Explainer: टैरिफ के घाव पर H1B का नमक! अमेरिका की नई पॉलिसी से भारतीय टेक्नोलॉजी सेक्टर को बड़ा झटका
H1B वीजा भारतीय इंजीनियरों के लिए अमेरिका में काम करने और बसने का महत्वपूर्ण रास्ता है, लेकिन ट्रंप प्रशासन ने इसकी फीस बढ़ाकर इसे काफी महंगा कर दिया है. इससे भारतीय IT पेशेवरों और कंपनियों को बड़ा नुकसान हो सकता है.
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भारत और अमेरिका के रिश्ते के बीच पिछले कुछ सालों में कई उतार-चढ़ाव देखने को मिले हैं, लेकिन बावजूद इसके ऐसा लग रहा था कि दोनों देशों के बीच व्यापारिक और तकनीकी सहयोग नई ऊंचाइयों को छू रहा है. मगर अचानक से अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक ऐसा कदम उठाया है जिसने न केवल भारत के तकनीकी पेशेवरों के लिए नए अवसरों को खतरे में डाल दिया है, बल्कि भारतीय IT कंपनियों को भी गंभीर चुनौती दे दी है. H1B वीजा की फीस में भारी वृद्धि ने भारत के लिए अमेरिका के दरवाजे बंद होने का डर बढ़ा दिया है.
इंडिया टुडे ग्रुप के तक चैनल्स के मैनेजिंग एडिटर मिलिंद खांडेकर ने अपने साप्ताहिक सीरीज 'हिसाब-किताब' में इस हफ्ते इस मुद्दे पर विस्तार से चर्चा की है. उनका कहना है कि यह कदम अमेरिकी व्यापार और रोजगार नीतियों के बढ़ते संरक्षणवाद का हिस्सा है, जो वैश्विक स्तर पर तकनीकी प्रवासन पर असर डाल सकता है.
क्या है H1B वीजा
H1B वीजा अमेरिका सरकार द्वारा उन विदेशी कर्मचारियों को दिया जाता है जो टेक्नोलॉजी, साइंस, मेडिकल जैसे खास क्षेत्रों में काम करते हैं. खास बात ये है कि बहुत सारे भारतीय इंजीनियरों के लिए यह वीजा अमेरिका में काम करने और बसने का पहला बड़ा मौका होता है.
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हर साल कुल मिलाकर लगभग 85 हजार H1B वीजा दिए जाते हैं, जिनमें से लगभग आधे से ज़्यादा भारतीय होते हैं. यह वीजा तीन साल के लिए मिलता है और अगर अच्छा काम करते हैं तो इसे बढ़ाया भी जा सकता है. बाद में इस वीजा की मदद से लोग अमेरिका का ग्रीन कार्ड भी ले सकते हैं, यानी वहां स्थायी तौर पर रहने और काम करने का अधिकार.
लेकिन अब ट्रंप प्रशासन ने इस वीजा की फीस को करीब एक लाख डॉलर (लगभग 88 लाख रुपये) कर दिया है, जबकि इससे पहले यह फीस मात्र 4,000 से 7,000 डॉलर के बीच थी. यानी कंपनियों को अब हर एक H1B वीज़ा के लिए इतना खर्च करना होगा जितना एक भारतीय कर्मचारी की पूरी सालाना सैलरी होती है.
सस्ते विदेशी कर्मचारियों से करवा रही है काम
ट्रंप प्रशासन का दावा है कि कंपनियां H1B वीज़ा का इस्तेमाल सस्ते विदेशी कर्मचारियों को अमेरिका में लाने के लिए करती हैं, क्योंकि इन कर्मचारियों की सैलरी अमेरिकी कर्मचारियों से कम होती है, लेकिन इस नई फीस के बाद कंपनियों के लिए यह रास्ता महंगा हो जाएगा, जिससे भारतीय इंजीनियरों को अमेरिका में काम मिलने के मौके कम हो सकते हैं.
भारत की IT कंपनियों पर असर
Infosys, Wipro, TCS जैसी बड़ी IT कंपनियां H1B वीज़ा का भरपूर इस्तेमाल करती हैं ताकि वे अपने कर्मचारियों को अमेरिका में भेज सकें और वहां विभिन्न कंपनियों के लिए काम कर सकें. यह नई फीस न केवल कंपनियों के लिए आर्थिक बोझ बढ़ाएगी, बल्कि अमेरिकी शेयर बाजार में भारत की IT कंपनियों के शेयरों (ADR) में भी गिरावट आई है. ये कंपनियां पहले से ही AI टेक्नोलॉजी के बढ़ते प्रभाव और वैश्विक प्रतिस्पर्धा की मार झेल रही हैं, और अब ट्रंप प्रशासन की यह नीति उनके लिए नई मुसीबत बन गई है.
टैरिफ के घाव पर H1B का नमक
पिछले कुछ सालों में भारत और अमेरिका के बीच ट्रेड वार के चलते टैरिफ बढ़ाने की घटनाएं आम रही हैं, जिससे दोनों देशों के व्यापारिक संबंधों को ठेस पहुंची है. वहीं अब H1B वीजा फीस में इस भारी वृद्धि ने उस घाव पर और नमक छिड़क दिया है.
ऐसा लग रहा है कि जहां एक ओर ट्रेड डील की उम्मीदें जगी थीं, वहीं दूसरी ओर यह नई नीति भारत की टेक्नोलॉजी सेक्टर और उसके युवाओं के लिए बड़ी चुनौती बन कर सामने आई है.
इस फैसले का सीधा असर न केवल भारत के तकनीकी पेशेवरों और IT कंपनियों पर पड़ेगा, बल्कि यह अमेरिका में भारतीय प्रतिभा की पहुंच को भी सीमित कर सकता है. आगे आने वाले समय में यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि भारत सरकार और उद्योग इस चुनौती का सामना कैसे करते हैं और क्या नए विकल्प तलाशे जाते हैं.
ट्रंप प्रशासन की यह नई H1B फीस नीति भारतीय IT सेक्टर के लिए एक बड़ी परीक्षा है. भारत के लिए अमेरिका के दरवाजे बंद होने का खतरा बढ़ रहा है और इस स्थिति में भारतीय कंपनियों को अपनी रणनीतियों में बदलाव लाना होगा. क्या भारत इस चुनौती का सामना कर पाएगा? समय ही बताएगा.
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