आखिर क्यों बरी हो गए मुंबई ट्रेन ब्लास्ट के सभी आरोपी? दिल दहला देने वाले धमाके में 189 लोगों की गई थी जान

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Mumbai Train Blast Case Update: 2006 के मुंबई ट्रेन धमाकों में 189 की जान गई थी. अब बॉम्बे हाईकोर्ट ने सभी आरोपियों को बरी कर दिया है. आखिर इतने सालों बाद कैसे पलटा केस?

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मुंबई लोकल ट्रेन बम धमाका 2006: बॉम्बे हाई कोर्ट ने सभी आरोपियों को किया बरी
बॉम्बे हाई कोर्ट ने मुंबई ट्रेन ब्लास्ट के सभी आरोपियों को किया बरी
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Mumbai Train Blast Case Update: बॉम्बे हाई कोर्ट ने आज यानी 21 जुलाई 2025 को एक ऐसा फैसला सुनाया है जिसे जानकर हर कोई हैरान हो रहा है. पहले 2015 में 5 दोषियों को फांसी की सजा और 7 को आजीवन कारावास की सजा सुनाई जाती है. लेकिन 2025 में एक फैसला आता है जिसमें ये सभी बरी हो जाते हैं. इस हैरान कर देने वाले मामले की इस वक्त देशभर में खूब चर्चा हो रही है.

मामला 2006 में हुए मुंबई बम धमाकों का है. तब लोकल ट्रेन में भयानक सीरियल ब्लास्ट हुए थे, इन धमाकों में 189 लोगों की जान चली गई थी जबकि सैकड़ों घायल हो गए थे. आइए जानते हैं आखिर क्या है इस मामले की पूरी कहानी? 

मुंबई बम धमाके के आरोपी बरी

11 जुलाई 2006 को मुंबई की लोकल ट्रेनों में अलग-अलग 7 जगह बम धमाके हुए थे. 11 मिनट के अंदर हुए इन 7 धमाकों में 189 लोगों की जान चली गई जबकि 800 से ज्यादा लोग घायल हुए थे. हाई कोर्ट ने इस मामले में निचली अदालत की ओर से दोषी ठहराए गए 12 में से 11 आरोपियों को सभी आरोपों से बरी कर दिया है. इस दौरान एक दोषी का निधन भी हो गया था.

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फांसी और आजीवन कारावास पा चुके दोषियों को आगे बचने की कोई उम्मीद नजर नहीं आ रही थी. लेकिन एहतेशाम सिद्दीकी नाम के एक आरोपी ने कुछ ऐसा किया कि पूरा मामला ही पलट गया.

हाई कोर्ट में क्या कुछ हुआ?

हाई कोर्ट की स्पेशल बेंच ने फैसले में कहा 'मामले में पेश किए गए सबूत विश्वसनीय नहीं थे' और 'कई गवाहों की गवाही संदेह के घेरे में थी'. कोर्ट ने यह भी स्वीकार किया कि आरोपियों से जबरन पूछताछ कर उनके बयान लिए गए, जो कानूनन मान्य नहीं हैं. हाईकोर्ट ने आगे कहा कि आरोपियों के खिलाफ पेश किए गए सबूतों में गंभीर खामियां थीं. पहचान परेड को चुनौती देने के बचाव पक्ष के तर्कों को न्यायसंगत माना गया. 

कुछ गवाह सालों तक चुप रहे और फिर अचानक आरोपियों की पहचान की, जो असामान्य है. कई गवाह ऐसे मामलों में पहले भी पेश हुए थे, जिससे उनकी विश्वसनीयता पर सवाल खड़े हुए. कथित आरडीएक्स और दूसरी सामग्री की बरामदगी को लेकर कोई पुख्ता वैज्ञानिक सबूत नहीं पेश किया गया. बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा, 'गवाही, जांच और सबूत पुख्ता नहीं थे. आरोपी यह साबित करने में सफल रहे कि उनसे जबरदस्ती कबूलनामे लिए गए थे.

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जजों से कही ये बात 

फैसला सुनाने के दौरान जजों ने कहा- हमने अपना कर्तव्य निभाया है. यह हमारी जिम्मेदारी थी.' वहीं वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए जुड़े दोषी अमरावती, नासिक, नागपुर और पुणे की जेलों से रोते हुए दिखे. किसी ने खुशी नहीं जताई, सभी की आंखों में आंसू थे. ATS ने मामले की जांच की और मकोका और UAPA जैसी कड़ी धाराओं में 13 लोगों को गिरफ्तार किया, जबकि 15 आरोपी फरार बताए गए, जिनमें से कुछ के पाकिस्तान में होने की बात कही गई.

लंबा चला यह मामला

2015 में विशेष अदालत ने 12 आरोपियों को दोषी ठहराया था. 5 को फांसी और 7 को आजीवन कारावास की सजा दी गई थी. इसके बाद राज्य सरकार ने फांसी की सजा की पुष्टि के लिए हाई कोर्ट में याचिका दायर की, जबकि आरोपियों ने अपनी सजा और दोषसिद्धि को चुनौती देते हुए अपील दायर की. ये मामला लंबे वक्त तक टलता रहा.

2023 में एहतेशाम सिद्दीकी नाम के एक आरोपी ने अपील की सुनवाई में तेजी लाने के लिए हाईकोर्ट में अर्जी लगाई. इसके बाद एक विशेष पीठ का गठन किया गया, जिसने लगभग 6 महीने तक लगातार सुनवाई की और फिर 6 महीने तक फैसले पर काम किया.

फिर आखिरकार घटना के 19 साल बाद हाईकोर्ट का जो फैसला आया, उसने सबको हैरान कर दिया. कोर्ट ने सभी आरोपियों के बरी होने का फैसला सुना दिया. अब हैरानी की बात ये है कि आखिर किसने इतना भयानक कांड करवाया. इसके पीछे किसका हाथ था. 19 साल की गहन जांच के बाद तो यही सामने आ रहा है कि किसी ने बम ब्लास्ट नहीं करवाया और किसी ने बम ब्लास्ट नहीं किया और अब 189 लोगों को किसने मारा पता नहीं. 

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