लाखों डॉलर की नौकरी छोड़ इस इंजीनियर ने बनाई अपनी कंपनी, आज दे रहा है गूगल-माइक्रोसॉफ्ट को टक्कर

श्रीधर वेंबू ने बिना किसी बाहरी फंडिंग के जोहो को गांव से शुरू कर ग्लोबल टेक कंपनी बना दिया. आज जोहो भारत की डिजिटल आत्मनिर्भरता का प्रतीक बन चुका है.

NewsTak
social share
google news

हमारे देश में जब भी टेक्नोलॉजी और आत्मनिर्भरता की बात आती है तो एक नाम सबसे पहले लिया जाता है और वो है जोहो कॉरपोरेशन. यह वही कंपनी है जो अब गूगल, माइक्रोसॉफ्ट और व्हाट्सऐप जैसी विदेशी दिग्गज कंपनियों को सीधी टक्कर दे रही है, लेकिन इसकी शुरुआत बहुत साधारण थी. 

यह कहानी है श्रीधर वेंबू की, जिन्होंने अमेरिका की लाखों डॉलर की नौकरी छोड़कर चेन्नई के पास एक छोटे से कमरे से एक बड़ा सपना देखा भारत को टेक्नोलॉजी में आत्मनिर्भर बनाना. श्रीधर वेंबू का जन्म तमिलनाडु के एक सामान्य परिवार में हुआ था. 

वह पढ़ाई में बचपन से ही बेहद गंभीर थे. उन्होंने आईआईटी मद्रास से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की और फिर अमेरिका के प्रिंस्टन यूनिवर्सिटी से एमएस और पीएचडी पूरी की. पढ़ाई के बाद उन्हें क्वालकॉम जैसी बड़ी टेक कंपनी में नौकरी मिल गई, लेकिन उनके मन में कुछ और ही चल रहा था. 

यह भी पढ़ें...

उन्होंने अमेरिका की चकाचौंध और H1B वीज़ा की स्थिरता को छोड़कर भारत लौटने का फैसला किया. उनका मानना था कि भारत में अपार संभावनाएं हैं, और अगर कोई सच्चे मन से मेहनत करे तो यहां भी वैश्विक स्तर की टेक कंपनी खड़ी की जा सकती है.

1996 में रखी नींव

वापस आकर 1996 में उन्होंने अपने भाई और एक दोस्त के साथ मिलकर एडवेंटनेट नाम की कंपनी की नींव रखी. यह कंपनी चेन्नई के बाहर तांबरम नामक इलाके में एक छोटे से कमरे से शुरू हुई थी. उनके पास ना कोई वेंचर कैपिटल था, ना ही कोई बड़ा फंड. उनके माता-पिता की एक सलाह उन्होंने हमेशा याद रखी “कभी उधार मत लेना.” इसी सोच के साथ उन्होंने बूटस्ट्रैप मॉडल को अपनाया और अपने दम पर कंपनी खड़ी की. 

शुरुआत में उन्होंने नेटवर्क मैनेजमेंट सॉफ्टवेयर पर काम किया. साल 1998 में एक जापानी कंपनी ने उनसे पूछा कि क्या वे बड़ी कंपनियों जैसी सेवाएं कम दाम में दे सकते हैं. श्रीधर ने हां कहा और यहीं से उन्हें पहला बड़ा ऑर्डर मिला. कंपनी का रेवेन्यू एक मिलियन डॉलर तक पहुंचा और फिर तो पीछे मुड़कर नहीं देखा. हालांकि साल 2001 में जब डॉट कॉम क्रैश हुआ तो उनके सामने बड़ी चुनौती खड़ी हो गई. क्लाइंट्स गायब हो गए और फोन बजना बंद हो गया, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी. 

उन्होंने अपनी टीम से कहा कि अब हमें कुछ नया बनाना है. महीनों की मेहनत के बाद बना ManageEngine,एक ऐसा सॉफ्टवेयर जिसने दुनिया की सबसे बड़ी कंपनियों को उनकी तरफ खींचा. इसके बाद कंपनी ने तेजी से प्रगति की. साल 2005 में Zoho CRM लॉन्च हुआ और 2009 में कंपनी का नाम बदलकर Zoho Corporation रख दिया गया. इसके साथ ही यह भारत की पहली ग्लोबल SaaS कंपनी बन गई, जिसने पूरी दुनिया में भारत की टेक्नोलॉजी पहचान को स्थापित किया. 

