चर्चित चेहरा: राजीव गांधी का एक फैसला अटल बिहारी वाजपेयी के लिए बन गया जीवनदायक
Rajiv Gandhi and Atal Bihar Vajpayee: यह लड़का एक दिन भारत का प्रधानमंत्री बनेगा, कुछ ऐसी ही भविष्यवाणी की थी पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने, जब अटल बिहारी 1957 में चुनाव जीतकर पहली बार संसद पहुंचे थे. अटल बिहारी वाजपेयी बीजेपी में विपक्ष के नेता रहने के बावजूद प्रधानमंत्री राजीव गांधी और प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव के पसंदीदा रहे. काम ऐसा किया कि पंडित नेहरू की भविष्यवाणी सच साबित करके दिखा दी.
ADVERTISEMENT

Atal Bihar Vajpayee: यह लड़का एक दिन भारत का प्रधानमंत्री बनेगा, कुछ ऐसी ही भविष्यवाणी की थी पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने, जब अटल बिहारी 1957 में चुनाव जीतकर पहली बार संसद पहुंचे थे. अटल बिहारी वाजपेयी बीजेपी में विपक्ष के नेता रहने के बावजूद प्रधानमंत्री राजीव गांधी और प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव के पसंदीदा रहे. काम ऐसा किया कि पंडित नेहरू की भविष्यवाणी सच साबित करके दिखा दी. एक नहीं, दो नहीं, तीन बार देश के प्रधानमंत्री बने. नेहरू से लेकर राजीव गांधी तक का जमाना देखा. रिश्ते ऐसे बनाए कि कहानी बन गई, जिसे बीजेपी बताती नहीं, ढूंढने से मिलती है. अटल बिहारी एक ऐसी राजनीतिक परंपरा से ताल्लुक रखते थे, जिसमें राजनीतिक विरोधियों के लिए सम्मान और मानवीय मर्यादा का ख्याल रखा जाता था. शायद इसलिए उन्होंने इंदिरा गांधी को दुर्गा कहा. लेकिन इस पर भी समय-समय पर बीजेपी सवाल उठते रहे. बुधवार को दिवंगत पूर्व प्रधानमंत्री की 100वीं जयंती मनाई गई, इस मौके पर चर्चित चेहरा में कहानी पोखरण में परमाणु टेस्ट कर दुनिया हिला देने वाले अटल बिहारी वाजपेयी की.
जब राजीव के चलते अमेरिका में इलाज करवाने पहुंचे वाजपेयी
शुरूआत करेंगे उस कहानी से जो राजनीति में उदाहरण बन गई. बात 1984-1989 के दौर की है, जब राजीव गांधी देश के प्रधानमंत्री थे और अटल बिहारी वाजपेयी किडनी संबंधी बीमारी से जूझ रहे थे. वाजपेयी जी को इसके लिए अमेरिका जाना था, लेकिन आर्थिक कारणों से वो अमेरिका नहीं जा पा रहे थे. किसी तरह राजीव गांधी को यह बात मालूम पड़ी कि वाजपेयी को विदेश में इलाज की आवश्यकता है. ऐसे में एक दिन राजीव गांधी ने उन्हें अपने दफ्तर में बुलाया और कहा कि वो उन्हें भारत की तरफ से एक प्रतिनिधिमंडल के साथ संयुक्त राष्ट्र भेज रहे हैं, जहां वो इस मौके का लाभ लेकर न्यूयॉर्क में अपना इलाज भी करवा लेंगे. वाजपेयी न्यूयॉर्क गए भी और इलाज करवाकर वापस भी लौटे लेकिन न तो यह वाकया राजीव गांधी ने किसी को बताया और न ही वाजपेयी ने किसी से साझा किया. इन दोनों ही नेताओं ने राजनीति में एक दूसरे के विरोधी की भूमिका निभाई लेकिन निजी जीवन में विरोधियों की भावना रखी नहीं. वाजपेयी ने कुछ समय बाद एक पोस्टकार्ड के जरिए संदेश भेजकर राजीव गांधी को इसके लिए उनका धन्यवाद अदा किया लेकिन राजीव के जीते जी उन्होंने यह वाकया किसी और से साझा नहीं किया. लेकिन बाद में बताया कि वो न्यूयॉर्क गए और इसी वजह से आज जिंदा हैं.
