Explainer: बिहार चुनाव को लेकर 5 बड़े ओपिनियन पोल में क्या निकला, किसका पलड़ा भारी?

अलग अलग ओपिनियन पोल में बिहार में एनडीए को स्पष्ट बहुमत मिलता दिख रहा है. सर्वे में बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरती नजर आ रही है.

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बिहार में 6 और 11 नवंबर को दो चरण में वोट डाले जाएंगे. इस चुनाव के तारीख की घोषणा के साथ ही राजनीतिक दलों के बीच गठबंधन, नारों, वादों और चुनावी घोषणाओं का दौर शुरू हो चुका है. फिलहाल बिहार की राजनीति में सबसे बड़ा सवाल यही है, क्या एनडीए 2025 में फिर से इतिहास रच पाएगी?

इस बीच जनता का मिजाज जानने के लिए कई एजेंसियों ने ओपिनियन पोल (Opinion Poll) जारी किए.  इन पोल्स ने बिहार के चुनावी समर में एक तरह से पूर्वानुमान का संकेत दिया है.

ऐसे में इस रिपोर्ट में हम चार प्रमुख सर्वे लोक पोल, टाइम्स नाउ-जेबीसी, एस इंडिया और सी वोटर सर्वे के आधार पर जानने की कोशिश करेंगे कि बिहार में इस बार किस पार्टी का पलड़ा भारी है. 

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इन ओपिनियन पोल में सीटों के अनुमान के साथ-साथ सीएम चेहरा, वोट प्रतिशत और क्षेत्रवार स्थिति को लेकर भी महत्वपूर्ण आंकड़े सामने आए हैं. आइए एक-एक करके जानते हैं कि बिहार के चुनावी मैदान में किसका पलड़ा भारी है.

 1. लोक पोल का ओपिनियन पोल

लोक पोल का ओपिनियन पोल बिहार विधानसभा चुनाव 2025 को लेकर काफी अहम माना जा रहा है, क्योंकि साल 2023 के कर्नाटक चुनाव में इस एजेंसी ने बेहद सटीक आंकड़े पेश किए थे, जिससे इसकी विश्वसनीयता बढ़ी है. 

इस सर्वे के अनुसार, महागठबंधन को 118 से 126 सीटें मिलने का अनुमान है, जो कि बहुमत के लिए जरूरी 122 सीटों के आंकड़े को पार करता हुआ दिखाई देता है. वहीं दूसरी तरफ एनडीए को 105 से 114 सीटें मिलने का अनुमान जताया गया है, जिससे वह बहुमत से कुछ कदम पीछे रह सकती है. 

जबकि अन्य दलों और निर्दलीयों को 2 से 5 सीटें मिल सकती है. वोट शेयर के लिहाज से भी मुकाबला काफी करीबी है, जहां एनडीए को 38 से 41% और महागठबंधन को 39 से 42% वोट मिल सकते हैं. वहीं, अन्य को 12 से 16%वोट शेयर मिलने की बात कही गई है. 

कुल मिलाकर, लोक पोल का यह सर्वे संकेत देता है कि बिहार की सत्ता में महागठबंधन की वापसी संभव है, हालांकि अंतर बेहद मामूली हो सकता है.

2. टाइम्स नाउ-जेबीसी का ओपिनियन पोल

टाइम्स नाउ-जेबीसी का ओपिनियन पोल बिहार चुनाव को लेकर अब तक का सबसे बड़ा और विस्तार से किया गया सर्वे माना जा रहा है. इसमें सीटों से लेकर पार्टियों के क्षेत्रवार प्रदर्शन तक की पूरी जानकारी दी गई है. सर्वे के अनुसार इस चुनाव में एनडीए को 131 से 150 सीटें मिल सकती हैं, यानी उसे बहुमत का साफ मौका मिलता दिख रहा है, क्योंकि सरकार बनाने के लिए 122 सीटें चाहिए होती हैं. 

एनडीए के अंदर बीजेपी को 66 से 77, जेडीयू को 52 से 58 और बाकी छोटे दलों जैसे एलजेपी, हम, आरएलएसपी को मिलाकर 13 से 15 सीटें मिलने का अनुमान है. वहीं दूसरी तरफ महागठबंधन को 81 से 103 सीटें मिल सकती हैं. इसमें आरजेडी को 57 से 71, कांग्रेस को 11 से 14 और लेफ्ट पार्टियों को 13 से 18 सीटें मिल सकती हैं. 

इसके अलावा जन स्वराज पार्टी, जो अकेले सभी 243 सीटों पर चुनाव लड़ रही है, उसे इस सर्वे के अनुसार 4 से 6 सीटें मिल सकती हैं. वहीं एआईएमआईएम, बीएसपी जैसे अन्य दलों को 5 से 6 सीटें मिलने की बात कही गई है. कुल मिलाकर, इस सर्वे में एनडीए की स्थिति मजबूत दिख रही है और उसे सरकार बनाने का पूरा मौका मिल सकता है.

