Explainer: टाटा ग्रुप में IPO की जंग, कौन मारेगा बाजी, जानें क्या है पूरा मामला
टाटा संस के IPO को लेकर टाटा ट्रस्ट और मिस्त्री परिवार के बीच बड़ा विवाद खड़ा हो गया है, जिसमें अब RBI और सरकार की भूमिका भी अहम हो गई है। यह मामला टाटा ग्रुप की पारदर्शिता, नियंत्रण और भविष्य की दिशा तय करने वाला बन सकता है।

देश का सबसे बड़ा और सबसे भरोसेमंद कारोबारी समूह टाटा ग्रुप आज एक बड़े विवाद के बीच खड़ा है. जिसकी झलक आम जनता को भले न दिखे, लेकिन इसके असर दूर तक जा सकते हैं. टाटा ग्रुप की मार्केट वैल्यू यानी बाजार में कुल कीमत 26 लाख करोड़ रुपये के पार है, लेकिन अब यही ग्रुप एक पारिवारिक और कारोबारी झगड़े का अखाड़ा बनता जा रहा है, जिसकी गूंज सरकार और रिजर्व बैंक तक पहुंच चुकी है.
इसी मुद्दे पर इंडिया टुडे ग्रुप के Tak चैनल्स के मैनेजिंग एडिटर मिलिंद खांडेकर ने खास बातचीत की है. उनकी अनुसार इस पूरे मामले की जड़ में है टाटा संस और उसका IPO यानी पब्लिक ऑफरिंग लाने का मुद्दा. यानी टाटा संस के शेयर आम जनता को बेचने की बात. मिस्री परिवार, जिसके पास टाटा संस में 18% हिस्सेदारी है, अब खुले तौर पर इसकी मांग कर रहा है. जबकि टाटा ट्रस्ट, जिसके पास 66% हिस्सेदारी है, इसके खिलाफ है.
टाटा ग्रुप की मालिकाना संरचना
बहुत से लोगों को यह जानकर हैरानी होती है कि टाटा ग्रुप, टाटा परिवार का निजी बिजनेस नहीं है, जैसा कि रिलायंस अंबानी परिवार या अडानी ग्रुप का है. टाटा ग्रुप की 29 कंपनियां जैसे कि टाटा स्टील, टाटा मोटर्स, टाटा पावर, टाटा कंज्यूमर आदि शेयर बाजार में लिस्टेड हैं और इन सबका प्रमोटर है टाटा संस.
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टाटा संस एक प्राइवेट कंपनी है, जिसके सबसे बड़े मालिक हैं टाटा ट्रस्ट. इन ट्रस्टों के पास 66% शेयर हैं और ये ट्रस्ट अस्पताल, स्कूल, कॉलेज, रिसर्च सेंटर जैसी सामाजिक संस्थाएं चलाने में पैसे खर्च करते हैं. रतन टाटा खुद भी इसी ट्रस्ट मॉडल के जरिए कंपनी का संचालन करते रहे हैं. टाटा परिवार के पास खुद के नाम पर सिर्फ 3% हिस्सेदारी है, जबकि मिस्री परिवार के पास 18% शेयर हैं.
झगड़ा कैसे शुरू हुआ?
सालों तक टाटा ग्रुप को पारिवारिक झगड़ों से बचाने वाला ट्रस्ट मॉडल अब खुद विवाद का केंद्र बन गया है. मामला तब बिगड़ा जब रतन टाटा के बाद चेयरमैन के तौर पर उनके सौतेले भाई नोएल टाटा को लाने की बात सामने आई.
टाटा ट्रस्ट के अंदर दो गुट बन गए. एक गुट नोएल टाटा, पूर्व IAS अफसर विजय सिंह और TVS ग्रुप के वेणु श्रीनिवासन के साथ है. वहीं, दूसरा गुट ट्रस्ट के अंदर पारदर्शिता की मांग कर रहा है और टाटा संस के कामकाज में ज्यादा जानकारी चाहता है. इस गुट में मेहिल मिस्री भी हैं, जिनका रिश्ता मिस्री परिवार से है.
यहीं से बात IPO तक पहुंच गई. मेहिल मिस्री समेत कुछ ट्रस्टी यह संकेत दे रहे हैं कि टाटा संस को पब्लिक कर देना चाहिए ताकि सब कुछ पारदर्शी तरीके से हो.
मिस्री परिवार की मजबूरी
मिस्त्री परिवार टाटा संस में अपनी हिस्सेदारी बेचना चाहता है ताकि SP ग्रुप का भारी कर्ज चुकाया जा सके. टाटा संस की वैल्यू लगभग 10 लाख करोड़ रुपये आंकी गई है. ऐसे में 18% हिस्सेदारी की कीमत डेढ़ लाख करोड़ रुपये से अधिक बैठती है.
लेकिन परेशानी यह है कि टाटा संस एक प्राइवेट कंपनी है. इसका शेयर आम लोगों को नहीं बेचा जा सकता. यानी मिस्त्री परिवार अपने शेयर बेचकर पैसा तभी निकाल सकता है जब कंपनी पब्लिक हो जाए और IPO लाया जाए.
टाटा ट्रस्ट को डर है कि अगर IPO लाया गया तो बाहरी निवेशकों का दखल बढ़ेगा और कंपनी की मूल सोच – समाजसेवा के लिए मुनाफे का इस्तेमाल बदल सकती है.
अब रिजर्व बैंक की भूमिका
इस पूरे मामले में अब रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) भी एक अहम किरदार बन चुका है. साल 2022 में RBI ने टाटा संस को NBFC यानी नॉन-बैंकिंग फाइनेंस कंपनी घोषित किया. NBFC होने के चलते RBI ने टाटा संस को 30 सितंबर 2025 तक शेयर बाजार में लिस्ट होने यानी IPO लाने का निर्देश दिया.
टाटा संस ने इस आदेश को चुनौती देते हुए RBI से कहा कि वह अब NBFC नहीं रहना चाहता, लेकिन RBI ने अभी तक कोई अंतिम फैसला नहीं सुनाया है.
अगर RBI अपने पुराने आदेश पर कायम रहता है तो टाटा संस को IPO लाना ही पड़ेगा और अगर टाटा संस को NBFC की श्रेणी से हटा दिया जाता है तो IPO का दबाव टल जाएगा.
सरकार की भूमिका भी अहम
सरकार अब इस मामले को हल करने की कोशिश कर रही है, क्योंकि मामला सिर्फ दो परिवारों या दो गुटों का नहीं, बल्कि देश की सबसे बड़ी और सबसे भरोसेमंद कंपनी का है. सरकार नहीं चाहती कि यह झगड़ा इतना बढ़े कि टाटा ग्रुप की साख पर असर पड़े या बाज़ार में अनिश्चितता पैदा हो.
आगे क्या हो सकता है?
फिलहाल इस मुद्दे पर एक टकराव की स्थिति बनी हुई है. मिस्री परिवार अपने शेयरों को नकदी में बदलना चाहता है. टाटा ट्रस्ट और टाटा परिवार IPO का विरोध कर रहे हैं और रिजर्व बैंक का फैसला पूरे मामले को एक नई दिशा दे सकता है.
अगर टाटा संस का IPO आता है, तो यह भारतीय कॉरपोरेट इतिहास की सबसे बड़ी घटनाओं में से एक होगी. लेकिन साथ ही यह जोखिम भी है कि ट्रस्ट मॉडल के टूटने से टाटा ग्रुप की मूल भावना को नुकसान पहुंच सकता है. इस बीच, आम निवेशक और देश की निगाहें टिकी हैं RBI और सरकार के अगले कदम पर.
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