Explainer: लद्दाख को पूर्ण राज्य का दर्जा और छठवीं अनुसूची में शामिल करने की मांग क्यों? विस्तार से समझिए
लद्दाख में 24 सितंबर 2025 को शांतिपूर्ण आंदोलन हिंसक हो गया. लोग लद्दाख को पूर्ण राज्य का दर्जा देने, छठी अनुसूची में शामिल करने, दो लोकसभा सीटों और आदिवासी दर्जे की मांग कर रहे हैं. छठवीं अनुसूची में शामिल करने की मांग क्यों...इस एक्सप्लेनर में जानिए.

भारत के केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख को पूर्ण राज्य का दर्जा देने और इसे छठवीं अनुसूची में शामिल करने की मांग उठ रही है. प्रदर्शन और आमरण आनशन से आगे 24 सितंबर को युवा सड़कों पर उतर गए. विरोध प्रदर्शन हिंसक हो गया. 4 लोगों की मौत हो गई और करीब 80 लोग घायल हो गए. आंदोलनकारियों ने लद्दाख विकास परिषद और बीजेपी दफ्तर को आग के हवाले का दिया.
सवाल ये है कि आंदोलनकारी लद्दाख को पूर्ण राज्य का दर्जा दिलाने और इसे छठवीं अनुसूची में शामिल करने की मांग क्यों और कब से कर रहे हैं? इस आंदोलन पर सोनम वांगचुक की क्या भूमिका है? इस एक्सप्लेनर में विस्तार से समझे हैं.
क्या है मांगें
- लद्दाख को पूर्ण राज्य का दर्जा दिया जाए
- लद्दाख को संविधान की छठी अनुसूची में शामिल किया जाए
- लद्दाख में दो लोकसभा सीटों की मांग की गई है
- लद्दाख की जनजातियों को आदिवासी का दर्जा
2019 से शुरू हुई छठवी अनुसूची वाली मांग
5 अगस्त 2019 को अनुच्छेद 370 निरस्त करते हुए जम्मू-कश्मीर को दो केंद्रशासित प्रदेशों में बांट दिया गया. जम्मू-कश्मीर को एक केंद्र शासित प्रदेश, वहीं लेह, लद्दाख और करगिल को मिलाकर एक अलग केंद्र शासित प्रदेश बनाया गया. शुरुआत में लद्दाख के लोगों को खुशी थी क्योंकि दशकों से वे जम्मू-कश्मीर से अलग पहचान चाहते थे. लेकिन जल्द ही उनकी चिंता बढ़ी कि UT बनने के बाद स्थानीय संसाधनों जैसे भूमि, नौकरियां और वहां की संस्कृति पर बाहरी लोगों का दखल बढ़ जाएगा. साल 2019 के अंत तक छठवीं अनुसूची में शामिल करने की मांग उठने लगी.
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छठवीं अनुसूची में शामिल करने की मांग क्यों?
लद्दाख के रहवासियों को अब यह डर भी सताने लगा है कि केंद्र शासित प्रदेश बनने के बाद बाहरी लोग उनकी जमीनें खरीद सकते हैं. उन्हें इस बात का भी डर है कि बाहरी लोग उनके संसाधनों पर कब्जा कर सकते हैं. अगर लद्दाख को छठवीं अनुसूची में शामिल नहीं किया गया तो यहां का पर्यावरण, संस्कृति और आदिवासी अधिकार खतरे में पड़ जाएंगे.
क्या है छठवीं अनुसूची?
अब सवाल ये है कि छठवी अनुसूची क्या है? भारतीय संविधान की छठी अनुसूची में असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम के जनजातीय क्षेत्रों के प्रशासन के लिए स्वशासन और स्वायत्तता दी गई है. इसके तहत स्वायत्त जिला परिषदें स्थापित की जाती हैं, जिन्हें भूमि, वन, सामाजिक रीति-रिवाज, विवाह, तलाक और अन्य विशिष्ट विषयों पर कानून बनाने की शक्ति होती है. स्वायत्त जिला परिषदों स्थानीय स्तर पर भूमि, जंगल, शिक्षा और टैक्स जैसे मामलों पर कानून भी बना सकती हैं.