दूसरी पार्टी के नेता भी करते थे भरोसा
वाजपेयी पर भरोसा सिर्फ उनकी ही पार्टी के नेताओं को नहीं बल्कि दूसरी पार्टी के नेताओं को भी था. तभी तो तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव ने वाजपेयी को एक पर्ची थमाकर अपने अधूरे काम को पूरा करने का अनुरोध किया था. ये अधूरा काम था परमाणु टेस्ट का जिसे वो अमेरिकी दबाव के कारण नहीं कर पाए थे. ये खुलासा अटल बिहारी वाजपेयी के मीडिया सलाहकार अशोक टंडन की किताब रिवर्स स्विंग: कॉलोनियलिज्म टू कोऑपरेशन में हुआ. कांग्रेस नेता पीवी नरसिम्हा राव 1991 से 1996 तक भारत के प्रधान मंत्री थे उनका कार्यकाल खत्म होने के बाद 1996 में अटल बिहारी वाजपेयी पहली बार देश के प्रधानमंत्री बने.
यह भी पढ़ें...
पीवी नरसिम्हा राव ने कौनसी पर्ची थमाई थी
इसके पीछे भी एक कहानी है. उस समय गैर-भाजपाई पार्टियां किसी दूसरे नेता के नाम पर सहमति बनाते, तब तक तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. शंकर दयाल शर्मा ने वाजपेयी को प्रधानमंत्री पद के लिए न्योता दे दिया और उन्हें सदन में बहुमत साबित करने को कहा. पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव राष्ट्रपति के फैसले से खुश थे. वो जानते थे कि उनके दोस्त वाजपेयी को आगे क्या करना है. राष्ट्रपति भवन में बिना वक्त गवाएं उन्होंने शपथ ग्रहण समारोह के दौरान वाजपेयी को चुपचाप एक नोट थमा दिया. इसमें लिखा था, अब मेरे अधूरे काम को पूरा करने का समय है. ये काम कुछ और नहीं बल्कि पोखरण में परमाणु परीक्षण था, जो राव अपने कार्यकाल के दौरान नहीं कर सके थे. हालांकि वाजपेयी जब तक ये ऐतिहासिक काम यानी भारत को परमाणु शक्ति बनाते, उन्हें प्रधानमंत्री पद से हटा दिया गया. लेकिन जब 1998 में वाजपेयी दोबारा प्रधानमंत्री बने तो उनके साहसिक नेतृत्व में भारत ने पोखरण में परमाणु परीक्षण किया, जिससे भारत ने अपनी शक्ति को दुनिया के सामने दिखाया. इसके बाद 1999 में वाजपेयी के नेतृत्व में भारतीय सेना ने कारगिल युद्ध में विजय हासिल की. बता दें कि अटल बिहारी वाजपेयी 1996 में केवल 13 दिनों के प्रधानमंत्री बने थे, लेकिन 1998 और 1999 में उन्होंने दो बार सरकार का सफलतापूर्वक नेतृत्व किया.
चर्चा में रहा ये बयान
अटल बिहारी वाजपेयी ने कांग्रेस और गांधी परिवार से तीन प्रधानमंत्री लगातार बनते देखे. पहले जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी और फिर आखिर में राजीव गांधी. नेहरू और राजीव गांधी से जुड़े किस्से के अलावा इंदिरा के साथ भी उनका एक किस्सा खूब सुर्खियों में रहा. वाजपेयी और इंदिरा गांधी राजनीति में न केवल एक-दूसरे के विरोधी रहे बल्कि राजनीतिक विचारधारा भी विपरीत रही. 1971 के युद्ध के समय इंदिरा गांधी जब प्रधानमंत्री थीं तब अटल बिहारी वाजपेयी विपक्ष के नेता होते थे. तब भारतीय जनता पार्टी का अस्तित्व भी नहीं था. 1971 का युद्ध भारत ने पाकिस्तान को हराकर जीता और बांग्लादेश नाम का देश अस्तित्व में आया, जिसका क्रेडिट आज तक इंदिरा गांधी को दिया जाता है. दावा किया जाता है कि इसके बाद लोकसभा में तारीफ की थी और कहा था कि हमें बहस को छोड़कर इंदिरा जी की भूमिका पर बात करनी चाहिए जो किसी दुर्गा से कम नहीं थी. वाजपेयी ने इंदिरा को दुर्गा कहा या नहीं इसका कोई सबूत नहीं क्योंकि उन दिनों लोकसभा में वीडियो रिकॉर्डिंग का सिस्टम नहीं था. इसलिए कांग्रेस नेता बार-बार ये कहते रहे और बीजेपी वाले बार-बार इसे नकारते रहे. हाल ही में संसद वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने इस बहस को रिकॉर्ड से हटाने की भी मांग की थी.
वीडियो देखें: