बीजेपी से 36 का आंकड़ा रखने वाली राणा अय्यूब पर कोर्ट ने केस करने के लिए क्यों कहा?

रूपक प्रियदर्शी

राणा अयूब  ने भारत से लेकर यमन, सऊदी अरब के कई मुद्दों पर सोशल मीडिया के कई ऐसे पोस्ट लिखे जिसमें खूब हिंदू-मुसलमान का जिक्र रहा.

ADVERTISEMENT

NewsTak
social share
google news

Journalist Rana Ayyub: सोशल मीडिया पर वायरल पत्रकार हैं राणा अयूब. बीजेपी, मोदी के खिलाफ लगातार लिखने-बोलने के कारण राणा अयूब जितनी चर्चा में रहती हैं, उतनी ही विवादों में. न्यूज बनाने वाली राणा अक्सर खुद न्यूज मेकर बन जाती हैं. एक बार फिर राणा अयूब न्यूज मेकर बनी हैं. मामला इतना गंभीर है कि कोर्ट ने ही कह दिया दर्ज करो केस. दिल्ली की एक अदालत ने हिंदू देवताओं के अपमान और भारत विरोधी प्रचार करने के आरोप में पत्रकार राणा अयूब केस दर्ज करने का आदेश दिया है. कोर्ट ने  पाया कि प्रथम दृष्टया राणा अयूब के खिलाफ संज्ञेय अपराध बनता है. 

पत्रकार राणा अयूब के खिलाफ केस करने वाले पक्ष ने 2013 से 2016 के बीच कई सोशल मीडिया पोस्ट बतौर सबूत पेश किए जिसमें भगवान राम का अपमान और रावण का महिमामंडन किया गया था. राणा अयूब सफाई पेश कर रही हैं कि  8-9 साल में कभी भी कानून व्यवस्था की समस्या पैदा नहीं हुई, कोई विवाद नहीं हुआ. जज को केस डिस्मिस करना चाहिए था. 

बीजेपी फैंस के निशाने पर रहीं है राणा

केस की बैकग्राउंड स्टोरी ये है कि राणा अयूब अरसे से बीजेपी समर्थकों के निशाने पर रही हैं. हिंदू विरोधी, देश विरोधी टैग लगा. ये सिलसिला शुरू हुआ जब राणा अयूब ने 2002 के गुजरात दंगों पर किताब लिखी थी गुजरात फाइल्स-एनाटॉमी ऑफ ए कवर अप . ये किताब उन्होंने गुजरात दंगों की अपनी इन्वेस्टिगेटिग स्टोरीज के आधार पर लिखी थी. उन्होंने कई स्टिंग ऑपरेशन करके गुजरात के विवादित एनकाउंटर्स का भी सच पता करने का दावा किया. 

राणा अयूब ने किताब में दंगों के लिए तब की गुजरात सरकार को जिम्मेदार ठहराया था. गुजरात दंगों के समय नरेंद्र गुजरात के सीएम थे. किताब के इसी निष्कर्ष से राणा अयूब बीजेपी समर्थकों की नजरों में चढ़ गईं. बीजेपी विरोधियों के बीच लोकप्रिय होती गईं.राणा अयूब पीएम मोदी और बीजेपी-आरएसएस के खिलाफ खुलकर लिखती रही हैं. तमाम आलोचना. तमाम हमले, आलोचनाओं के बाद भी न राणा अयूब बदलीं, न इरादे.

राणा अयूब की किताब के फैक्ट्स और इन्वेस्टिगेटिग स्टोरीज में कितनी सच्चाई रही, ये अलग विवादित टॉपिक रहा है. राणा अयूब 2007 में तहलका मैगजीन की जर्नलिस्ट हुआ करती थी. तब तरुण तेजपाल तहलका के संपादक हुआ करते थे. तरुण तेजपाल पर ऑफिस की ही कर्मचारी ने यौन शोषण के आरोप लगाए थे. तहलका ने तरुण तेजपाल को बचाया, इसी विरोध में इस्तीफा देकर राणा अयूब तहलका से निकल गईं. फ्रीलांसिंग करने लगीं. 

