Rewa Lok Sabha Seat: आसान नहीं है BJP की राह, रीवा में नीलम दे रहीं जनार्दन को कड़ी टक्कर, क्या बचा पाएंगे सीट?
विंध्य की रीवा लोकसभा सीट पर मुकाबला काफी दिलचस्प दिखाई दे रहा है. राजनीतिक जानकार बताते हैं कि अभी कुछ समय पहले तक इन दोनों सीटों पर एकतरफा चुनाव लग रहा था, लेकिन अब यहां कांटे की टक्कर देखने को मिल रही है.
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Lok Sabha Elections 2024: मध्य प्रदेश में पहले चरण की 6 सीटों पर हुए मतदान के बाद अब कांग्रेस और बीजेपी समेत तमाम राजनीतिक दलों का चुनाव अभियान अब दूसरे फेज में प्रवेश कर गया है. दूसरे चरण में 7 सीटों खजुराहो, दमोह, टीकमगढ़, होशंगाबाद, रीवा और सतना में 26 अप्रैल को मतदान होना है. राजनीतिक जानकार बता रहें हैं कि इस बार बीजेपी की विंध्य में हालत पतली नजर आ रही है. यही कारण है कि बीजेपी का पूरा फोकस विंध्य क्षेत्र की सतना और रीवा सीटों पर है.
विंध्य की रीवा लोकसभा सीट पर मुकाबला काफी दिलचस्प दिखाई दे रहा है. राजनीतिक जानकार बताते हैं कि अभी कुछ समय पहले तक इन दोनों सीटों पर एकतरफा चुनाव लग रहा था, लेकिन अब यहां कांटे की टक्कर देखने को मिल रही है. ऐसा कहा जा रहा है कि यहां मुकाबला 50-50 का है, अंतिम समय में कोई भी यहां से बाजी मार सकता है. आइए जानते हैं विंध्य की रीवा सीट के सियासी समीकरण...
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रीवा लोकसभा सीट का चुनावी गणित क्या कहता है?
रीवा लोकसभा सीट से कांग्रेस ने विधायक अभय मिश्रा की पत्नी और पूर्व विधायक नीलम मिश्रा को अपना प्रत्याशी बनाया है. जिनका मुकाबला बीजेपी के जर्नादन मिश्रा है. यहां कांग्रेस के टिकट डिसाइड होने के पहले तक बीजेपी का पलड़ा भारी नजर आ रहा था, लेकिन जैसे ही कांग्रेस प्रत्याशी का ऐलान हुआ तभी से हर रोज यहां के समीकरण बदलते नजर आ रहे हैं. अब मामला ऐसा है, कि कांग्रेस की नीलम मिश्रा बीजेपी के जनार्दन मिश्रा को कड़ी टक्कर देती नजर आ रही हैं.
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रीवा में 8 विधानसभा सीटें, 7 पर बीजेपी का कब्जा
रीवा लोकसभा सीट के अंतर्गत 8 विधानसभा सीटें आती हैं. इनमें रीवा, गुढ़, सेमरिया, सिरमौर, मनगवां, त्योंथर, मऊगंज और देवतालाब समेत आठ विधानसभा हैं. जिनमें से 7 सीटों पर बीजेपी का कब्जा तो वहीं एक पर कांग्रेस प्रत्याशी के पति अभय मिश्रा विधायक हैं. इस क्षेत्र से ही मध्य प्रदेश डिप्टी सीएम राजेंद्र शुक्ल भी आते हैं, वाबजूद इसके यहां पर बीजेपी की राह आसान नजर नहीं आ रही है. यही कारण है कि सीएम मोहन यादव से लेकर पार्टी अध्यक्ष जेपी नडडा और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह भी जनसभा को संबोधित कर चुके हैं.
राजनीतिक पंडितों की माने तो सर्वे में इस सीट पर बीजेपी को मन मुताबिक फीडबैक नहीं मिला है, यही कारण है कि पूरी तागत झोंकती नजर आ रही है. पिछले दिनों लोकगायिका नेहा सिंह राठौर के एक गाने ने बीजेपी ने के लिए बड़ी मुसीबतें सामने खड़ी कर दी हैं.
बसपा को रीवा ने दिया था पहला सांसद
साल 1991 में रीवा लोकसभा सीट ने बसपा को भीमसिंह पटेल के रूप में पहला सांसद दिया था. रीवा लोकसभा क्षेत्र में बसपा के संस्थापक स्व. कांशीराम की सक्रियता 1989 में तेज हो गई थी, साल 1991 में हुए लोकसभा चुनाव में बसपा ने भीमसेन पटेल को रीवा से टिकट दिया और वे चुनाव जीत गए. बाद में वर्ष 1996 एवं 2009 के चुनाव में भी बसपा प्रत्याशी की जीत हुई थी.
लगातार तीसरी बार चुनाव जीत पाएंगे जर्नादन?
जनार्दन मिश्रा 2014 में मोदी लहर के दौरान वे पहली बार रीवा लोकसभा से सांसद निर्वाचित हुए थे. साल 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने उन्हें दोबारा चुनाव मैदान में उतारा था. जहां उन्होंने कांग्रेस के प्रत्याशी रहे सिद्धार्थ तिवारी राज को हराकर कर दोबारा सांसद निर्वाचित हुए थे. बीजेपी ने तीसरी बार मिश्रा को मैदान में उतारा है, लेकिन इस बार मिश्रा की मुसीबत कम नहीं है.
कैसा रहा था 2019 का चुनाव?
साल 2019 में हुए लोकसभा चुनाव में यहां बीजेपी के जनार्दन मिश्रा ने कांग्रेस के सिद्धार्थ तिवारी को हरा दिया था. (सिद्धार्थ ने विधानसभा चुनाव के समय कांग्रेस छोड़ कर bjp का दामन थाम लिया था. वे अभी त्योंथर सीट से विधायक हैं) इस चुनाव में मिश्रा ने 583769 यानी 57.61 फीसदी वोट हासिल किया था. जबकि, उनके मुकाबले सिद्धार्थ तिवारी को महज 270961 यानी 26.74 फीसदी वोट मिले.
कैसा है रीवा का चुनावी इतिहास?
रीवा लोकसभा के चुनावी इतिहास की बात करें तो यहां कांग्रेस 1967 के बाद से ही काफी कमजोर हैं. यानी 1962 में हुए चुनाव के बाद यहां से कांग्रेस को कभी भी लगातार 2 जीत नहीं मिली है. पिछले 40 साल में कांग्रेस यहां से केवल एक बार ही जीत हासिल कर पाई है. वहीं बीएसपी ने यहां से 3 चुनाव जीते हैं.
कुल मतदाता -27,82,375
पुरुष -14,49,516
महिला -13,32,834
थर्ड जेंडर -25
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