हर स्वायत्त जिले में एक परिषद होता है. इसमें अधिकतम 30 सदस्य होते हैं. इनमें से 4 सदस्य राज्यपाल या उपराज्यपाल द्वारा मनोनीत किए जाते हैं. बाकी 26 सदस्यों को वोटिंग के जरिए चुना जाता है.
स्वायत्त परिषदों के अधिकार
स्वायत्त परिषदों को कई अहम अधिकार दिए गए हैं. इनमें भूमि, वन, नहर, जल, ट्रांसफर, ग्राम प्रशासन, विवाह और सामाजिक रीति-रिवाजों से जुड़े मामलों को नियंत्रित करने की शक्तियां प्राप्त होती हैं. यही नहीं स्वायत्त परिषद भूमि राजस्व के अलावा कुछ अन्य टैक्स भी लगा सकते हैं. न्यायिक अधिकार के तहत छोटे-मोटे दीवानी और फौजदारी मामलों में स्थानीय रीति-रिवाज के अनुसार न्याय कर सकती हैं. परिषद टैक्स, टोल, फीस वगैरह लगाने का अधिकार रखती हैं.
लद्दाख के लोगों का तर्क क्या है?
आंदोलन कर रहे लोगों का कहना है कि मिजोरम, त्रिपुरा, सिक्किम और अन्य पूर्वोत्तर राज्यों की तरह लद्दाख को भी राज्य का दर्जा दिया जाए और इसे भी छठवीं अनुसूचि में शामिल किया जाए. चूंकि लद्दाख में भी बाल्टी, बेडा, बोट, बोटो, ब्रोकपा, ड्रोकपा, दर्द, शिन, चांगपा, गर्रा, मोन और पुरीग्पा जैसे आदिवासी समुदाय का एक बड़ा हिस्सा है. लद्दाख की 97% से अधिक आबादी अनुसूचित जनजाति (ST) मानी जाती है. यहां बौद्ध और मुस्लिम संस्कृति जुड़े लोग हैं.
लद्दाख की आबादी कितनी है?
- 2011 की जनगणना के अनुसार, लद्दाख की कुल आबादी 2,74,289 थी, जो 2021 तक बढ़कर करीब 2,90,000 हो गई थी.
- वर्तमान में यहां की जो आबादी है उसमें 97% लोग आदिवासी हैं, जिनमें लेह में ज्यादातर बौद्ध और कारगिल में ज्यादातर मुस्लिम हैं.
- इसमें 27 प्रतिशत आबादी युवाओं की है, जिनकी उम्र तकरीबन 15 से 29 साल के बीच है.
- इसके अलावा 0 से 6 साल तक के बच्चों की कुल आबादी तकरीबन 9 प्रतिशत है.
आंदोलन में सोनम वांगचुक की क्या भूमिका है?
सोनम वांगचुक लद्दाख में लंबे समय से शिक्षा और पर्यावरण संरक्षण के लिए काम कर रहे हैं. इनकी लोकप्रियता तब बढ़ी जब "3 Idiots" फिल्म आई. बताया गया कि फिल्म का किरदार 'फुंसुख वांगडू' उनसे ही इंस्पायर है. सोनम वांगचुक ने भी माना कि लद्दाख को संविधान के छठवीं अनुसूची में शामिल किया जाए नहीं तो पर्यावरण, संस्कृति और आदिवासी अधिकार खतरे में पड़ जाएंगे.
साल 2023 में इन्होंने आमरण अनशन किया जिससे इनकी काफी चर्चा हुई. वांगचुक ने सोशल मीडिया और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर आवाज उठाई. उन्होंने चेताया कि लद्दाख के संवेदनशील पारिस्थितिकी तंत्र और सीमावर्ती इलाकों में बेतहाशा खनन और निर्माण से गंभीर खतरा हो सकता है.
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