लुधियाना में पहलवानी और फिर रेलवे में नौकरी करने वाले धर्मेंद्र कैसे बने Actor? रोचक है ये कहानी
Actor Dharmenra Death: धर्मेंद्र ने साधारण गांव से उठकर रोमांस, एक्शन और संवेदनशील अभिनय के दम पर भारतीय सिनेमा का अमर ‘ही-मैन’ बनने तक का सफर तय किया. 89 साल की उम्र में दुनिया को अलविदा कहकर भी वो दर्शकों की यादों में एक चमकते सितारे की तरह हमेशा जीवित रहेंगे.

बॉलीवुड की चमकदारी दुनिया जितनी रंगीन नजर आती है उतनी ही बेरहम भी होती है. यहां कई सितारे आसमान में चमकते हैं लेकिन वक्त की धूल उन्हें गुमनामी के अंधेरे में ढक देती है. इसी चमक-धमक में एक ऐसा नाम रहा जिसकी रोशनी कभी कम नहीं हुई और वो शख्स हैं धर्मेंद्र.
भारतीय सिनेमा के इस ‘ही-मैन’ ने सिर्फ ताकत और चार्मिंग पर्सनालिटी से नहीं बल्कि अपने संघर्ष, जज्बे और दर्शकों के साथ अटूट रिश्ते की वजह से इतिहास में जगह बनाई है.
धर्मेंद्र ने आज यानी 24 नवंबर को 89 साल की उम्र में अपने 90वें जन्मदिन से ठीक एक महीने पहले दुनिया को अलविदा कह दिया. उनका ये अलविदा ऐसा लगा जैसे हिंदी सिनेमा की छत से एक मजबूत स्तंभ गिर गया.
यह भी पढ़ें...
एक साधारण गांव से असाधारण सफर की शुरुआत
8 दिसंबर 1935 को पंजाब के लुधियाना जिले के नसराली गांव में एक साधारण स्कूल हेडमास्टर के घर जन्मे धरम सिंह देओल यानी हमारे धर्मेंद्र कभी सिर्फ गांव की सीमाओं में रुकने के लिए नहीं बने थे.
किशोरावस्था के दौरान वे गांव के अखाड़ों में पहलवानी करते थे. मिट्टी में लिपटे हुए शरीर मजबूत कद-काठी और आंखों में चमकता अनाम सपना यही उनकी असली पहचान थी, लेकिन 1958 में अखबार में छपा फिल्मफेयर न्यू टैलेंट हंट का विज्ञापन उनके जीवन का निर्णायक मोड़ बन गया. हालांकि इससे पहले उन्होंने रेलवे में नौकरी की थी. इस नौकरी में मन नहीं लगा तो अभिनेता सब कुछ छोड़ मलेरकोटला में खिंचवाई कुछ तस्वीरें जेब में सीमित पैसे और दिल में अनगिनत उम्मीदें लेकर वह बॉम्बे पहुंचे. पंजाब के एक जाट लड़के ने वहां कदम रखा, जहां सपने देखने की इजाजत हर किसी को मिलती है लेकिन उन्हें पूरा करना सबके बस की बात नहीं होती.
रेलवे में क्या काम करते थे धर्मेंद्र?
धर्मेंद्र की शादी काफी उम्र में कर दी गई थी. उनकी दूसरी शादी साल 1980 में अदाकार हेमा मालिनी से हुई थी, जबकि एक्टर ने पहली शादी 1954 में 19 साल की उम्र में ही प्रकाश कौर से कर ली थी. अमर उजाला की एक रिपोर्ट के मुताबिक तब अभिनेता रेलवे में क्लर्क की नौकरी करते थे.
प्रभावशाली रहा धर्मेंद्र का सफर
1960 में आई उनकी फिल्म दिल भी तेरा हम भी तेरे ने भले ही बहुत ज्यादा नाम नहीं कमाया, लेकिन यह शुरुआत थी उस सफर की जिसने आगे चलकर इतिहास रच दिया.
