ते में उनकी नजर एक ट्रैक्टर-ट्रॉली पर पड़ी. इसकी बनावट और आकार साधारण ट्रॉली से अलग थी, जिससे अधिकारी को संदेह हुआ. उन्होंने तुरंत वाहन को रुकवाकर उसके कागजात मांगे. जांच में पता चला कि ट्रैक्टर राजस्थान के नागौर जिले में कृषि कार्य के लिए रजिस्टर्ड था, लेकिन ट्रॉली का कोई पंजीकरण नहीं था.
जांच की तो सामने आया अनोखा मामला
जांच के दौरान, जब ट्रॉली को ध्यान से देखा गया, तो यह पाया गया कि इसमें दो बड़े टायरों के साथ-साथ दो रेलगाड़ी के पहिये भी लगे थे. यह ट्रॉली विशेष रूप से रेलवे पटरियों पर गिट्टी बिछाने के काम के लिए डिजाइन की गई थी. वाहन का ड्राइवर किसी भी प्रकार का वैध दस्तावेज प्रस्तुत नहीं कर सका.
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आगे की जांच में खुलासा हुआ कि यह ट्रैक्टर-ट्रॉली पिछले पांच वर्षों से उत्तर प्रदेश की सड़कों पर चल रही थी. यह एक रेलवे ठेकेदार के अधीन काम कर रही थी, जिसके बदले वाहन मालिक को हर महीने 85,000 रुपये का भुगतान किया जाता था. इस ट्रॉली का वजन 12 चक्का ट्रक के बराबर बताया गया, जो सामान्य ट्रॉली के मुकाबले काफी भारी था.
ARTO ने दी पूरी जानकारी
एआरटीओ सुदेश तिवारी ने बताया कि यह ट्रैक्टर राजस्थान में कृषि कार्य के लिए रजिस्टर्ड था, जिस पर टैक्स छूट थी. हालांकि, इसका उपयोग व्यावसायिक उद्देश्यों के लिए किया जा रहा था. उन्होंने यह भी कहा कि इस प्रकार के वाहन न तो किसी मान्यता प्राप्त निर्माता द्वारा बनाए जाते हैं और न ही सरकारी एजेंसियों द्वारा स्वीकृत होते हैं. इन्हें स्थानीय स्तर पर असुरक्षित तरीके से तैयार किया जाता है, जिससे सड़क पर चलने वाले अन्य लोगों के लिए यह गंभीर खतरा बनते हैं.