 3. एस इंडिया का ओपिनियन पोल 

एस इंडिया के सर्वे में बिहार को पांच बड़े हिस्सों में बांटकर वहां की राजनीतिक स्थिति को समझा गया है. ये हिस्से हैं पूर्णिया, मगध, भोजपुर, भागलपुर और सारण बेल्ट. पूर्णिया बेल्ट (24 सीटें) में मुस्लिम आबादी ज्यादा है, यहां 2020 जैसी ही स्थिति बनी हुई है, सर्वे के अनुसार इस बेल्ट में महागठबंधन थोड़ी बढ़त में है. वहीं मगध बेल्ट (26 सीटें) में पहले महागठबंधन को भारी बढ़त थी, लेकिन अब एनडीए ने यहां वापसी की है और आगे दिख रहा है. 

भोजपुर बेल्ट (22 सीटें) में पहले महागठबंधन का दबदबा था, लेकिन अब एनडीए ने बढ़त बना ली है. इतना ही नहीं इस बेल्ट में स्वराज पार्टी का भी यहां अच्छा प्रभाव दिख रहा है. वहीं भागलपुर बेल्ट (12 सीटें) में इस बार महागठबंधन ने अच्छा प्रदर्शन किया है और एनडीए पीछे होता दिख रहा है.

सारण बेल्ट (24 सीटें) में भी 2020 जैसी ही स्थिति है, यहां पिछले चुनाव में भी महागठबंधन को पहले से ही बढ़त थी और अब भी कायम है. कुल मिलाकर, एस इंडिया के क्षेत्रीय आंकड़े बताते हैं कि बिहार में कोई एकतरफा लहर नहीं है. कुछ इलाकों में एनडीए ने पकड़ मजबूत की है तो कुछ क्षेत्रों में महागठबंधन का पलड़ा भारी है.

4. सी वोटर (C Voter) का सर्वे

सी वोटर के सर्वे में सीटों की संख्या तो नहीं बताई गई लेकिन मुख्यमंत्री चेहरे और नेताओं की लोकप्रियता पर ध्यान दिया गया है. इसमें तेजस्वी यादव सबसे ऊपर हैं, उनकी लोकप्रियता इस साल थोड़ी उतार-चढ़ाव के बाद अब 36% है, जो उन्हें सबसे लोकप्रिय नेता बनाती है. वहीं, प्रशांत किशोर की लोकप्रियता लगातार बढ़ रही है और अब वह 23% तक पहुंच गए हैं.

नीतीश कुमार की लोकप्रियता थोड़ा कम होकर 16% रह गई है, लेकिन उनकी कामकाज से जनता की संतुष्टि धीरे-धीरे बढ़ रही है. अब 61% लोग उनके काम से खुश हैं. चिराग पासवान और सम्राट चौधरी की लोकप्रियता कम है. कुल मिलाकर, नीतीश कुमार अब भी सबसे पसंदीदा मुख्यमंत्री चेहरे हैं, लेकिन प्रशांत किशोर भी तेजी से अपनी पहचान बना रहे हैं और तेजस्वी को भी जनता सीएम चेहरे के तौर पर देख रही है. 

5. MATRIZE-IANS के ओपिनियन पोल

सबसे हालिया सर्वे MATRIZE-IANS के ओपिनियन पोल के अनुसार बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में एनडीए को बढ़त मिलती दिख रही है. सर्वे के अनुसार, एनडीए को 150-160 सीटें, महागठबंधन को 70-85 सीटें और अन्य को 9-12 सीटें मिलने का अनुमान है. एनडीए में बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभर रही है, जिसे 80-85 सीटें मिल सकती हैं, जबकि जेडीयू को 60-65 सीटें मिलने की संभावना है. वहीं, विपक्ष में आरजेडी को 60-65, कांग्रेस को 7-10 और भाकपा-माले को 6-9 सीटें मिलने का अनुमान है. यह सर्वे 18 सितंबर से 5 अक्टूबर के बीच 46,862 लोगों से बातचीत पर आधारित है और इसमें ±3% की संभावित त्रुटि बताई गई है. कुल मिलाकर, आंकड़े सत्ताधारी एनडीए के पक्ष में जाते दिख रहे हैं.

सत्ता की चाबी किसके पास

चारों ओपिनियन पोल को मिलाकर देखें तो यह साफ दिख रहा है कि इस बार बिहार में एनडीए की स्थिति मजबूत होती जा रही है. सर्वे बताते हैं कि एनडीए को लगभग 130 से 158 सीटें और 40% से लेकर 52% तक वोट मिल सकते हैं. 

वहीं, दूसरी तरफ महागठबंधन की सीटें 66 से 103 के बीच में सिमट सकती हैं. कई राजनीतिक जानकार इस चुनाव को "बिहार की राजनीति में बड़ा बदलाव लाने वाला चुनाव" मान रहे हैं. 

एनडीए का ग्राफ क्यों हो रहा है उपर

इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार इन चारों सर्वे से एक चीज और साफ होती दिख रही है और वो है एनडीए का ग्राफ ऊपर जाना. इसका एक बड़ा कारण है नीतीश कुमार का अनुभव, बीजेपी का मजबूत संगठन और विपक्ष की कमजोर और बिखरी रणनीति. हालांकि, आखिरी फैसला तो जनता नवंबर 2025 में वोट डालकर ही करेगी, लेकिन इतना जरूर कहा जा सकता है कि इस बार का चुनाव बिहार की राजनीति की तस्वीर बदल सकता है. कुछ लोग तो यहां तक कह रहे हैं कि शायद 2010 जैसा इतिहास दोबारा बन जाए, जब नीतीश कुमार की अगुवाई में एनडीए ने बड़ी जीत दर्ज की थी.

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