गांव में करती है काम

जोहो की सबसे खास बात यह है कि यह दिखावे और शहरी तामझाम से दूर गांवों में काम करती है. जहां बाकी कंपनियां ग्लैमरस ऑफिस और चमचमाते बिल्डिंग्स पर जोर देती हैं, वहीं जोहो ने पेड़ों के बीच और पहाड़ियों के पास अपना कैंपस बनाया है. यहां ना तो कोई 9 से 5 की भागदौड़ है और ना ही कोई बेवजह की चमक-धमक. जो लोग यहां काम करने आते हैं, वो लंबे समय तक जुड़े रहते हैं और अपने काम में पूरी निष्ठा के साथ लगे रहते हैं.

2025 में जोहो ने एक और बड़ा कदम उठाया और आरटाई नाम का ऐप लॉन्च किया. तमिल में आरटाई का मतलब होता है 'हल्की-फुल्की बातचीत'. यह ऐप पूरी तरह से भारतीय सर्वरों पर चलता है और डाटा प्राइवेसी को सर्वोच्च प्राथमिकता देता है. आरटाई ऐप में टेक्स्ट मैसेजिंग, वॉइस और वीडियो कॉल, ग्रुप चैट, स्टोरीज, चैनल और फाइल शेयरिंग जैसे तमाम फीचर्स हैं. यूजर्स इसमें अपने व्हाट्सऐप चैट्स को भी इम्पोर्ट कर सकते हैं. सरकार से समर्थन मिलने के बाद इस ऐप को जबरदस्त रफ्तार मिली. पहले जहां रोजाना 3,000 लोग साइनअप करते थे, वहीं अब यह संख्या 3.5 लाख के पार जा चुकी है.

50 से ज्यादा प्रोडक्ट

जोहो के पास आज 50 से ज्यादा प्रोडक्ट्स हैं. जैसे गूगल के पास Gmail है, वैसे ही जोहो के पास Zoho Mail है. Google Docs की तरह Zoho Writer, Excel की तरह Zoho Sheet, PowerPoint की तरह Zoho Show और यहां तक कि Zoho Vault पासवर्ड मैनेजर भी मौजूद है. ये सभी टूल्स एक ही प्लेटफॉर्म पर मिलते हैं और बेहद सस्ते दर पर उपलब्ध हैं महज 99 रुपये प्रति यूजर प्रति महीने. इसमें कोई विज्ञापन नहीं होता, ना ही किसी यूज़र का डाटा बेचा जाता है.

जोहो कंपनी केवल सॉफ्टवेयर ही नहीं बना रहा, बल्कि शिक्षा के क्षेत्र में भी बड़ी भूमिका निभा रहा है. Zoho School of Learning में 17 से 20 साल के युवाओं को मुफ्त में ट्रेनिंग दी जाती है और 10,000 रुपये की स्कॉलरशिप भी दी जाती है. यहां डिग्री जरूरी नहीं होती, बस सीखने का जज़्बा होना चाहिए. एक साल क्लासरूम और एक साल इंटर्नशिप के बाद उन्हें नौकरी भी दी जाती है. जोहो के लगभग 15% कर्मचारी इसी स्कूल से आते हैं.

आज जोहो के पास 18,000 से ज्यादा कर्मचारी हैं, 130 मिलियन से अधिक यूज़र हैं और कंपनी का वार्षिक रेवेन्यू 1 बिलियन डॉलर से भी ज्यादा है. श्रीधर वेंबू की नेटवर्थ करीब 5.5 बिलियन डॉलर है और वह भारत के टॉप अमीरों में गिने जाते हैं. लेकिन इसके बावजूद उनका सपना अभी भी जमीनी है. गांवों में टेक्नोलॉजी लाना और भारत को डिजिटल रूप से आत्मनिर्भर बनाना.

जोहो की सफलता इस बात का उदाहरण है कि बिना वेंचर कैपिटल, बिना चमक-धमक, सिर्फ आत्मविश्वास और मेहनत से भी ग्लोबल कंपनी खड़ी की जा सकती है. यह सिर्फ एक कंपनी की नहीं, भारत की जीत है.

ये भी पढ़ें: Maruti की Fronx, Jimny, Vitara पर मिल रही है लाखों की छूट, दिवाली पर सस्ते में खरीदने का अच्छा मौका

    follow on google news