दिल्ली को प्रदूषण से राहत दिलाने के लिए अनोखा प्रयोग, क्लाउड सीडिंग से आर्टिफिशियल बारिश की कोशिश, देखें वीडियो
Delhi cloud seeding: दिल्ली की जहरीली हवा को साफ करने के लिए मंगलवार को दिल्ली सरकार ने IIT कानपुर के साथ मिलकर देश का पहला क्लाउड सीडिंग ट्रायल किया. सेसना विमान से कैमिकल छोड़कर आर्टिफिशियल बारिश कराने की कोशिश की गई.

Delhi cloud seeding: दिल्ली की प्रदूषित हवा को साफ करने के लिए मंगलवार को एक ऐतिहासिक प्रयोग सफलतापूर्वक पूरा किया गया. दरअसल, दिल्ली सरकार ने IIT-कानपुर के सहयोग से आसमान में क्लाउड सीडिंग का पहला सफल ट्रायल किया है. इस प्रयोग के तहत एक सेसना विमान ने दिल्ली में मौजूद बादलों पर कुछ खास कैमिकल छोड़ा गया है. इसका असर होने के बाद अगले कुछ घंटे में आर्टिफिशियल बारिश हो सकती है.
इस ऐतिहासिक ट्रायल की शुरूआत मंगलवार को की गई. इस ट्रायल के दौरान एक सेसना विमान ने कानपुर से उड़ान भरी और दिल्ली के आसमान में एंट्री ली. ये विमान मेरठ से होते हुए दिल्ली आया और लगभग आधे घंटे तक खेखड़ा, बुराड़ी, उत्तरी करोल बाग और मयूर विहार के इलाके के ऊपर उड़ान भरता रहा.
IIT कानपुर के विशेषज्ञों के अनुसार, ये पूरा ऑपरेशन करीब 25 नॉटिकल मील लंबे और 4 नॉटिकल मील चौड़े एरिया में हुआ. दिल्ली के पर्यावरण मंत्री मनजिंदर सिंह सिरसा ने बताया कि ट्रायल के दौरान विमान से 8 फ्लेयर (रसायन से भरी मशालें) छोड़ी गईं. IIT -कानपुर के विशेषज्ञों बताया कि इस प्रोसेस की शुरुआत के बाद 15 मिनट से लेकर 4 घंटे के अंदर बारिश होने की संभावना है.
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9 से 10 ट्रायल करने का प्लान
पहले ट्रायल की सफलता के बाद आज ही आउटर दिल्ली में दूसरा और तीसरा ट्रायल भी किया गया. दिल्ली सरकार आने वाले कुछ दिनों में ऐसे ही 9 से 10 ट्रायल करने की प्लान बना रही है. दिल्ली सरकार में पर्यावरण मंत्री मनजिंदर सिंह सिरसा ने कहा है कि प्रदूषण कम करने की दिशा में ये सरकार का एक बहुत बड़ा कदम है. उन्होंने बताया कि अगर ये शुरुआती ट्रायल सफल होते हैं तो सरकार एक दीर्घकालिक योजना तैयार की जाएगी. गौरतलब है कि दिल्ली सरकार ने 7 मई को ऐसे ही पांच ट्रायल करने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी थी. इसकी लागत 3.21 करोड़ रुपये बताई जा रही है. लेकिन बादलों में 50% से कम नमी होने की वजह से ये प्लान बार बार आगे टलता रहा.
क्या होती है क्लाउड सीडिंग?
क्लाउड सीडिंग बादलों से आर्टिफिशियल बारिश कराने की एक वैज्ञानिक प्रक्रिया है. इसमें मौसम वैज्ञानिक सबसे पहले ऐसे बादलों की पहचान करते हैं जिनमें पर्याप्त नमी तो होती है. लेकिन वे प्राकृतिक रूप से बरस नहीं पाते. फिर सेसना विमानों या ड्रोन की मदद से इन बादलों पर पहुंचकर सिल्वर आयोडाइड, सोडियम क्लोराइड या पोटैशियम आयोडाइड जैसे कैमिकल फ्लेयर के रूप में छोड़ता जाता है. ये कैमिकल बादलों के अंदर मौजूद वाटर वेपर (जलवाष्प) को छोटे-छोटे जलकणों में बदल देते हैं. जब ये जलकण भारी हो जाते हैं तो वे बारिश के रूप में जमीन पर गिरने लगते हैं.
क्या क्या है फायदे?
क्लाउड सीडिंग का असर आम तौर पर 15 मिनट से लेकर 4 घंटे के भीतर दिखाई देने लगता है. हालांकि, ये पूरी तरह से मौसम की स्थितियों और बादलों की प्रकृति पर निर्भर करता है. इसका मुख्य उद्देश्य पॉल्यूशन को कम करना, सूखे इलाकों में आर्टिफिशियल बारिश कराना और कृषि क्षेत्रों को राहत देना होता है. हालांकि, ये तकनीक हर तरह के बादलों पर काम नहीं करती है और कभी-कभी इसका प्रभाव सीमित रहता है. वैज्ञानिक अभी भी इसके पर्यावरणीय प्रभावों का अध्ययन कर रहे हैं, फिर भी शहरी प्रदूषण से जूझ रहे शहरों के लिए इसे एक संभावित समाधान के रूप में देखा जा रहा है.
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