13 दिसंबर 2001, जब संसद में घुस आए थे जैश ए मोहम्मद के पांच आतंकी, खौफनाक हमला फिर आया याद
आज 13 दिसंबर है. आज ही के दिन 2001 में लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद के पांच फिदायीन आतंकियों ने संसद पर हमला किया था. हमले के समय सांसदों और मंत्रियों समेत 200 से ज्यादा लोग संसद में मौजूद थे. भारतीय जवानों ने हमले में शामिल पांचों आतंकवादियों को मार गिराया था.
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Parliament Attack Anniversary: आज 13 दिसंबर है. आज ही के दिन 2001 में लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद के पांच फिदायीन आतंकियों ने संसद पर हमला किया था. हमले के समय सांसदों और मंत्रियों समेत 200 से ज्यादा लोग संसद में मौजूद थे. भारतीय जवानों ने हमले में शामिल पांचों आतंकवादियों को मार गिराया था. पर इस हमले में दिल्ली पुलिस के पांच जवान, संसद के दो सुरक्षाकर्मी और सीआरपीएफ की 1 महिला सुरक्षाकर्मी भी इस शहीद हो गईं थीं.
पीएम नरेंद्र मोदी, कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे, सोनिया गांधी जैसे नेताओं ने शहीद जवानों को श्रद्धांजलि दी है. इस बीच बुधवार, 13 दिसंबर को एक बार फिर संसद की सुरक्षा में चूक हुई है. सदन के अंदर घुस आए दो लोगों ने ऐसा बवाल मचाया है कि 2001 की आतंकी घटना बरबस ही याद आ रही है.
आइए आपको बताते हैं साल 2001 में संसद पर हुए भयावह हमले के बारे में.
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शुक्रवार का दिन था जब संसद में घुस आए आतंकी
13 दिसंबर 2001 को फ्राइडे (शुक्रवार) का दिन था. शीतकालीन सत्र चल रहा था. 11 बज कर 28 मिनट पर संसद की कार्रवाई चालीस मिनट के लिए स्थगित कर दी गई थी. अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री थे. विपक्ष की नेता सोनिया गांधी थीं. संसद के अंदर लालकृष्ण आडवाणी जो कि उस समय केंद्रीय गृहमंत्री थे. कृष्णकांत शर्मा जो कि उप-राष्ट्रपति थे उस समय वो भी अंदर थे, उनके अलावा और लोग भी थे ही.
लेकिन,
40 मिनट के लिए सेशन स्थगित कर दिया गया था और उसके बाद लंच था, इसलिए कई नेता निकल भी चुके थे. जिसमें प्रधानमंत्री वाजपेयी और विपक्ष की नेता सोनिया गांधी संसद से अपने आवासों के लिए निकल चुकीं थीं. अंदर 200 के आसपास एमपी थे.
11 बजकर 29 मिनट पर वाइस प्रेसिडेंट का काफिला भी तैयार हो रहा था क्योंकि वह भी निकलने वाले थे. तभी गेट नंबर 11 से एक सफेद कलर की एंबेसडर कार बड़ी तेजी से संसद के अंदर घुसती है. जिसके ऊपर संसद और गृह मंत्रालय के स्टिकर लगे हुए थे. गाड़ी मेन गेट से तो अंदर आ जाती है लेकिन जहां उसे मुड़ना था वहां न मुड़कर वह आगे चली जाती है.
एबेंसडर से उतरते ही फायरिंग शुरू कर देते हैं फिदायीन आतंकवादी
इसलिए गाड़ी को सुरक्षाकर्मी रोकने की कोशिश करते हैं लेकिन जब कार नहीं रुकती है तो सुरक्षा कर्मी उस कार के पीछे भागते हैं. गाड़ी के अंदर बैठे आतंकवादी अपने एंबेसडर की स्पीड बढ़ा देते हैं.
लेकिन, आगे देखते हैं कि रास्ता ब्लॉक है. आगे एक लोहे का दरवाजा था, जिसके बगल में एक दूरदर्शन की वैन खड़ी थी. उन्होंने अपनी गाड़ी घुमाई और वापस मुड़ने लगे तभी जल्द बाजी में उनकी गाड़ी उप-राष्ट्रपति की गाड़ी से टकरा जाती है.
गाड़ी टकराकर रुक जाती है और एकसाथ गाड़ी के चारों दरवाजे खुलते हैं और पांचो आतंकवादी बड़ी तेजी से गाड़ी से उतरते हैं और फायरिंग करना शुरू कर देते हैं. उनके हाथ में एके 47 और कंधे पर बैग था.
सिक्योरिटी को संभलने का मौका तक नहीं मिला. जो सुरक्षाकर्मी उस गाड़ी के पीछे भाग रहे थे वह मारे गए. गोलियों की गूंज पूरे संसद में फैल गई.
आतंकवादियों का मकसद संसद भवन के मुख्य हॉल तक पहुंचने का था. इसलिए वह लोकसभा के भीतर घुसने के लिए यहां से वहां भटक रहे थे और अंधाधुंध फायरिंग कर रहे थे. दोनों तरफ से करीब 45 मिनट चली गोलीबारी में आखिरकार सुरक्षाबल आतंकवादियों को मारने में सफल रहे.
हमले में सबसे पहले कमलेश कुमारी यादव शहीद हुईं थीं. उसके बाद संसद भवन परिसर का एक माली, संसद भवन सुरक्षा सेवा में लगे दो कर्मचारी और 5 दिल्ली पुलिस के जवान मारे गए थे.
संसद हमले के मास्टरमाइंड अफजल गुरू को 2013 में हुई थी फांसी
दिल्ली पुलिस के अनुसार जैश-ए-मोहम्मद का आतंकवादी अफजल गुरु इस मामले का मास्टर माइंड था. अफजल गुरु को पहले दिल्ली हाइकोर्ट ने साल 2002 में और फिर सुप्रीम कोर्ट ने साल 2006 में फांसी की सजा सुनाई थी. सुप्रीम कोर्ट से भी फांसी सुनाए जाने के बाद अफजल गुरु ने राष्ट्रपति से जीवनदान की याचिका लगाई थी.
जिसे पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने खारिज कर दिया था. यह मामला गृह मंत्रालय के हाथ में था. आखिरकार 9 फरवरी 2013 की सुबह दिल्ली के तिहाड़ जेल में अफजल गुरु को फांसी पर लटका दिया गया.