पति को 'पालतू चूहा' कहना बना तलाक की वजह, हाईकोर्ट ने माना मानसिक क्रूरता

पत्नी द्वारा पति को 'पालतू चूहा' कहने और माता-पिता से अलग होने का दबाव डालने को छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने मानसिक क्रूरता माना. कोर्ट ने परिवार न्यायालय के तलाक आदेश को सही ठहराते हुए पत्नी को 5 लाख रुपये स्थायी भरण-पोषण देने का निर्देश दिया.

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छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने एक तलाक मामले में पति को 'पालतू चूहा' कहने को गंभीर मानसिक क्रूरता माना है और इस आधार पर फैमली कोर्ट के तलाक के फैसले को बरकरार रखा है. इस मामले में कोर्ट ने पति-पत्नी के बीच हुए विवादों और व्यवहार को संयुक्त परिवार व्यवस्था के नजरिए से समझते हुए पत्नी के व्यवहार को तलाक का कारण मान लिया. 

क्या है मामला 

दरअसल यह विवाद साल 2009 में हुई शादी से जुड़ा है, जिसमें दंपती का एर बेटा भी है. पति का आरोप था कि पत्नी ने 2010 में घर छोड़ दिया और लंबे समय तक वापस नहीं आई. केवल 2011 में थोड़े समय के लिए परिवार से मिलना हुआ. पति ने 2016 में परिवार न्यायालय में तलाक के लिए याचिका दायर की, जिसमें पत्नी द्वारा मानसिक क्रूरता और परित्याग के आरोप लगाए गए. 

पति ने कोर्ट में एक संदेश भी प्रस्तुत किया, जिसमें पत्नी ने पति से कहा था, "अगर तुम अपने माता-पिता को छोड़कर मेरे साथ रहोगे, तो जवाब दो, नहीं तो पूछना बंद करो." इस कथन को अदालत ने पति के मानसिक उत्पीड़न का प्रमाण माना.

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वहीं पत्नी ने आरोपों से इनकार करते हुए कहा कि पति द्वारा उसे भावनात्मक और आर्थिक रूप से उपेक्षित किया गया है. उसने पति पर दुर्व्यवहार और परिवारिक जिम्मेदारियों में अनदेखी का आरोप लगाया.

2019 में शादी कर दी गई थी निरस्त

रायपुर फैमली कोर्ट ने 2019 में दंपती की शादी निरस्त कर दी थी, जिसके खिलाफ पत्नी ने हाई कोर्ट में अपील की. न्यायमूर्ति रजनी दुबे और न्यायमूर्ति अमितेंद्र किशोर प्रसाद की खंडपीठ ने सुनवाई के बाद अपील खारिज कर दी और कहा कि पत्नी द्वारा पति को 'पालतू चूहा' कहना तथा अन्य अपमानजनक व्यवहार से पति की मानसिक पीड़ा हुई है, जो पारिवारिक और सामाजिक मूल्यों के खिलाफ है. कोर्ट ने इस व्यवहार को मामूली नहीं माना बल्कि इसे गंभीर मानसिक क्रूरता के दायरे में रखा.

साथ ही कोर्ट ने पति को निर्देश दिया कि वह पत्नी को स्थायी भरण-पोषण के रूप में पांच लाख रुपये का भुगतान करे, जो मासिक भरण-पोषण के अतिरिक्त होगा. इस राशि का निर्धारण पत्नी की नौकरी, बच्चे की परवरिश और पति की आय को ध्यान में रखते हुए किया गया.

यह फैसला परिवार और विवाह संबंधों में मानसिक क्रूरता की परिभाषा को स्पष्ट करता है और यह बताता है कि अपमानजनक शब्दावली और परिवार के प्रति दबाव डालना तलाक का गंभीर आधार बन सकता है. छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट का यह फैसला पारिवारिक मूल्यों की रक्षा और वैवाहिक जीवन में सम्मान बनाए रखने के लिए एक महत्वपूर्ण मिसाल माना जा रहा है.

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