नदी में बहकर आई थी मूर्ति, राजा को स्वप्न आया तो बना दिया मंदिर, जानिए प्राचीन शनिदेव मंदिर की कहानी

पंकज शर्मा

Shani Jaynti: शनि देव की जयंती के मौके पर आज हम आपको मध्य प्रदेश के एक खास शनि मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं. इस प्राचीन मंदिर का इतिहास बड़ा ही रोचक है. मान्यता है कि शनि जयंती के दिन इस मंदिर हमें दर्शन और पूजा आदि करने से शनि दोष से मुक्ति […]

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Shani Jaynti: शनि देव की जयंती के मौके पर आज हम आपको मध्य प्रदेश के एक खास शनि मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं. इस प्राचीन मंदिर का इतिहास बड़ा ही रोचक है. मान्यता है कि शनि जयंती के दिन इस मंदिर हमें दर्शन और पूजा आदि करने से शनि दोष से मुक्ति मिलती है. मंदिर पर श्रृद्धालु कई तरह की मन्नतें लेकर आते हैं. लोगों का विश्वास है कि शनि महाराज उनकी अर्जी को सुनते हैं. मध्य प्रदेश और राजस्थान के श्रद्धालुओं की इस मंदिर में गहरी आस्था है.

शनि देव की जयंती के मौके पर राजगढ़ जिले में श्रद्धालुओं का तांता लग गया है. राजगढ़ के खिलचीपुर स्थित नाहरदा मंदिर में शनि देव का प्राकट्य उत्सव मनाया जा रहा है. दूर-दूर से भक्तगण शनि जयंती को हजारों की संख्या मे दर्शन करने आ रहे हैं. मंदिर के आसपास मेले जैसा दृश्य दिखाई देता है. नाहरदा मंदिर की मान्यता जितनी खास है उतना ही अनूठा इसका इतिहास है. बताया जाता है कि इस मंदिर की स्थापना 100 साल से भी पहले की गई थी.

मंदिर का प्राचीन इतिहास
वर्तमान समय में खिलचीपुर के शनि मंदिर में श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है, लेकिन ये मंदिर आज से नहीं बल्कि सदियों से प्रसिद्ध है. खिलचीपुर को प्राचीन समय में खेजड़पुर के नाम से जाना जाता था. बताया जाता है कि 100 साल पहले नदी के साथ शनिदेव की मूर्ति बहकर आई थी, जिसका स्वप्न राजा को आया था, इसके बाद मंदिर शनिदेव की मूर्ति निकलवाकर उसकी स्थापना करवाई गई. इसके बाद मंदिर का निर्माण खिलचीपुर महाराज दुर्जनसाल सिंह जी ने करवाया था. रियासत काल में शनिदेव के साथ नवगृह देवों के मंदिर का निर्माण करवाया गया था.

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शनि दोष निवारक
मान्यता है कि इस मंदिर के दर्शन करने से शनि का दोष शांत हो जाता है. शनिवार के दिन सुर्योदय के पूर्व या सूर्यास्त के बाद पीपल के वृक्ष पर गुड़ मिश्रित जल चढ़ाकर सरसों या तिल या दीपक जलाकर अगरबत्ती लगाकर कई लोग शनि से मुक्ति पाने के लिए इस मंदिर में आते हैं. श्रद्धालु यहां शनि चालीसा और मंत्र का पाठ करते हैं. शनिदेव के दर्शन करने के पहले मंदिर में स्थित बजरंगबली के दर्शन करना अनिवार्य होता है. तभी शनिदेव के दर्शन का फल प्राप्त होता है.

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