साल 1961 की शोला और शबनम ने धर्मेंद्र को बॉलीवुड में पहचान दिलाई. इसके बाद साल 1962 में आई अनपढ़ और 1963 में आई बंदिनी ने उनके भीतर छिपे उस कलाकार को सामने ला दिया जो सिर्फ सुंदर चेहरा नहीं, बल्कि संवेदनशील अभिनय की कला भी रखता था.
रोमांस के राजा
1960 का दशक धर्मेंद्र के लिए रोमांटिक परिदृश्य में स्वर्णिम साबित हुआ. दर्शकों को उनमें सिर्फ आकर्षक चेहरा नहीं बल्कि दिल को छू लेने वाली सादगी भी दिखाई देती थी.
1966 में आई फूल और पत्थर ने उन्हें स्टारडम के शिखर पर पहुंचा दिया. इसके बाद साल 1964 में आई मिलन की बेला और युद्ध पर आधारित फिल्म हकीकत (1964) में उनकी गहराई भरी भूमिकाओं ने साबित किया कि वे अभिनय की हर बारीकी समझते हैं.
साल 1968 में आई धर्मेंद्र की फिल्म में उन्होंने डबल रोल किया था. इन फिल्मों ने उन्हें बहुमुखी कलाकार के रूप में स्थापित किया. दशक के अंत में आई सत्यकाम (1969) ने उन्हें आलोचकों का प्रिय बना दिया. अब साफ हो चुका था कि धर्मेंद्र सिर्फ मसल्स नहीं, इमोशन्स और परिपक्वता से भरे अभिनेता हैं.
जब सिनेमा ने बदला रंग और धर्मेंद्र भी
समय बदल रहा था और उसके साथ बॉलीवुड भी. 1970 का दशक एक्शन का दौर लेकर आया. दर्शक अब ताकतवर नायक देखना चाहते थे. धर्मेंद्र ने भी अपने अभिनय की दिशा बदल दी और खुद को एक्शन के शहंशाह की तरह पेश किया.
उनकी 1971 में आई फिल्म मेरा गांव मेरा देश ने उन्हें रफ-टफ बागी हीरो बना दिया. इसके बाद उनके करियर में आई वो फिल्में, जिसे आज भी स्वर्णिम कहा जाता है और वो फिल्में हैं सीता और गीता (1972), यादों की बारात (1973), जुगनू (1973)
इन फिल्मों ने बॉक्स ऑफिस पर तहलका मचा दिया. धर्मेंद्र अब तक सभी दर्शक के चहेते स्टार बन चुके थेय रोमांस से लेकर एक्शन तक कॉमेडी पसंद करने वाले उनके फैन थे
इन किरदार ने दी पहचान
हालांकि धर्मेंद्र ने अपनी जिंदगी में कई सुपरहिट फिल्में दी हैं. लेकिन उनको अमर करने का काम किया 1975 की शोले ने. वीरू के किरदार में उनका चंचलपन, मासूम रोमांस, दोस्ती और जुनून ने उन्हें हर घर का सदस्य बना दिया.
जब वो हंसते-खिलखिलाते हुए कहते हैं, ''बसंती, इन कुत्तों के सामने मत नाचना!'' तो वो सिर्फ एक डायलॉग नहीं, बल्कि भाव बन जाता है. शोले पांच साल तक सिनेमाघरों में चलती रही और वीरू हमेशा के लिए जनता के दिलों में बस गया.
आज धर्मेंद्र हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उन्होंने जो सफर जिया, वो कभी खत्म नहीं होगा. उन्होंने साबित किया कि सच्चा सितारा वह नहीं जो सिर्फ फिल्मी रोशनी में चमके, बल्कि वह जो दर्शकों के दिलों में जगह बना ले. खेतों की मिट्टी से निकलकर कैमरे के सामने अमर हो जाना. यह सिर्फ एक करियर नहीं, यह एक विरासत है.
ये भी पढ़ें: Breaking News: बॉलीवुड के HE-MAN धर्मेंद्र नहीं रहें, 89 साल के उम्र में ली अंतिम सांसें-IANS










