दादा नाथूराम मिर्धा की सियासी विरासत वाली ज्योति बिगाड़ेंगी हनुमान बेनीवाल का समीकरण?
Jyoti Mirdha can become a challenge for Hanuman Beniwal: नागौर (Nagaur news) से सांसद रह चुकीं कांग्रेस पार्टी की ज्योति मिर्धा (jyoti mirdha) ने BJP का हाथ थाम लिया है. इसके बाद से नागौर लोकसभा सीट पर अलग समीकरण की चर्चा शुरू हो गई है. प्रदेश में जाट राजनीति में अपना दम-खम रखने वाले कद्दावर […]
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Jyoti Mirdha can become a challenge for Hanuman Beniwal: नागौर (Nagaur news) से सांसद रह चुकीं कांग्रेस पार्टी की ज्योति मिर्धा (jyoti mirdha) ने BJP का हाथ थाम लिया है. इसके बाद से नागौर लोकसभा सीट पर अलग समीकरण की चर्चा शुरू हो गई है. प्रदेश में जाट राजनीति में अपना दम-खम रखने वाले कद्दावर नेता रहे नाथूराम मिर्धा (nathuram mirdha) की पोती डॉ. ज्योति मिर्धा दादा की सियासी विरासत पर चुनाव लड़ती आई हैं. पिछले चुनावों में ‘दादा की पोती हूं नागौर की ज्योति हूं’ जैसे नारों के बावजूद ज्योति नाथूराम मिर्धा की विरासत को बनाए रखने में कामयाब नहीं हो पाईं. यहां एनडीए उम्मीदवार और RLP प्रमुख हनुमान बेनीवाल (hanuman beniwal) ने बाजी मार ली.
एनडीए से हनुमान बेनीवाल के अलग होने के बाद बीजेपी उनका काट ढूंढ रही थी. ज्योति मिर्धा के बीजेपी ज्वाइन करने के बाद पार्टी को नागौर लोकसभा सीट पर बेनीवाल को फाइट देने का विकल्प मिल चुका है. कांग्रेस पार्टी से चुनाव हारने वाली ज्योति बीजेपी के बैनर तले नागौर का समीकरण बदल सकती हैं.
कौन हैं ज्योति मिर्धा?
ज्योति राजस्थान के कद्दावर जाट नेता नाथूराम मिर्धा की पोती हैं. ये राम प्रकाश मिर्धा और वीणा मिर्धा की बेटी हैं. इनका जन्म 26 जुलाई 1972 को नई दिल्ली में हुआ था. ज्योति ने एसएमएस मेडिकल कॉलेज से एमबीबीएस किया है. इनकी शादी नरेंद्र गहलोत से हुई है जो एक बिजनेसमैन हैं. सास कृष्णा गहलोत बीजेपी की महिला मोर्चा की राष्ट्रीय अध्यक्ष रह चुकी हैं. इनका एक बेटा है.
कद्दावर राजनैतिक परिवार से है ताल्लुक
ज्योति मिर्धा के दादा नाथूराम मिर्धा मारवाड़ में जाट समुदाय के ताकतवर नेता माने जाते रहे हैं. इनके बड़े भाई बलदेवराम मिर्धा आजादी से पहले जोधपुर रियासत के आईजी थे. बाद में किसान महासभा बनाकर किसानों के हितों में संघर्ष किया. आजादी के बाद 1951-53 में पहले चुनाव हुए तो किसान महासभा का कांग्रेस में विलय हो गया. हालांकि बलदेवराम मिर्धा ने खुद चुनाव लड़ने की बजाय छोटे भाई नाथूराम मिर्धा को चुनाव लड़वाया.नाथूराम मिर्धा ने ही राजस्थान का पहला बजट पेश किया था जो टैक्स फ्री बजट था.
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राजनीति में ऐसे बढ़ मिर्धा परिवार का दबदबा
नाथूराम ने बलदेवराम के बेटे रामनिवास को उपचुनाव लड़ाकर विधानसभा में पहुंचाया. चाचा और भतीजा दोनों कांग्रेस पार्टी से जाट राजनीति को आगे बढ़ा रहे थे. नाथूराम मिर्धा के निधन के बाद भैरोंसिंह शेखावत ने बेटे भानूप्रकाश मिर्धा को टिकट दिया और वे जीते भी. अब बीजेपी जाट बाहुल्य नागौर सीट पर ज्योति मिर्धा पर दांव खेलने की तैयारी में है. इस परिवार से इनके अलावा रामनिवास मिर्धा के बेटे हरेंद्र मिर्धा नागौर तथा मूंडवा से विधायक रह चुके हैं. हरेंद्र मिर्धा के बेटे रघुवेंद्र मिर्धा पीसीसी सदस्य हैं. ज्योति मिर्धा की बहन श्वेता मिर्धा की शादी हरियाणा के पूर्व सीमए और कांग्रेस नेता भूपेंद्र सिंह हुड्डा के बेटे दीपेंद्र सिंह हुड्डा से हुई है. दीपेंद्र हरियाणा के रोहतक से तीन बार सांसद रह चुके हैं.
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हनुमान बेनीवाल के लिए चुनौति क्यों?
नागौर जिले की सभी 10 विधानसभा सीटों पर इस बार RLP प्रमुख हनुमान बेनीवाल भाजपा के लिए चुनौती बन रहे थे. नागौर के सांसद हनुमान बेनीवाल और पूर्व सांसद ज्योति मिर्धा के बीच करीब एक दशक से वर्चस्व की लड़ाई चल रही है. 2009 में ज्योति ने नागौर लोकसभा सीट से चुनाव जीता था पर 2014 और 2019 में वो हार गईं. 2019 में बीजेपी से गठबंधन करने वाले हनुमान बेनीवाल ने बाजी मार ली. किसान आंदोलन के समय उन्होंने बीजेपी गठबंध (NDA) से किनारा कर लिया. इसके बाद से वे लगातार बीजेपी पर हमलावर रहे हैं. इधर बीजेपी बेनीवाल का काट ढूंढ रही थी जो ज्योति मिर्धा के रूप में मिल गया. अब बेनीवाल के लिए बीजेपी से गठबंधन नामुमकीन है.
खींवसर विधानसभा में भी मिलेगी चुनौती?
ज्योति मिर्धा के साथ ही रिटायर्ड आईपीएस सवाई सिंह भी कांग्रेस छोड़ बीजेपी में शामिल हो गए हैं. चर्चा है कि बेनीवाल के प्रभाव वाली सीट खींवसर में वो इन्हें विधानसभा प्रत्याशी के रूप में उतरवा सकती हैं. ऐसे में बेनीवाल के भाई नारायण बेनीवाल के मुश्किलें यहां बढ़ सकती हैं. गौरतलब है कि हनुमान बेनीवाल के सांसद बनने के बाद खींवसर विधानसभा सीट खाली हो गई थी जहां बेनीवाल ने भाई नारायण को उतारा और जिता भी दिया. चर्चा है कि बेनीवाल खुद खींवसर विधानसभा सीट से लड़ेंगे. ऐसे में ज्योति मिर्धा उनके लिए यहां भी चुनौती बन सकती हैं.
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