उमरिया की 83 साल की चित्रकार जोधाईया बाई को मिला पद्मश्री, बैगिन चित्रकारी को दुनिया तक पहुंचाया
MP NEWS: मध्यप्रदेश के उमरिया जिले की 83 वर्षीय जोधाईया बाई को राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू ने गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर पद्मश्री पुरस्कार के लिए चयनित किया. जोधाईया बाई बैगा जनजाति से हैं और उन्होंने बैगिन चित्रकारी को दुनिया तक पहुंचाया और प्रसिद्ध कराया. उनके बनाए चित्रों की प्रदर्शनी फ्रांस, अमेरिका, इंग्लैंड में लग […]
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MP NEWS: मध्यप्रदेश के उमरिया जिले की 83 वर्षीय जोधाईया बाई को राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू ने गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर पद्मश्री पुरस्कार के लिए चयनित किया. जोधाईया बाई बैगा जनजाति से हैं और उन्होंने बैगिन चित्रकारी को दुनिया तक पहुंचाया और प्रसिद्ध कराया. उनके बनाए चित्रों की प्रदर्शनी फ्रांस, अमेरिका, इंग्लैंड में लग चुकी है. उन्हें राष्ट्रीय मातृ शक्ति पुरस्कार भी पूर्व में मिल चुका है.वे बड़ादेव के बघासुर के चित्रों को आधुनिक रंगों में उकरने के लिए देशभर में मशहूर हैं.
उमरिया जिले के लोढ़ा गांव की रहने वाली आदिवासी महिला जोधाईया बाई मज़दूरी करके जीवन यापन करती थी. उमरिया में रहने वाले कला स्नातक स्व.आशीष स्वामी की प्रेरणा से 60 वर्ष की उम्र में जोधाईया बाई ने हाथों में ब्रश थामकर कागज़ में तस्वीरें उकेरना शुरू किया. आदिवासी चित्रकला में गहरी समझ रखने वाले आशीष स्वामी ने जोधाईया की प्रतिभा को पहचान उन्हें ट्राइबल पेंटिंग्स की ट्रेनिंग दी. देखते ही देखते जोधाईया बाई आदिवासी चित्रकला में अपना मुकाम बना लिया.जोधाईया बाई के बनाई पेंटिग्स की अमेरिका-यूरोप के कई देशों में प्रदर्शनी लग चुकी है.
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पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद भी कर चुके हैं सम्मानित
इसके पूर्व भी एक बार अंतर्राष्ट्रीय ट्राइबल चित्रकार जोधईया बाई बैगा का नाम पद्मश्री सम्मान के लिए भेजा जा चुका था. लेकिन किन्हीं कारणवश उनका चयन नहीं हो पाया था. लेकिन बाद में उन्हें राष्ट्रीय स्तर का पुरस्कार नारी सम्मान से नवाजा गया था. उन्हें दिल्ली स्थित राष्ट्रपति भवन में तत्कालीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के द्वारा नारी शक्ति सम्मान से सम्मानित किया गया था. लेकिन उनकी मेहनत और अपने चित्रकारी के दम पर उन्होंने वह मुकाम हासिल ही कर लिया जिसकी वह असल हकदार रही है.
मप्र की इन हस्तियों को भी मिला है पद्मश्री
झाबुआ की रातीतलाई क्षेत्र की रहने वाले कलाकार रमेश परमार और शांति परमार को संयुक्त रूप् से पद्मश्री पुरस्कर दिया गया है. दोनों ही आदिवासी गुड़िया बनाने के लिए प्रसिद्ध हैं. वहीं जबलपुर के डॉक्टर मुनीश्वर चंद्र डाबर को भी पद्मश्री पुरस्कार के लिए चयनित किया है. डॉ. मुनीश्वर का जन्म अविभाजित भारत के पाकिस्तान वाले हिस्से में 1946 को हुआ था और उनका परिवार आजादी के बाद भारत आ गया था. वे जबलपुर में 20 रुपए में इलाज करने के लिए प्रसिद्ध हैं और उन्होंने अपनी प्रेक्टिस मात्र 2 रुपए से शुरू की थी. डॉ. मुनीश्वर ने भारतीय सेना में भी लंबे समय तक सेवा की है.