यह भी पढ़ें...

गुजरात फाइल्स नाम की किताब लिख डाली

राणा अयूब ने गुजरात दंगों के इन्वेस्टिगेशन से लेकर स्टिंग ऑपरेशन तक तहलका के लिए किया था लेकिन उनकी रिपोर्ट तहलका ने ही नहीं छापी. संपादक तरुण तेजपाल ने कहा कि राणा अयूब की रिपोर्ट अधूरी थी, एडिटोरियल गाइडलाइंस का पालन नहीं किया गया था. राणा अयूब ने वही सारी रिपोर्ट पर गुजरात फाइल्स नाम की किताब लिख दी जिसको लेकर खूब विवाद हुआ. 

विवादों का सिलसिला गुजरात फाइल्स से शुरू हुआ या बस जुडते चला गया. राणा अयूब देश की ऐसी पत्रकार रहीं जिनके खिलाफ ईडी ने भी जांच शुरू की. मनी लॉन्ड्रिंग के आरोप लगे. विदेश जाने पर रोक भी लगी. कोविड के समय मदद करने के मकसद से राणा अयूब ने ऑनलाइन चंदा जुटाना शुरू किया. क्राउड फंडिंग के साथ-साथ विदेशों से भी चंदा इकट्ठा किया लेकिन इस बारे में एफसीआरए की सरकारी मंजूरी नहीं ली. ईडी ने राणा अयूब के कब्जे से करीब पौने दो करोड़ जब्त किए.

किस पोस्ट से मचा बवाल?

राणा अयूब  ने भारत से लेकर यमन, सऊदी अरब के कई मुद्दों पर सोशल मीडिया के कई ऐसे पोस्ट लिखे जिसमें खूब हिंदू-मुसलमान का जिक्र रहा. कश्मीर में धारा 370 हटने पर अमूल ने भाईचारे वाला एड निकाला तब भी राणा अयूब ने  सवाल उठाया कि जहां बच्चे स्कूल नहीं जा रहे हों, सेना नागरिकों पर अत्याचार कर रही हो वहां अमूल भाईचारे का विज्ञापन कैसे बना सकता है. 

पत्रकार परिवार में हुआ जन्म

विकीपीडिया के मुताबिक राणा अयूब का जन्म मुंबई में 1984 में लेखक-पत्रकार परिवार में हुआ. उनके पिता मोहम्मद अयूब ब्लिट्स में लिखते थे.  progressive writers movement में शामिल थे. अंकल दारुल उलूम देवबंद में प्रोफेसर रहे. बचपन में पोलियो की बीमारी झेली. मुंबई के सोफिया कॉलेज से पढ़ीं. एक्ट्रेस ऋचा चड्ढा उनकी क्लासमेट भी रहीं. चॉक एंड डस्टर फिल्म में ऋचा ने राणा अयूब से प्रेरणा लेकर जर्नलिस्ट का किरदार निभाया था.

विदेशी मीडिया में बनाई जगह

विदेशी मीडिया कंपनियों को राणा अयूब में ऐसा स्टार जर्नलिस्ट दिखा जिसे भारत में प्रताड़ित किया जाता है. वॉशिंगटन पोस्ट ने ओपिनियन राइटर के तौर पर अपने अखबार में जगह दी. बीबीसी ने अपने शो में बुलाकर इंटरव्यू लिया जिसमें राणा अयूब ने कहा कि वो इंटरनेशनल मीडिया में ही सरकार के खिलाफ लिख-बोल सकती हैं. भारत के मीडिया ऑर्गनाइजेशन अपने पत्रकारों को सेंसर करते हैं. 2019 में टाइम मैगजीन ने ऐसे 10 ग्लोबल जर्नलिस्ट में शामिल किया जिनकी जान को खतरा है.  2022 में यूएन बॉडी ने राणा अयूब की लाइफ थ्रेट को लेकर चिंता जताई.
 

    follow on google news
    follow on whatsapp